पटना। कोरोना काल में बिहार विधानसभा का चुनाव आगे बढ़ते हुए दूसरे चरण तक पहुंच गया है. पहले चरण के मतदाताओं के उत्साह ने चुनावी पंडितों को चकित कर दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि मतदाताओं का इस बार किस ओर रुझान है. पिछले चुनाव में लालू और नीतीश की जोड़ी ने कमाल किया था, अबकी बार नीतीश भाजपा के साथ हैं, वहीं लालू की अनुपस्थिति में पार्टी के ध्वज वाहक बने उनके बेटे तेजस्वी क्या नीतीश को चुनौती दे पाएंगे. ऐसा माना जाता है कि जातिगत समीकरण बिहार के चुनाव प्रभावी कारक रहता है, लेकिन क्या इस चुनाव में क्या वोटरों की प्राथमिकता बदलती हुई दिख रही है.

बिहार विधानसभा चुनाव को कवर करने पहुंची लल्लूराम की टीम लगातार लोगों से बातचीत कर रही है. इसमें आम लोगों के साथ समाज के प्रबुद्ध तबकों के आने वाले लोग हैं. लल्लूराम डॉट कॉम की टीम अब तक करीब 1200 किमी की यात्रा कर चुकी है, जो चीजें सामने आ रही है, वह न केवल चौकाने वाली हैं, बल्कि अभूतपूर्व बदलाव का संकेत दे रही हैं. सबसे बड़ी बात जो नजर आ रही है, अपर कास्ट जो भाजपा का वोट बैंक रहा है, उसमें बिखराव की स्थिति दिख रही है.

इसकी एक वजह खुद भाजपा और दूसरी वजह नीतीश कुमार. भाजपा के कार्यकर्ताओं को यह स्पष्ट संदेश मिले दिख रहे है कि जिन सीटों में जदयू है, वहां पर उन्हें चिराग पासवान की तरफ मुड़ जाना है. दूसरा एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर है, जो नीतीश के 15 साल के शासनकाल के खिलाफ पैदा हुआ एंटी एन्कंबेंसी की वजह से हैं. बडी संख्या में युवा इस बार जातीय और धर्म से परे रोजगार के मसले पर तेजस्वी के पीछे लामबंद दिख रहे हैं. नीतीश कुमार की साख महिला वोटरों में अपेक्षाकृत बरकरार दिख रहा है. शराबबंदी की वजह से पिछले चुनाव में नीतीश कुमार के समर्थन में महिलाओं की उनकी साइकिल बांटने, भत्ता देने और अब 50 हजार रुपए देने की घोषणा का असर दिख रहा है. हालांकि, बड़ी संख्या में महिलाएं खामोश है.

इस चुनाव में चिराग पासवान की अगुवाई वाली एलजेपी चर्चाओं में है. बिहार के मतदाता इस बात को मान रहे हैं चिराग पासवान बीजेपी के प्लान बी का हिस्सा हैं. बीजेपी के कैडर का झुकाव एजीबी की तरफ मतदाताओं को भी साफ नजर आ रहा है. इस लिहाज से पहले फेस में चिराग पासवान बहुत प्रभावी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पा रहे हैं. वे रणनीति के अनुरूप भाजपा के वोट को जेडीयू में ट्रांसफर होने से रोक रहे हैं. जानकार बताते हैं कि इसके जवाब में नीतीश भी यही काम भाजपा के गढ़ में कर रहे हैं. जानकार बताते हैं कि नीतीश अपना काम बेहद खामोशी से करते हैं. लालू यादव यूँ ही नहीं कहते कि नीतीश के पेट मे दांत हैं. अगर ऐसा हुआ तो फायदा महागठबंधन को होगा.

बिहार चुनाव में जो बात सबसे ज्यादा मुखर है, वह है – नीतीश के खिलाफ लोगों की नाराजगी. लोग खासकर युवा – नीतीश सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं. अगर यही गुस्सा वोटिंग में कायम रहा तो एनडीए को बड़ी पराजय झेलनी होगी. एनडीए के नेताओं की रैलियों में कम भीड़ और तेजस्वी की रैलियों में भारी भीड़ और उसमें लोगों का उत्साह बदलाव के स्पष्ट संकेत दे रहा है.