Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सुगबुगाहट तेज हो चुकी है। इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ती दिख रही है। पार्टी ने अब युवा नेतृत्व को प्राथमिकता देने की तैयारी शुरू कर दी है। ऐसे में भाजपा के कई वरिष्ठ विधायक जो अब 70 से 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं, उनकी टिकट कटने की पूरी संभावना जताई जा रही है।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अनुशंसित मानकों को अपनाते हुए प्रदेश भाजपा 75 वर्ष के बाद चुनावी राजनीति से ‘आराम’ की नीति पर विचार कर रही है। इसका मतलब साफ है, जो वरिष्ठ नेता अब तक चुनावी जंग में लगातार जीतते आ रहे थे, वे अब सिर्फ संगठनात्मक भूमिका तक सीमित रह सकते हैं।

इन दिग्गजों को कट सकता है पत्ता!

इस संभावित फैसले का सीधा असर भाजपा के उन दिग्गज चेहरों पर पड़ेगा, जिन्होंने दशकों तक न केवल जीत दर्ज की बल्कि सरकार में अहम जिम्मेदारियां भी निभाईं। इनमें बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव से लेकर आठ बार के विधायक प्रेम कुमार और कई बार मंत्री रह चुके अमरेंद्र प्रताप सिंह जैसे नेता शामिल हैं।

नंदकिशोर यादव (उम्र: 72 वर्ष)
पटना साहिब से सात बार के विधायक और मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष। अगर पार्टी 75 साल की सीमा तय करती है, तो वे एक बार और मैदान में उतर सकते हैं, वरना उन्हें भी संगठन की जिम्मेदारी दी जा सकती है।

अमरेंद्र प्रताप सिंह
पूर्व मुख्यमंत्री हरिहर सिंह के बेटे। पांच बार विधायक और पूर्व कृषि मंत्री। उम्र के चलते उनका टिकट भी कट सकता है।

प्रेम कुमार (उम्र: 70+)
गया से लगातार आठ बार विधायक। विभिन्न विभागों में मंत्री रहे। इस बार उनका टिकट कटना लगभग तय माना जा रहा है।

अरुण सिन्हा
कुम्हरार से पांच बार विधायक। उम्र सीमा के कारण इनके नाम पर भी संशय है।

रामनारायण मंडल
बांका से छह बार विधायक, दो बार मंत्री। अब उम्र की वजह से अगली पारी मुश्किल नजर आ रही है।

सीएन गुप्ता (उम्र: 75+)
छपरा से दो बार विधायक। 75 की उम्र पार कर चुके हैं, इसलिए उम्र की नीति के पहले शिकार हो सकते हैं।

राघवेंद्र प्रताप सिंह (उम्र: 75+)
बरहरा से दो बार विधायक। उम्र सीमा पार करने के कारण इस बार चुनावी दौड़ से बाहर हो सकते हैं।

क्या रणनीति बना रही है बीजेपी?

पार्टी के भीतर इस बात को लेकर मंथन जारी है कि चुनावी टिकट किसे दिया जाए और किसे संगठन में भेजा जाए। कुछ विधायकों की नजर अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने पर है, तो कुछ युवा नेता पहले से ही तैयारी में जुटे हैं।

जातीय समीकरण और स्थानीय समीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए भाजपा नेतृत्व बहुत सोच-समझकर निर्णय लेने वाला है। बिहार भाजपा के लिए 2025 का चुनाव केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि एक संगठनात्मक पुनर्गठन का अवसर भी है। अब देखना दिलचस्प होगा कि अंतिम सूची में कौन बचेगा और कौन छंटनी का शिकार बनेगा।

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