पटना। बिहार की सियासत हमेशा से जातिगत समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय का वोट जीत-हार का फैसला करता है। इसी आधार पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने बिहार की राजनीति में पकड़ मजबूत करने के लिए नई रणनीति बनाई है।

सभी सीटों पर लड़ेगी बसपा

बसपा प्रमुख मायावती ने हाल ही में घोषणा की कि उनकी पार्टी बिहार की सभी विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। खास बात यह है कि टिकट वितरण में सबसे ज्यादा प्राथमिकता दलित, अति पिछड़ा, पिछड़ा और अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को दी जाएगी। मायावती का मानना है कि इन वर्गों को एकजुट कर लिया जाए तो बिहार जैसे राज्य में चुनावी समीकरण बदल सकते हैं।

यूपी का फार्मूला

मायावती का अनुभव उत्तर प्रदेश की राजनीति में इसी बहुजन समीकरण को साधने का रहा है। अब वही मॉडल वह बिहार में लागू करने की कोशिश कर रही हैं। बसपा का फोकस सिर्फ टिकट बंटवारे पर नहीं बल्कि बूथ स्तर तक संगठन खड़ा करने पर भी है। गांव-गांव तक पैठ बनाने के लिए पार्टी छोटे-छोटे जातीय समूहों पर काम कर रही है।

मौजूदा राजनीतिक स्थिति में संभावनाएं

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक फिलहाल बिहार की राजनीति एनडीए और महागठबंधन में बंटी हुई है। लेकिन बहुजन राजनीति में नई जगह बनाने की संभावनाएं नकारा नहीं जा सकतीं। राजद का वोट बैंक पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग है, जबकि जदयू अति पिछड़ों पर पकड़ बनाए हुए है। कांग्रेस भी इन वर्गों को साधने की कोशिश करती रही है। वहीं दलितों में अब भी रामविलास पासवान की विरासत लोक जनशक्ति पार्टी को मजबूत करती है।

चुनौतियों से भरा रास्ता

बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और अल्पसंख्यक वोट पहले से ही कई दलों में बंटा हुआ है। ऐसे में इन समुदायों को एकजुट करना आसान काम नहीं होगा। फिर भी मायावती और उनके करीबी नेताओं का मानना है कि अगर इन वर्गों का एक हिस्सा भी बसपा के साथ आ गया तो बिहार की राजनीति में नया समीकरण उभर सकता है।