पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों में राजनीतिक दलों ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने हाल ही में अपनी पहली सूची जारी की है जिसमें कुल 57 उम्मीदवारों के नाम शामिल हैं। इस सूची में चार महिला उम्मीदवारों को जगह मिली है, लेकिन एक भी मुस्लिम उम्मीदवार का नाम नहीं है। इससे पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने भी अपनी पहली सूची में 71 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए थे, जिसमें कोई मुस्लिम उम्मीदवार शामिल नहीं था। अब जेडीयू की सूची से भी मुस्लिम चेहरों की गैरमौजूदगी ने इस बहस को जन्म दे दिया है कि क्या जेडीयू भी बीजेपी की राह पर चल पड़ी है? क्या नीतीश कुमार का मुस्लिम समुदाय से भरोसा कम होता जा रहा है?
चर्चा का बना विषय
हालांकि यह केवल पहली सूची है और आने वाले दिनों में जेडीयू द्वारा और भी उम्मीदवारों की घोषणाएं की जानी हैं, लेकिन पहली सूची में ही मुस्लिम प्रतिनिधित्व का न होना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है।
11 उम्मीदवारों को मिला था टिकट
पिछले विधानसभा चुनावों (2020) में जेडीयू ने अपने 115 उम्मीदवारों में 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, लेकिन दुर्भाग्यवश उनमें से कोई भी जीत दर्ज नहीं कर सका। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी जेडीयू ने किशनगंज सीट से मुजाहिद आलम को मैदान में उतारा था, जिन्हें कांग्रेस के उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा समाजवादी पार्टी से जीतने वाले जमा खान को जेडीयू में शामिल कर उन्हें मंत्री पद भी दिया गया था जो जेडीयू की ओर से मुस्लिम समुदाय को साधने की एक कोशिश मानी गई थी। बावजूद इसके 2025 के चुनाव में जारी पहली सूची में मुस्लिमों की गैरमौजूदगी नई राजनीतिक दिशा की ओर इशारा करती दिख रही है।बात सिर्फ उम्मीदवारों की सूची तक सीमित नहीं है। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद जेडीयू नेताओं के कुछ बयानों ने भी विवाद को जन्म दिया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने एक सभा में कहा था कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग नीतीश कुमार को वोट नहीं देते फिर भी मुख्यमंत्री उनके लिए लगातार काम करते रहे हैं। वहीं सीतामढ़ी से सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने जीत के बाद कहा था कि अब वे यादव और मुस्लिम समुदाय के लिए काम नहीं करेंगे क्योंकि उन्होंने उन्हें वोट नहीं दिया। इन बयानों ने यह संकेत दिए कि जेडीयू के भीतर एक नई सोच जन्म ले रही है जो परंपरागत वोटबैंक से हटकर किसी और रणनीति की ओर इशारा करती है। वहीं कुछ समय पहले वक्फ बोर्ड की एक बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अनुपस्थिति ने इन अटकलों को और बल दिया कि उनका मुस्लिम समुदाय से जुड़ाव कमजोर हो रहा है। हालांकि, नीतीश कुमार ने चुनाव से पहले मुस्लिम समाज द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में भाग लेकर इन चर्चाओं को शांत करने की कोशिश की थी। फिलहाल जेडीयू की पहली सूची में मुस्लिम उम्मीदवारों की अनुपस्थिति पर राजनीतिक विश्लेषक नजरें टिकाए हुए हैं। आगे आने वाली सूचियों से साफ होगा कि जेडीयू की चुनावी रणनीति वाकई बदल रही है या यह केवल एक प्रारंभिक चरण का हिस्सा है।
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