पटना. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को पटना के ज्ञान भवन में आयोजित बुद्धिजीवियों के सम्मेलन में भाग लिया। इस दौरान उन्होंने बिहार के ऐतिहासिक योगदान की सराहना करते हुए मौजूदा हालात पर चिंता जताई और राज्य के पतन पर आत्ममंथन की जरूरत बताई।

अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि आजादी से लेकर कई सालों तक बिहार का देश के राजनीतिक, सामाजिक जीवन और इतिहास में बहुत बड़ा योगदान रहा है। मगर आज मैं एक पुरानी बात याद दिलाने आया हूं – हमें सोचना होगा कि क्या हो गया उस उज्जवल इतिहास वाले बिहार को, जो चलते-चलते बीमारू राज्य की श्रेणी में गिना जाने लगा?

गृह मंत्री ने कहा कि यह वही बिहार है जिसने संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में देश को डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसा नेतृत्व दिया। आज़ादी से पहले और बाद में लोकतंत्र पर हमलों के खिलाफ लड़ाइयों में बिहार हमेशा अग्रणी रहा। मगर अब वही बिहार पिछड़े राज्यों में गिना जाने लगा है। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि कभी देश को दिशा देने वाला यह राज्य विकास की दौड़ में पिछड़ता चला गया।

‘बदलाव की ज़रूरत’ पर जोर

अमित शाह ने बिहार की जनता और बुद्धिजीवियों से आग्रह किया कि वे राज्य की वर्तमान स्थिति पर गंभीरता से विचार करें और यह तय करें कि राजनीतिक नेतृत्व कैसा हो, जो बिहार को फिर से उसकी पुरानी गौरवशाली स्थिति तक पहुंचा सके।उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने देशभर में विकास की गति तेज की है और बिहार भी उसका हिस्सा बन सकता है, यदि सही नीतियों और नेतृत्व को मौका दिया जाए।

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