सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में जीवन बीमा पॉलिसी लेने वालों को चेतावनी दी है. अगर वे अपने पूर्ववर्ती पॉलिसियों को प्रस्ताव पत्र में नहीं बताते तो क्लेम देने से इनकार किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने मामले में अपीलकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया है, जिसमें बीमा कंपनी को 9 % वार्षिक ब्याज की दर से बीमित राशि का भुगतान करने और दावा निपटाने का आदेश दिया गया है.

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जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए कहा “बीमा एक पूर्णतः वैध अनुबंध है, इसलिए आवेदक का यह कर्तव्य है कि वह पॉलिसी लेते समय सभी तथ्यों का खुलासा करे जो प्रस्तावित जोखिम को स्वीकार करने में बीमाकर्ता कंपनी के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं,” पीठ ने कहा, “प्रस्ताव पत्र में दिए गए तथ्यों को बीमा अनुबंध के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और इसका खुलासा न करने पर दावे को अस्वीकार किया जा सकता है.” हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि किसी तथ्य की भौतिकता का निर्धारण केस-टू-केस आधार पर किया जाना चाहिए.

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एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान मामले में अपीलकर्ता महावीर शर्मा के पिता रामकरण शर्मा ने 9 जून 2014 को एक्साइड लाइफ इंश्योरेंस कंपनी से 25 लाख रुपये की जीवन बीमा पॉलिसी ली थी, हालाँकि, पिता 19 अगस्त 2015 को एक दुर्घटना में मर जाते हैं, जिसके बाद अपीलकर्ता के बेटे ने एक्साइड लाइफ इंश्योरेंस से पॉलिसी क्लेम के लिए आवेदन दिया. कंपनी ने इस आधार पर इनकार कर दिया कि अपीलकर्ता के पिता ने पॉलिसी लेते समय अवीवा लाइफ इंश्योरेंस से ली गई सिर्फ एक पॉलिसी का विवरण छिपाया था, जिन्होंने अवीवा लाइफ इंश्योरेंस से प्राप्त सिर्फ एक पॉलिसी का खुलासा किया था, जबकि अन्य जीवन बीमा पॉलिसियों का विवरण नहीं दिया था.

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कंपनी द्वारा क्लेम खारिज किए जाने के बाद महावीर शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. शुरुआत में कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता द्वारा बताई गई पॉलिसी 40 लाख रुपये की थी, जबकि पॉलिसियों का विवरण मात्र 2.3 लाख रुपये था. पीठ ने इस बात पर विचार किया कि खुलासा न करने से बीमाकर्ता कंपनी को इतने कम समय में दो अलग-अलग जीवन बीमा पॉलिसियाँ लेने का मौका मिल गया है.

कोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनी का संदेह सही हो सकता है, लेकिन वर्तमान मामले में छिपाई गई अन्य पॉलिसियाँ महत्वहीन थीं. इसलिए, कोर्ट ने कहा कि इस मामले में थोड़ा अलग से विचार किया जा सकता है और वर्तमान गैर-प्रकटीकरण प्रस्तावित पॉलिसी पर कंपनी के निर्णय को प्रभावित नहीं करेगा. कोर्ट ने कहा, “चूंकि विचाराधीन पॉलिसी मेडिक्लेम पॉलिसी नहीं है. यह एक जीवन बीमा कवर है और बीमाधारक की मृत्यु दुर्घटना के कारण हुई है, इसलिए अन्य पॉलिसियों के बारे में उल्लेख न करना, ली गई पॉलिसी के संबंध में एक महत्वपूर्ण तथ्य नहीं है. अत: प्रतिवादी कंपनी द्वारा दावे को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है.”

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पीठ ने कहा कि बीमाकर्ता कंपनी को पता था कि बीमा लेने वाले व्यक्ति के पास बड़ी बीमा राशि की एक और पॉलिसी है और उसे लगता था कि बीमित व्यक्ति वर्तमान पॉलिसी के प्रीमियम भुगतान कर सकता है, इसलिए पॉलिसी दी गई थी. शीर्ष अदालत ने मृतक के बेटे की अपील को स्वीकार कर लिया और उपभोक्ता आयोग के फैसलों को रद्द कर दिया. इसलिए अदालत ने कंपनी को दावा को खारिज करने को अनुचित करार दिया और अपीलकर्ता को पॉलिसी के तहत सभी लाभ को प्रति वर्ष ९ प्रतिशत ब्याज के साथ देने का आदेश दिया.