पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा अब किसी भी वक्त हो सकती है। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही गठबंधन सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। इस बीच भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एंटी-इंकंबेंसी की समस्या से निपटने के लिए बड़ी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। पार्टी गुजरात मॉडल को आधार बनाकर बिहार में भी मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की योजना बना रही है। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर बिहार में मौजूदा विधायकों के प्रदर्शन की गहन समीक्षा चल रही है। गुजरात में सीआर पाटिल के नेतृत्व में 2022 विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने 108 में से 45 विधायकों के टिकट काट दिए थे। नतीजा यह रहा कि पार्टी को भारी बहुमत से जीत मिली। अब यही प्रयोग बिहार में दोहराने की तैयारी है।
30 से ज्यादा विधायकों पर गाज गिर सकती है
पार्टी सूत्रों के अनुसार बिहार में करीब 30 ऐसे मौजूदा विधायक हैं, जिनके टिकट कट सकते हैं। इन विधायकों को लेकर जनता में लंबे समय से असंतोष है। संगठन को मिले फीडबैक में साफ हुआ है कि स्थानीय जनता का गुस्सा सरकार या पार्टी नेतृत्व से नहीं, बल्कि उनके क्षेत्रीय विधायकों की कार्यशैली से है। यही कारण है कि भाजपा अब ऐसे चेहरों को बदलने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
पाटिल और मौर्य को सौंपी गई जिम्मेदारी
इस रणनीति को जमीन पर उतारने के लिए भाजपा ने गुजरात से सीआर पाटिल को बिहार भेजा है। उनके साथ दयाशंकर मौर्य को भी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। दोनों नेता प्रदेश संगठन और केंद्रीय नेतृत्व के बीच सेतु का काम कर रहे हैं। टिकट वितरण से पहले नेताओं और कार्यकर्ताओं से व्यापक विचार-विमर्श किया जा रहा है।
नई चेहरे, नई उम्मीद
पार्टी का मानना है कि यदि समय रहते बदलाव किया गया, तो एंटी-इंकंबेंसी का असर काफी हद तक कम किया जा सकता है। नए और लोकप्रिय चेहरों को मौका देकर जनता का उत्साह भी बनाए रखा जा सकता है। साथ ही विरोधी दलों की रणनीति को भी कमजोर किया जा सकता है।
गठबंधन का समीकरण भी बदल रहा
बिहार की राजनीति में फिलहाल गठबंधन के समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। सभी दल अपने-अपने स्तर पर तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगे हैं। ऐसे में भाजपा की यह रणनीति न केवल निर्णायक साबित हो सकती है, बल्कि सत्ता में वापसी की मजबूत नींव भी रख सकती है।
सत्ता वापसी की कुंजी बन सकती है यह रणनीति
भाजपा का यह कदम यह संकेत देता है कि पार्टी इस बार पारंपरिक राजनीति से हटकर व्यावहारिक और आक्रामक रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है। गुजरात मॉडल केवल एक चुनावी प्रयोग नहीं, बल्कि भाजपा के लिए सत्ता में वापसी की कुंजी बन सकता है।
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