पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में चर्चा में रहने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी सियासी रण में कोई कमाल नहीं दिखा पाई. बांकीपुर विधानसभा सीट से लड़ रही पुष्पम को बुरी हार मिली है. उन्हें करीब 1500 वोट ही मिले है, जो कि नोटा से भी ढ़ाई गुना कम वोट हैं. इस सीट से बीजेपी के नितिन नबीन ने जीत दर्ज की. इसके अलावा पुष्पम प्रिया बिस्फी सीट से भी उम्मीदवार थीं और वहां भी वे हार रही हैं. पुष्पम प्रिया ने ट्वीट कर कहा था कि बिहार में EVM हैक हो गई है और प्लूरल्स पार्टी के वोट को बीजेपी ने अपने पक्ष में कर लिया है.

कौन है पुष्पम प्रिया चौधरी?

मार्च 2020 में अचानक एक दिन कई अख़बारों में इश्तेहार जारी कर चर्चा में आने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी बिहार के दरभंगा ज़िले की रहने वाली हैं. पुष्पम प्रिया चौधरी भले ही सियासत में नई हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि सियासत उन्हें विरासत में न मिली हो. हक़ीक़त ये है के वो जनता दल (यूनाइटेड) के लीडर और एमएलसी रह चुके विनोद चौधरी की बेटी हैं. इनके दादा उमाकांत चौधरी भी सियासी लीडर रहे हैं. इसलिए इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज के दौर में वालिद के नाम पर बेटा या बेटी अगर सियासत में आये, तो इसमें कोई चौंकने वाली बात होनी चाहिए. पुष्पम प्रिया चौधरी ने लंदन के मशहूर लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की डिग्री ली है. इसके अलावा पुष्पम ने इंग्लैंड के द इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज यूनिवर्सिटी से डेवलपमेंट स्टडीज में भी मास्टर्स की डिग्री ली है.

सियासत में आने की क्या थी वजह ? 

पुष्पम प्रिया चौधरी का राजनीति में एंट्री किसी ‘फिल्मी एंट्री’ से कम नहीं है. पुष्पम ने ‘प्लूरल्स’ नाम की पार्टी बनाई है. पार्टी का निशान सफेद घोड़ा है, जिसमें पंख लगे हुए हैं. पार्टी का नारा जन गण सबका शासन है. पुष्पम प्रिया चौधरी बिहार को बदलने आई थी. उनका कहना है कि बिहार में समाज को तालीमयाफ़्ता (शिक्षित) बनाने, गरीबी हटाने, रोज़गार देने, बेहतर सेहत देने, किसानों का भला करने, अपना हक मांगने जैसे मुद्दे हैं. जिन पर वो काम करेंगी और बिहार को तरक़्क़ीयाफ़्ता रियासत बनाएंगी. पुष्पम खुद कहती हैं कि वो नितीश कुमार के अलावा किसी लीडर को फॉलो नहीं करती हैं.

क्या है काला पहनने का राज़ ? 

पुष्पम प्रिया के काले पकड़े पहनने के पीछे की सोच भी काफी दिलचस्प है. वो कहती हैं कि वैसे तो सारे नेता सफेद कपड़े ही पहनते हैं. लेकिन संविधान में ऐसा कोई ड्रेस कोड नेताओं के लिए तय नहीं किया गया है. इसलिए उन्हें जो पसंद है वो वही पहनती हैं. और काला रंग उनका फेवरेट है.