आज हम अग्रहोरा की पावन धरा की कीर्ति यश ध्वज महाराज अग्रसेन को पुण्य को स्मरण करते हैं. विविध ग्रंथो के माध्यम से यह माना जाता है कि आज से 5000 वर्ष पूर्व द्वापर के अंतिम चरण में भगवान राम के पुत्र कुश की 35वीं पीढ़ी प्रताप नगर राज्य पर राजा बल्लभ सेन नामक राजा के कुल भूषण के रूप में महाराज अग्रसेन का जन्म हुआ था. जनहित की कई बड़ी योजना जो आज संचालित होती है यदि उसके मूल में देखें तो महराज अग्रसेन कि प्रेरणा आप को नज़र आएगी. उनके आदर्शो का अनुसरण करते हुए आज अग्रवंश उनके बताएं पथ पर आगे बढ़ते हुए देश की प्रगति में सहभागी हैं और मानव कल्याण,मानव सेवा के कई प्रकल्पों के माध्यम से अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर रही है.
आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन्, को न जीवति मानवः। परं परोपकारार्थं, यो जीवति स जीवति।।
इस संसार में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता? परंतु, जो दूसरों के कल्याण के लिए जीता है, वही वास्तव में जीता है. इसी को अपने जीवन ध्येय वाक्य बनाकर अग्रवंश अग्रणी और अग्रसर है.
अंत्योदय योजना के जनक महाराज अग्रसेन
महाराज अग्रसेन एक उदारवादी संवेदनशील राजा थे.राज्य में उनकी भूमिका को देखें तो मानव शरीर में जो मुख की भूमिका होती है उसी चिंतन की भाव भूमि पर उनका राज्य संचालन होता था. मुख भोजन तो करता है पर शरीर के सभी अंगों को बिना किसी भेदभाव के पोषण करता है तृप्त और संतुष्ट रखता है, मेरे विचार से महाराज अग्रसेन के राज्य संचालन की कुशल व्यवस्था में गोस्वामी तुलसीदास जी की इन पंक्तियों की झलक दिखाई देती है.
मुखिआ मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक। पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक
इसलिए वह अपनी व्यवस्था के सुखद स्वरूप को समाज के उपेक्षित विस्थापित अभावग्रस्त अंतिम पंक्ति के व्यक्ति में स्थापित करना चाहते थे. जहां उन्हें राज्य को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने की योजना थी. जिससे राज्य समृद्ध बने साथ ही समाज के अंतिम व्यक्ति की विपन्नता की पीड़ा के दंश को भी वे समझते थे मुरझाई आकृति में सुखद भविष्य की एक सुखद मुस्कुराहट की रेखा खींचना उनकी साधना थी इसी लिए हम महाराज अग्रसेन को अंत्योदय योजना का जनक कहते हैं.हमेशा वह गरीबों और उपेक्षित लोगों के बारे में सजग गंभीर रहते थे. मैं ने जहां तक उनके बारे में अध्ययन किया वे आकृति प्रकृति और उपस्थिति से राजा थे पर पर उनकी सोच सभी का हित चाहने वाले एक संवेदनशील व्यक्ति की थी.मानव को मानवता की सेवा करने संदेश था. महाराज अग्रसेन की जीवन शैली वैचारिक भावभूमि विशुद्ध मानवतावाद पर केंद्रित थी.उन्ही पवित्र उदार परंपरा का निर्वाह आज भी अग्र समाज की जीवन शैली में देखा जा सकता है.महाराज अग्रसेन जैसे विराट सोच चिंतन के व्यक्ति के लिए कुछ लिखना बड़ी चुनौती है उन्हें उनके विचार को लकीरों में बांधना बड़ा कठिन है फिर भी उनकी पावन जयंती पर कुछ विचार प्रस्तुत है.
सामाजिक और आर्थिक क्रांति को आपको समझना है तो आपको “एक ईंट और एक रुपया” के भाव को समझना होगा यह कोई साधारण सोच नहीं थी,एक दूरदर्शिता के साथ पूर्ण संकल्प था जिसको महाराज अग्रसेन ने अपने राज्य में प्रारंभ किया. मानव जीवन की तीन आवश्यकताएं आवास भोजन और भविष्य के प्रति आश्वासन होना होता है अपने राज्य में नए आने वालों के लिए प्रत्येक घर से एक ईंट और एक रुपया देने का आदेश था.इसके पीछे महाराज अग्रसेन की विलक्षण वित्तीय प्रबंधन की सोच को समझा जा सकता है. ईंट से मकान बनाया जाएगा भूमि राजव्यवस्था आवंटित करेगी प्राप्त धन से व्यापार करेगा उससे उसका वर्तमान भविष्य दोनों सुरक्षित रहेंगे. अंतिम पंक्ति के व्यक्ति की स्थापना सत्ता की सफलता होती है.व्यक्ति के द्वारा प्रस्तावित व्यापार की संभावना पर उसे भूमि आवंटित की जाती थी. क्योंकि महाराज अग्रसेन के राज्य में संबंधित व्यक्ति को सहयोग करने के बाद मॉनिटरिंग भी किया जाता था जिसे आज के समय में ऑडिट से भी आप समझ सकते हैं की उनका व्यापार कैसा चल रहा है केवल औपचारिकता का निर्वाह तो नहीं हुआ यह भी सुनिश्चित किया जाता था. व्यापार का सतत आकलन होता था, जिससे व्यक्ति पूरी निष्ठा के साथ अपने कार्य को पूरा करने के लिए राज्य के विकास में अपना योगदान देने के लिए श्रम किया करते थे. इसीलिए अग्र समाज श्रमवीर और धर्मवीर दोनों होते हैं.
महाराज अग्रसेन सामाजिक व्यवस्था के प्रति हमेशा जागरूक रहते थे,वह इस गहन रहस्य को समझते थे कि चाहे परिस्थितियों सम और विषम कैसी भी है यदि समाज में संवाद संवेदना समरसता की भाव धारा की त्रिवेणी निरंतर बहती रहेगी बड़ी सी बड़ी कठिनाइयों का सामना किया जा सकता है.यही सामाजिक व्यवस्था का सशक्त आधार है और यही महाराज अग्रसेन की अवधारणा है.
महाराज अग्रसेन की अर्थव्यवस्था
महाराज अग्रसेन की अर्थव्यवस्था में दूरदर्शिता थी वह एक उदारवादी अर्थतंत्र के उपासक थे,जिसका आधार धर्म था.महाराज अग्रसेन का मानना था की धर्म आश्रित अर्थ का स्रोत पवित्र होता है स्थाई होता है,धर्म की भूमि में अर्जित किए गए धन में योग का जन्म होता है,धर्म विरुद्ध अर्थ की कोख से भोग का जन्म होता है.वे धर्म की सशक्त भाव भूमि व्यापार -वाणिज्य के माध्यम से अर्थ, अर्जन के पक्षधर थे.आज भी हमारे अग्रबंधु यदि कोई बड़े संस्थान उद्योग फैक्ट्री लगाते हैं उस स्थान के निर्माण के पूर्व संस्थान परिसर में मंदिर पहले बनवाते हैं,धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, यह महाराज अग्रसेन की ही उदार परंपरा का निर्वाह है लोगों की मदद के लिए सेवा भाव के लिए हमेशा अग्र समाज आगे रहते हैं इसीलिए महाराज अग्रसेन की वंश परंपरा का यश आज भी देखा और समझा जा सकता है.
महाराज अग्रसेन का उदारवादी चिंतन..
महाराज अग्रसेन अपने राज्य में किसी जाति धर्म संप्रदाय मान्यता विशेष को ध्यान में रखकर उसे सहयोग नहीं करते थे,वे उदार मानवतावादी विचारक थे. उन्हें हम एक भारत श्रेष्ठ भारत की प्रथम आधारशीला रखने वाले संकल्प पुरुष के रूप में भी आप समझ सकते हैं.उनके राज में नारी सम्मान का विशेष ध्यान रखा जाता था. महाराज अग्रसेन सामानता समरसता के उपासक न्याय प्रिय उदारवादी सामाजिक अवधारणा के प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं जाने जाते रहेंगे..
अग्रवंश के उन्ही पुष्पों से पूरा देश आज सुरभित हैं.. महाराज अग्रसेन जयंती की शुभकामनायें..
संदीप अखिल सलाहकार संपादक न्यूज़ 24 मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ /लल्लूराम डॉट कॉम