राजकुमार भट्ट की विशेष रिपोर्ट
रायपुर. बात एक ऐसी संसदीय सीट की जो छत्तीसगढ़ की न्यायधानी है. एक ऐसी ससंदीय सीट की रिपोर्ट जो कल्चुरी राजवंश में दक्षिण कौशल की राजधानी के हिस्से रही है. एक ऐसी लोकसभा सीट की कहानी जिसका राजनीतिक इतिहास दशकों पुरानी है. बात भाजपा के लिहाज से छत्तीसगढ़ में सबसे मजबूत लोकसभा सीट की. बात उस सीट की जिसे कांग्रेस से छिनकर भाजपा ने अपना गढ़ बना लिया. और बात अनारक्षित वर्ग में उस सीट की, जिस पर अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले नेताओं का एकतरफा वर्चस्व रहा है. बात उस सीट पर जिस पर संघ का सबसे ज्यादा प्रभाव माना जाता है. और बात उस संसदीय सीट कि जिसे मोहले, जोगी और जूदेव का इलाका कहा जाता है. तो ऐसे प्रभावशाली लोकसभा सीट में इस चुनाव किसका दिखेगा प्रभाव, किसका चलेगा जादू, कौन साबित होने वाला यहां का बाजीगर? पढ़िए बिलासपुर का सियासी समीकरण.

बिलासपुर…छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर. यही बिलासपुर कभी कल्चुरी राजवंशों की राजधानी रही रतनपुर के हिस्से रही है. अरपा नदी के तट पर बसा बिलासपुर बिलास केवटिन के नाम पर स्थापित तकरीबन 4 सौ से अधिक साल पुराना नगर है. भौलोलिक दृष्टिकोण से उत्तरीय क्षेत्र में तकरीबन 2 सौ किलोमीटर तक फैला यह इलाका जल-जंगल से समृद्ध है. बिलासपुर की पहचान अचानकमार के घने जंगल से भी है. जिसे अब टाइगर रिजर्व के नाम से जाना जाता है. खनिज संपदा से भी भरपूर इस इलाके में देश में कोयला खनन एसीसीईएल का मुख्यालय भी इसी बिलासपुर में है. देश में रेलवे को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला जोन भी बिलासपुर ही है. छत्तीसगढ़ का एक मात्र केन्द्रीय विश्वविद्यालय भी बिलासपुर में ही है. और बिलासपुर में ही देश के शक्तिपीठों में से एक रतनपुर महामाया. हर क्षेत्र में ऐसे सम्पन्न गौरवशाली बिलासपुर का राजनीतिक इतिहास भी दशकों पुराना है. इस बिलासपुर ने देश को कई ताकतवर नेता दिए हैं. यहां से जोगी भी निकले और जूदवे भी.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

सन् 1952 में हुए देश के पहले संसदीय चुनाव में द्वि सदस्यीय व्यवस्था की वजह से बिलासपुर लोकसभा से दो सांसद चुने गए थे, कांग्रेस के दोनों सांसदों में से एक सरदार अमर सिंह सहगल तो दूसरे रेशम लाल जांगड़े थे. महज 25 वर्ष की उम्र में सतनामी समाज के अपनी प्रतिष्ठा स्थापित कर चुके रेशम लाल जांगड़े ने 1957 में अपनी सफलता दोहराते हुए अखिल भारतीय रामराज्य परिषद के सूरजनाथ पांडेय को 17 हजार मतों के अंतर पराजित किया. इसके बाद रेशम लाल (मध्यप्रदेश) विधानसभा की ओर रुख कर लिया.

बरकरार रहा कांग्रेस का वर्चस्व

रेशम लाल जांगड़े के विधानसभा जाने का कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं हुआ, बल्कि कांग्रेस के टिकट पर अन्य प्रत्याशी लगातार जीत हासिल करते रहे. 1962 में कांग्रेस के डॉ. चंद्रभान सिंग के साथ स्वतंत्र उम्मीदवार सत्यप्रकाश ने जीत हासिल की. 1967 के चुनाव में सरदार अमर सिंह सहगल ने एक बार फिर बिलासपुर में वापसी करते हुए भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी मदन लाल को पराजित किया. अगले चुनाव में कांग्रेस के रामगोपाल तिवारी ने बागडोर संभाली और भारतीय जनसंघ के मनहरण लाल पांडे को पराजित किया.

झेलना पड़ा आपातकाल का गुस्सा

1977 में कांग्रेस प्रत्याशी को आपातकाल को लेकर मतदाताओं का गुस्सा झेलना पड़ा. जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर निरंजन प्रसाद केसरवानी ने कांग्रेस के अशोक राव को पराजित किया. लेकिन जनता सरकार के नेताओं के बीच मचे सिर-फुटौव्वल की वजह से 1980 में हुए चुनाव में बिलासपुर सीट पर गोदिल प्रसाद अनुरागी की जीत के साथ फिर से  कांग्रेस के खाते में आ गई. 1984 को हुए चुनाव में कांग्रेस ने खेलन राम जांगड़े को मैदान में उतारा और उन्होंने एक लाख से ज्यादा मतों के अंतर से भाजपा के गोविंदराम मिरी को पराजित किया.

भाजपा प्रत्याशी बनकर उतरे रेशमलाल

लोकसभा चुनाव में लगातार हार रही भाजपा ने 1989 के चुनाव में कभी कांग्रेस में रहे रेशम लाल जांगड़े को अपना प्रत्याशी बनाया. 1972 में ही जनसंघ में प्रवेश कर चुके रेशमलाल जांगड़े ने क्षेत्र में अपने दबदबे का सबूत देते हुए कांग्रेस के खेलनराम को पराजित कर दिया. लोकसभा और विधानसभा के झूल रहे रेशमलाल एक बार नेपत्थ में चले और उनकी जगह भाजपा ने 1991 में गोविंदराम मिरी पर फिर दांव लगाया लेकिन कांग्रेस के खेलनराम को पराजित नहीं कर पाए. लेकिन यह कांग्रेस बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से अंतिम जीत साबित हुई.

अनारक्षित सीट पर अनुसूचित जाति के नेता मोहले का रहा वर्चस्व

सन् 1996 में हुए चुनाव में भाजपा ने अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले नेता पुन्नूलाल मोहले पर अपने दांव लगाया, जिन्होंने कांग्रेस के खेलनराम को पराजित कर उनका राजनीतिक करियर को ही समाप्त कर दिया. 1998 के चुनाव में पुन्नूलाल मोहले ने कांग्रेस की महिला प्रत्याशी कन्या कुमारी (तान्या अनुरागी) को, 1999 में कांग्रेस के रामेश्वर कोसरिया और 2004 में डॉ. बसंत फारे को पराजित किया. लगातार 4 जीत हासिल करने के बाद पुन्नूलाल 2008 में विधानसभा चले गए.

जोगी बनाम जूदेव वाला सबसे दिलचस्प चुनाव

सन् 2009 इस चुनाव में बिलासपुर सीट पर देश भर की नजर थी. क्योंकि इस बार मैदान में थे जशपुर राजपरिवार और भाजपा में सबसे ताकतवर नेताओं में से एक दिलीप सिंह जूदेव. लेकिन जूदेव के मुकाबले भी कोई कम ताकतवर घराने की नेता चुनाव में नहीं थी. जूदेव के सामने कांग्रेस की ओर से थी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री की पत्नी रेणु जोगी. भले रेणु जोगी चुनाव मैदान में थी लेकिन चेहरा असल मायने में अजीत जोगी ही था. लिहाज देश भर में इस चुनाव को जोगी बनाम जूदेव की तौर ही देखा गया था. भाजपा का गढ़ बन चुके बिलासपुर सीट को जीतने कांग्रेस ने भी पूरी ताकत लगा दी थी. लेकिन जूदेव के आगे बिलासपुर में टिकना किसी के लिए आसान नहीं था. जय जूदेव के नारे बीच आखिकार परिणाम भाजपा के पक्ष में ही आया. दिलीप सिंह जूदेव ने रेणु जोगी को सवा लाख से अधिक मतों से पराजित कर इतिहास रच दिया. जूदेव के 2013 में निधन के बाद 2014 में भाजपा ने लखनलाल को टिकट दिया, जिन्होंने भाजपा से कांग्रेस में प्रवेश कर चुकीं करुणा शुक्ला को पौने दो लाख से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया.

2019 में दो नए संघ बनाम संगठन वाले दो नए चेहरों के मुकाबला

2019 के इस चुनाव में भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद लखनलाल साहू की टिकट काटकर संघ की पृष्ठभूमि वाले अरुण साव को मैदान में उतारा है. आम लोगों के लिए अनजान लेकिन संघ और भाजपा की जान अरुण साव का ग्रामीण क्षेत्रों में काफी दखल माना जाता है. लिहाजा भाजपा ने इस बर संघ के प्रभाव वाले बिलासपुर सीट पर संघ से ही आने वाले नेता पर भरोसा जताया है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस प्रदेश संगठन महामंत्री अटल श्रीवास्तव को अपना उम्मीदवार बनाया है. अटल श्रीवास्तव विधानसभा चुनाव में टिकट पाने से वंचित रह गए थे. अटल श्रीवास्तव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पसंद के उम्मीदवार हैं. एक तरह से दोनों पार्टी की ओर बिल्कुल नए चेहरों को मौका दिया गया है. दोनों के पास चुनाव लड़ने का कोई अनुभव नहीं है.

विधानसभा चुनाव के नतीजे का क्या दिखेगा असर ?

अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव के नतीजे का असर बिलासपुर सीट में दिखेगा? क्योंकि बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल 9 विधानसभा सीटें आती है. इसमें बिलासपुर जिले से- बिलासपुर, बिल्हा, मस्तुरी, बेलतरा, कोटा, मरवाही और तखतपुर, जबकि मुंगेली जिले से – मुंगेली और लोरमी शामिल है. इस 9 विधानसभा सीटों में वर्तमान में मरवाही, लोरमी और कोटा में अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस का कब्जा है. जबकि मुंगेली, बिल्हा, बेलतरा और मस्तुरी में भाजपा का कब्जा है. वहीं कांग्रेस के खाते में सिर्फ बिलासपुर और तखतपुर की सीट शामिल है. मतलब यहां भाजपा और जनता कांग्रेस खासा प्रभाव विधानसभा में दिखा है. ऐसे लोकसभा में यहां असर किसका कितना रहेगा यह चुनाव परिणाम ही बताएगा.