Arif Mohammad Khan: बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान बीते रविवार को थिंक-टैंक ‘ग्रैंड ट्रंक रोड इनिशिएटिव’ (जीटीआरआई) के जरिए आयोजित एक संवाद सत्र में पहुंचे थे, जहां उन्होंने संस्कृत के कई श्लोक सुनाए. मुस्लिम समाज से आने के बाद भी उनके द्वारा संस्कृत में श्लोक सुनकर वहां हाल में मौजूद लोग तालियां बजाने लगे. उन्होंने कहा कि, ‘‘लंबे समय तक गुलामी के दौर’’ ने भारत के लोगों को उनके ‘‘शाश्वत सांस्कृतिक मूल्यों’’ के प्रति उदासीन बना दिया है जो राष्ट्र के सामने आने वाली सभी समस्याओं के समाधान की कुंजी हैं.

खुद को विद्यार्थी के रूप में देखता हूं- राज्यपाल

आरिफ मोहम्मद खान को संस्कृत में महारात संस्कृत के श्लोक सुनाते हुए आरिफ मोहम्मद खान ने इस बात पर बल दिया कि वह खुद को एक विद्यार्थी के रूप में देखते हैं, न कि एक विद्वान के रूप में. उन्होंने कहा कि, ऐसा लगता है कि लंबे समय तक गुलामी सहने के कारण हमारे शाश्वत मूल्यों के प्रति हमारी उदासीनता बढ़ गई लेकिन हमारी विरासत हमें हमारी कई समस्याओं को हल करने की कुंजी प्रदान करती है.

राज्यपाल ने कहा कि, राष्ट्रगान को ही देख लीजिए, जिसमें ‘जय’ जो जीत का संकेत देता है, लेकिन ‘विजय’ से अलग है जो दूसरे की अधीनता को दर्शाता है.’’ पिछले माह ही बिहार के राज्यपाल का पदभार संभालने वाले आरिफ मोहम्मद ने कहा कि, यह नालंदा की भूमि है जो शिक्षा का प्राचीन केंद्र है. इसे आक्रमण में नष्ट कर दिया गया था, लेकिन, वहां से फैला ज्ञान नष्ट नहीं किया जा सका. यह आज भी जीवित है.

अपनी जिम्मेदारियों को लेकर कही ये बात

कार्यक्रम के बाद उन्होंने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि, मेरा मानना ​​है कि चाहे राज्यपाल हो, मंत्री हो या सांसद, सार्वजनिक जीवन में किसी को भी पद यह देखकर नहीं मिलता कि वह किस समुदाय से आता है, इसीलिए मिलता है कि वह भारत का नागरिक है. इसलिए, भले ही मैं जन्म से मुसलमान हूं, लेकिन मेरी जिम्मेदारियों को मेरी धार्मिक पहचान से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.

आरिफ मोहम्मद खान ने आगे कहा कि, मेरा यह भी मानना ​​है कि किसी को भी इस तरह का व्यवहार नहीं करना चाहिए, जिससे उस जाति या समुदाय की चेतना को बढ़ावा मिले. जिससे वह संबंधित है, क्योंकि इससे आगे चलकर सामाजिक तनाव पैदा हो सकता है.

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