रायपुर- विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति पर राज्यपाल का अधिकार खत्म करने संबंधी भूपेश सरकार के बिल का बीजेपी पुरजोर विरोध कर रही है. विधानसभा में बिल का विरोध करने के बाद बीजेपी विधायक दल ने आज राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात कर गहन रायशुमारी की है. हालांकि राज्यपाल से हुई मुलाकात के बाद बीजेपी ने कोई अधिकृत बयान जारी नहीं किया है. तमाम नेता इसे अनौपचारिक मुलाकात बता रहे हैं, लेकिन खबर हैं कि सरकार के इस हस्तक्षेप का जवाब दिए जाने से जुड़े विषय पर बातचीत हुई है.

नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह, पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल और अजय चंद्राकर देर शाम राजभवन पहुंचे थे. राजभवन जाकर कुलपति के अधिकार क्षेत्रों में कटौती किए जाने संबंधी विधेयक पर चर्चा किए जाने की रणनीति विधानसभा में उस वक्त ही तैयार कर ली गई थी, जब सदन के भीतर बिल का विरोध करते हुए बीजेपी विधायकों ने वाकआउट कर दिया था.

….तो क्या राज्यपाल रोक देंगी बिल?

विधानसभा में पारित होने वाला बिल राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाता है. राज्यपाल की मंजूरी प्राप्त बिल को दोबारा सदन के पटल पर पेश किया जाता है. अधिकृत तौर पर बिल के प्रावधान तब ही लागू होना माने जाते हैं. ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति संबंधी बिल क्या राज्यपाल रोक देंगी? राजभवन गए तमाम बीजेपी नेताओं ने इस बारे में कुछ भी खुलकर कहने से परहेज किया है, लेकिन सूत्रों का दावा है कि ऐसे तमाम पहलूओं पर सिलसिलेवार ढंग से विचार किया गया है. बताते हैं कि चर्चा के दौरान यूजीसी की गाइडलाइन पर भी बातचीत हुई, जिसमें यह दलील दी गई कि गाइडलाइन में स्पष्ट प्रावधान है कि विश्वविद्यालय पूरी तरह से स्वायत्त रहेंगे. सरकारों का दखल इस पर कम से कम होगा. ऐसे में यूजीसी की गाइडलाइन का सरकार उल्लंघन नहीं कर सकती.

जानिए आखिर यह बिल क्यूं लाया गया

राज्य में विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति और हटाने का अधिकार राज्यपाल के पास था. कुलपति की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार तीन नामों का पैनल राज्यपाल को भेजती थी. इन नामों में से किसी एक नाम को राज्यपालक की मंजूरी मिलती थी, लेकिन पिछले दिनों कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय और पं.सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति राज्यपाल की ओर से कर दी गई. इसके बाद ही राजभवन और भूपेश सरकार आमने-सामने आ गए. दरअसल राज्यपाल की ओर से कई गई नियुक्ति से सरकार सहमत नहीं थी. इन नियुक्तियों के पहले राजभवन ने सरकार से अभिमत भी नहीं लिया था.

कानूनी अभिमत के बाद पेश हुआ बिल

इधर सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारी कहते हैं कि सरकार ने तमाम लीगल मुद्दों पर चर्चा करने के बाद ही यह बिल विधानसभा में प्रस्तुत किया था. राजभवन से बिल लौटाए जाने के स्थिति में इसे दोबारा मंजूरी के लिए भेजा जाने का नियम है. ऐसी स्थिति में राज्यपाल को बिल को मंजूरी देनी होगी. हालांकि कई संदर्भ भी मौजूद हैं, जहां राज्यपालों ने बिल को कई-कई सालों तक रोके रखा.