पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों को लेकर एनडीए के भीतर सीट बंटवारे को लेकर हलचल तेज हो गई है। बीजेपी के बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान रविवार को पटना पहुंचे और उन्होंने सबसे पहले जेडीयू नेता व केंद्रीय मंत्री ललन सिंह से मुलाकात की। इसके बाद वे हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) प्रमुख जीतन राम मांझी के आवास पर पहुंचे। लेकिन यहां मुलाकात ज्यादा देर नहीं चली महज 15 मिनट में ही बीजेपी नेता बाहर निकल गए। धर्मेंद्र प्रधान के साथ बिहार प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी और संगठन महामंत्री विनोद तावड़े भी मांझी से मुलाकात में मौजूद रहे। तीनों नेता बैठक के बाद मीडिया से बिना कोई बात किए वहां से निकल गए। वहीं जीतन राम मांझी ने भी संवाददाताओं से सिर्फ इतना कहा कि यह एक औपचारिक बैठक थी और कोई राजनीतिक चर्चा नहीं हुई। इसके बाद वे दिल्ली रवाना हो गए।

15 सीट नहीं मिली तो 100 पर लड़ेंगे

गौरतलब है कि इससे पहले जीतन राम मांझी ने खुलकर कहा था कि उनकी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा 15 से 20 सीटों की मांग कर रही है। उन्होंने साफ कहा था कि अगर सीटें नहीं मिलीं तो वे 100 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे। मांझी का लक्ष्य है कि 2025 में पार्टी को मान्यता प्राप्त दल का दर्जा मिले जिसके लिए या तो 8 सीटें जीतनी होंगी या 6% वोट हासिल करना होगा।

मेंदिल्ली रवाना होते ही बदले सुर

पटना एयरपोर्ट पर मीडिया से बात करते हुए मांझी का रुख कुछ नरम दिखाई दिया। उन्होंने कहा कि बातचीत सीटों को लेकर हो रही है और बहुत जल्द सब कुछ तय हो जाएगा। उनके इस बयान से यह संकेत मिला कि अंदरखाने बातचीत आगे बढ़ रही है और समझौते की कोशिशें जारी हैं।

बीजेपी का फोकस जीतने वाले उम्मीदवारों पर

बीजेपी ने अपने भीतर भी टिकट बंटवारे की प्रक्रिया को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, इस बार केवल उन्हीं नेताओं को टिकट मिलेगा जिनकी जनता के बीच पकड़ मजबूत है और जिनकी जीत की संभावनाएं अधिक हैं। ऐसे विधायक जिनका परफॉर्मेंस कमजोर रहा है या जिन पर एंटी-इनकंबेंसी का खतरा है उनका टिकट कटना लगभग तय माना जा रहा है।

सीट बंटवारे में एनडीए के भीतर तकरार तय?

धर्मेंद्र प्रधान की पटना यात्रा और मांझी के साथ महज 15 मिनट की मुलाकात के बाद से यह अटकलें तेज हो गई हैं कि एनडीए के भीतर सीट बंटवारे को लेकर मतभेद गहराते जा रहे हैं। मांझी की पार्टी अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है जबकि बीजेपी बड़ी साझेदार होने के नाते सीटों पर पकड़ बनाए रखना चाहती है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में यह सियासी गणित क्या मोड़ लेता है।