रमेश बत्रा,तिल्दा नेवरा. शहर के सिंधी समाज के लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद हेमू कालाणी के जन्म जयंति समारोह को बड़े धूम धाम से मनाया गया.सिंधी समाज के गणमान्य व्यक्तियों ने सुबह 8 : 30 बजे शहीद हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थल पर पहुंचकर पूरे सम्मान के साथ उनकी 94वां जन्म जयंती समारोह पूरे उल्सास के साथ मनाया. लोगों ने जमकर जयकारों साथ देश भक्ति के नारे लगाए,इसी के साथ सभी ने प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.

देश की आजादी में लाखों शूरवीरों ने अपने प्राणों के आहुति देकर भारत माता को अंग्रेजों की गुलामी की जजीरों से छुटाकारा दिलाकर देश को आजाद किया था. गौरतलब हो कि शहीदों के गौरव शाली इतिहास के पन्नों में सबसे कम उम्र मात्र 19 वर्ष की आयु में आजादी के लिए फांसी के तख्ते पर चढ़कर शहीद हेमू कालाणी ने बलिदान दिया था. आज स्वतंत्रता संग्रमा सेनानियों में सिंध प्रदेश के शूरवीर हेमू कलाणी का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है.

शहीद हेमू कालाणी का जीवन परिचय

हेमू कालाणी का जन्म सिंध प्रदेश के सुख्खर में 23 मार्च 1923 को हुआ था. उनके पिता का नाम पेसूमल कालाणी एवं मां का नाम जेठी बाई था.हेमू कालाणी जब वे किशोर अवस्था में पहुंचे तो वे आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए, तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का लोगों से आग्रह किया. सन् 1942  में जब महात्मागांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े. 1942 में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी.

हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त-व्यस्त करने की योजना बनाई. वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए. हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई. उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की. वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी। 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दी गई. जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की. इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया.