Bihar News: बिहार की बेटियां पढ़ें और खूब आगे बढ़ें, ये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शुरू से ही सोच रही है। इसे लेकर अपने शासनकाल के शुरुआती वर्षों यानि साल-2006 में ही राज्य के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की शुरुआत की। वक्त के साथ-साथ इसका काफी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है। आज बिहार में गांव हो शहर हर जगह सरकारी स्कूलों में बेटियों की उपस्थिति बढ़ी है। साइकिल योजना की वजह से बेटियों के सपनों को पंख लगे हैं और आज शिक्षा के क्षेत्र नित नई ऊंचाइयों को छू रही हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साइकिल योजना के लिए खुद की थी पहल, योजना की शुरुआत के दिलचस्प हैं किस्से
इस योजना की शुरुआत के किस्से दिलचस्प हैं। एक बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना जिला में एक सरकारी समारोह में शिरकत कर रहे थे। इस समारोह में स्कूल में पढ़ने वाली दलित लड़कियों को साइकिल वितरण किया जा रहा था। वितरण के बाद जब लड़कियां कतार में खड़ी होकर साइकिल चला कर जाने लगीं तो उस मंजर को देख मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार बेहद खुश हुए। उन्होंने तभी अधिकारियों से कहा कि क्यों न सरकारी स्कूल में पढ़नेवाली तमाम लड़कियों को साइकिल दी जाए और इस तरह से बिहार में लड़कियों के लिए मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की शुरुआत हुई।

लड़कों को सायकिल देने के लिए ऐसे हुई शुरुआत

ऐसे ही सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले लड़कों के लिए भी साइकिल योजना की शुरुआत के रोचक किस्से हैं। एक बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोकामा में अपने एक नजदीकी मित्र के निधन के बाद अंतिम संस्कार से लौट रहे थे। तब जोरदार बारिश हो रही थी। लौटने के समय मोकामा के नजदीक मोर गांव के पास जब वे पहुंचे तब उनका काफिला एक सरकारी स्कूल के पास कुछ धीमा हुआ। उस दौरान कुछ लड़के बारिश में भींगकर पैदल जा रहे थे, तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने साथ मौजूद अधिकारियों से अपनी मन की बातें बताई। कहा- अगर लड़कों के पास भी साइकिल होता तो जल्दी से अपने घर निकल जाते। इसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री ने तत्कालीन मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह को फोन किया और उनसे पूछा कि अगर सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले लड़कों को भी साइकिल दी जाए तो पूरी खर्च कितनी लगेगी। इस घटना के कुछ महीने बाद ही सरकारी स्कूल में पढ़नेवाले लड़कों को भी साइकिल योजना का लाभ मिलने लगा।

शुरुआती दौर में इस योजना के तहत 2000 रुपये दी जाती थी राशि

बिहार में लड़कियां एक समय बाद अक्सर पढ़ाई छोड़ देती थी। पढ़ाई छोड़ने के कई कारण रहे हैं लेकिन प्रमुख कारण विद्यालय से घर की दूरी रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस कारण ही मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की शुरुआत की और इसके लिए सरकारी स्कूलों में नौवीं में पढ़ने वाली लड़कियों को साइकिल उपलब्ध करवाने का काम शुरु किया। पहले इसके लिए राशि 2000 रुपये दी जाती थी। फिर बाद में यह राशि बढ़ा दी गई। साइकिल उपलब्ध होने से छात्र-छात्राओं को पढ़ाई करने के लिए आने-जाने में सहूलियत मिलने लगी जिसके कारण ग्रामीण विद्यालय शिक्षा पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है।


2024 तक लगभग 98 लाख छात्राएं उठा चुकी हैं साइकिल योजना का लाभ

बिहार में कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं, जहां घर से स्कूल दूर होते हैं। ऐसे में छात्राओं को स्कूल आने-जाने में काफी परेशानियां होती थी। बस और कैब की सुविधा नहीं होने की वजह से छात्राओं को पैदल सड़क पर चलना पड़ता था। छात्राओं की सुविधा को देखते हुए हीं इस योजना की शुरुआत की गई और इस योजना के अंतर्गत कक्षा 9वीं में शिक्षा प्राप्त कर रही छात्राओं को साइकिल खरीदने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाने लगी। वर्ष 2007 से 2024 तक मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना के अंतर्गत कुल 97,94,445 छात्राओं को साईकिल प्रदान की गई है। वर्ष 2007 में जहां साइकिल पाने वाली छात्राओं की संख्या 15,6,092 थी, वहीं साल 2020 में यह बढ़कर 70,10,387 हो गई।

अब खाते में डीबीटी के जरिए जाता है पैसा

साल 2007 में राज्य सरकार ने 9वीं में पढ़ रही छात्राओं को साइकिल देना शुरू किया था। 2007 में नौवीं में पढ़ने वाली सभी 1.63 लाख छात्राओं को राशि दी गयी थी लेकिन दो साल बाद 2009 में स्कूलों में नामांकन दर वृद्धि होने से नौवीं में पढ़ने वाले छात्रों को भी इस योजना का लाभ दिया जाने लगा। राज्य के हाइस्कूलों में पढ़ने वाले सभी छात्र-छात्राओं को साइकिल योजना की राशि शुरुआत में 2 हजार रुपये दिये जाते थे। पहले स्कूल में छात्र-छात्राओं के बीच राशि बांटी जाती थी। बाद में स्कूलों में कैंप लगाकर राशि बांटे जाने लगी। इसके बाद सभी विद्यार्थियों के बैंक एकाउंट खोलकर बैंक के खाते में राशि भेजी जाने लगी। यह राशि खाते में डी0बी0टी0 के जरिए भेजा जाता है। धीरे-धीरे यह राशि 2 हजार रुपये से बढ़कर 2500 रुपये हो गई और फिर वर्ष 2019 में इसे 3 हजार रुपये कर दिया गया।

2016 में पहली बार छात्र-छात्राओं के बैंक एकाउंट में डाली गई राशि

साल 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव की वजह से नौवीं क्लास में नामांकित करीब 16.42 लाख छात्र-छात्राओं को साइकिल योजना की राशि दी गयी थी, लेकिन 2016 से यह नियम लागू कर दिया गया कि जिन छात्र-छात्राओं का क्लास में 75 फीसदी उपस्थित रहेगी अब उन्हीं लोगों को मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना का लाभ मिल पाएगा। इसके बाद छात्र-छात्राओं के बैंक एकाउंट में 2016 में साइकिल के लिए पहली बार 2500 रुपये की राशि दिसंबर महीने में एक साथ डाली गई। मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना पर 2016-17 में बिहार सरकार ने लगभग 353.82 करोड़ रुपए खर्च किए।

मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की देश-विदेशों में खूब हो रही चर्चा


बिहार की साइकिल योजना की चर्चा धीरे-धीरे देश के दूसरे राज्यों और विदेशों में भी जमकर हो रही है। इसके सर्वे के लिए भी लोग बिहार में आये। इसके बाद राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना को बड़ी सामाजिक क्रांति के रूप में देखा और नारी सशक्तिकरण के लिए बड़ा हथियार बताया। इस योजना के बाद राज्य के हाइस्कूलों में छात्राओं की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। जब 2006 में इस योजना की शुरुआत हुई तो नौंवी में 1.63 लाख छात्राएं पढ़ती थी, वहीं 2015 में नौंवी क्लास में 8.15 लाख छात्राओं का नामांकन हो चुका था। मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की वजह से स्कूलों में छात्र-छात्राओं का अनुपात 54:46 का हो गया है और वह दिन दूर नहीं जब दोनों का प्रतिशत बराबर-बराबर हो जाएगा। वित्तीय वर्ष 2023-24 के अपने बजट में बिहार सरकार ने मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना की राशि 50 करोड़ रुपये कर दी। इस योजना का लाभ सभी वर्ग के विद्यार्थियों को मिलता है लेकिन लाभ लेने के लिए सभी विद्यार्थियों का सरकारी स्कूल में नामांकन अनिवार्य है। इस योजना के क्रियान्वयन के बाद सरकारी स्कूलों में नामांकन करने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। इस योजना के आने से बिहार की बेटियों के स्कूल जाने की संख्या बढ़ी है और वह समाज में अपनी पहचान बनाने में सफल हो रही हैं। मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना को पिछड़े अफ्रीकी देश अपना रहे हैं और इसकी चर्चा यू0एन0 में भी हो रही है। बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की दूरदर्शी सोच और उनकी योजना को अफ्रीकी देशों द्वारा अपनाए जाने और उसके चर्चा किए जाने से पूरे बिहार को गर्व की अनुभूति हो रही है।


लाभुक अब बन गए हैं वोटर

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साइकिल योजना की शुरुआत कर बेटियों को गति और शक्ति के बीच समन्वय स्थापित करने अभूतपूर्व प्रशिक्षण दिलाया है। जिसका नतीजा है कि आज बड़ी तादाद में बेटियां स्कूल जा रही हैं और शिक्षा हासिल कर रही हैं। शिक्षा से सीधा ताल्लुक रखने वाली साइकिल जैसी योजनाओं के पहल से लाभुक अब वोटर बन गए हैं। वोटरों में इनकी संख्या भले अधिक नहीं हो लेकिन ये युवा चेहरे हवा का रुख मोड़ने का माद्दा रखते हैं। कहा जाता है कि जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है। कुछ इसी की तर्ज पर ये जिस ओर झुकेंगे, उसकी नैया पार लगा देंगे। बिहार में ये योजना जब से शुरु हुई है तब से लेकर अब तक चल रही है और मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार उनकी उम्मीदों पर कायम बने हुए हैं।

2007-08 के बजट ने बिहार में बालिका शिक्षा की रखी युगांतकारी नींव

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद बिहार नये बदलाव के दरवाजे पर खड़ा था। 2007-08 के बजट ने बिहार में बालिका शिक्षा की युगांतकारी नींव रखी थी। 2007-08 में सरकार ने 1 लाख 63 हजार छात्राओं को साइकिल खरीदने पर 32 करोड़ 60 लाख रुपये खर्च किये थे। इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर एक शोध केन्द्र है जो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में स्थापित है और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की भागीदारी से संचालित है। इस संस्था ने इकोनॉमिक्स के असिस्टेंट प्रोफेसर नीतीश प्रकाश और एसोसिएट प्रोफेसर कार्तिक मुरलीधरन का एक शोध प्रकाशित किया था। यह शोध अप्रैल 2013 से जून 2013 के बीच किया गया था। इस शोध में उस डाटा का इस्तेमाल किया गया था जो घर-घर जा कर इकट्ठा किया गया था। शोध में बताया गया था कि साइकिल योजना सफल रही थी। इसके लागू होने से हाईस्कूलों में लड़कियों की संख्या बढ़ी थी। 2008-09 के दौरान 2 लाख 72 हजार लड़कियों की साइकिल खरीद पर सरकार ने 54 करोड़ 43 लाख रुपये खर्च किये थे। 2009-10 वित्तीय वर्ष में लाभ लेने वाली लड़कियों की संख्या 4 लाख 36 हजार पहुंच गयी। इनकी साइकिल खरीद के लिए 87 करोड़ 33 लाख रुपये व्यय किये गये। 2021 में बालिका साइकिल योजना के लिए 458 करोड़ 69 लाख रुपये जारी किये गये थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है 2007-08 में शुरू हुआ यह सफर कहां से कहां तक पहुंच गया।

लड़कियों के शिक्षित होने से बिहार में प्रजनन दर में भी आई है कमी

मुख्यमंत्री साइकिल योजना का कमाल ही था कि वर्ष 2005 में कक्षा 10 की मैट्रिक परीक्षा में महज 1.87 लाख छात्राएं उपस्थित हुईं थीं, जो 2024 में बढ़कर 8.72 लाख हो गई। साइकिल के घुमते हुए पहियों ने एक ऐसी खामोश क्रांति पैदा की जिससे शैक्षणिक स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन आ गया। 2001 में बिहार की महिला साक्षरता दर महज 33.6 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011 में बढ़कर 53 प्रतिशत पहुंच गई है। लड़कियों के शिक्षित होने से बिहार की प्रजनन दर भी घट रही है। वर्ष 2005 में बिहार की प्रजनन दर 4.3 थी। लड़कियों के शिक्षित होने से अब प्रजनन दर घटकर 2.9 पर आ गई है।

बिहार की साइकिल योजना पर अमेरिका के एक प्रोफेसर ने अध्ययन किया और यूनाइटेड नेशंस को अपनी रिपोर्ट दी थी। वहीं यूनाइटेड नेशंस ने भी इस मॉडल को अपनाया है। उसके द्वारा अफ्रीका के जाम्बिया और कुछ अन्य देश में लड़कियों में शिक्षा के प्रति रुचि जगाने के लिए साइकिल स्कीम को लागू कराते हुए धनराशि भी उपलब्ध कराई गई है। जांबिया की सरकार ने वहां लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बिहार की मुख्यमंत्री साइकिल योजना को अपनाया। इससे वहां की बालिका शिक्षा पर अच्छा असर देखने को मिला है।

पोषाक योजना के माध्यम से भी छात्राओं को दी जाती है 1500 रुपये की राशि

बिहार में साइकिल योजना की तरह बेटियों को मजबूत और शसक्त बनाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पोषाक योजना की भी शुरुआत की। कक्षा 9वीं से 12वीं तक की छात्राओं के लिए इस योजना की शुरुआत सत्र 2011-12 में की गई। प्रारंभ में 9वीं से 12वीं कक्षा की छात्राओं को हजार रुपये प्रति वर्ष की राशि दी जाती थी। 2018-19 में यह राशि बढ़ाकर 15 सौ रुपये कर दी गयी। यह राशि डी0बी0टी0 यानी डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर के तहत भेजी जाती है। इस योजना के तहत छात्राओं को पोशाक के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इससे बालिकाओं को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करने और उनकी उपस्थिति स्कूलों में बढ़ाने में मदद मिली है। यह योजना लड़कियों की शिक्षा को सशक्त बनाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए मील का पत्थर साबित हुई है।


बिहार सरकार ने 75% उपस्थिति की खत्म की अनिवार्यता

इस साल विधानसभा में तृतीय अनुपूरक बजट 2025 पर कहा कि 2005 से पहले शिक्षा का बजट 4000 करोड़ से कुछ अधिक था। वहीं 2025-26 में शिक्षा का बजट 60,964.87 करोड़ रुपये है। बिहार सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव करते हुए साइकिल और पोशाक योजना के लिए 75% उपस्थिति की अनिवार्यता अब समाप्त कर दी है। इस योजना का लाभ लेने के लिए अब उपस्थिति की कोई न्यूनतम सीमा नहीं है। अब छात्रों को शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में ही साइकिल और पोशाक उपलब्ध करा दी जाएगी। इसकी घोषणा इसी साल बजट सत्र के दौरान की गई। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि आज बिहार में बेटियां जिस मुकाम पर हैं उसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बहुत बड़ी भूमिका है। बिहार के बेटियों को आगे बढ़ाने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोई कसर नहीं छोड़ा है।

ये भी पढ़ें- तो इसलिए मंगनी लाल मंडल को बनाया जा रहा है राजद का प्रदेश अध्यक्ष, पार्टी प्रवक्ता शक्ति सिंह ने कर दिया बड़ा खुलासा