भोपाल। कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे….सपनों के मर जाने से….ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में…लिखे जो खत तुम्हें…बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ….जैसे अनेक गीतों और कविताओं को रचने वाले आज उस कवि की जयंती है जिन्होंने आधुनिक हिंदी काव्य को अमर बनाने काम किया. हम याद कर रहे हैं देश के सबसे लोकप्रिय गीतकार-कवि रहे गोपाल दास नीरज को.
4 जनवरी 1924 को गोपाल दास नीरज का जन्म उत्तप्रदेश के इटावा के निकट पुरावली गाँव में हुआ था. उनके पिता का बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना था. सन् 1842 में एटा से उन्होंने हाई स्कूल परीक्षा पास की थी. कुछ समय तक इटावा के कचहरी में टाइपिस्ट रहने के बाद उन्होंने एक सिनेमाघर में नौकरी और फिर दिल्ली जाकर एक सफाई विभाग में बतौर टाइपिस्ट काम करने लगे. यहाँ से निलके तो कानपुर पहुँचे. कानपुर में एक कॉलेज में क्लर्क की नौकरी. ज्यादा दिन तक यहां भी मन लगा और एक प्राइवेट कंपनी फिर से टाइपिस्ट बन गए. हालांकि नौकरी के तमाम उठा-पटक के बीच पढ़ाई जारी रही. प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया.
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे मेरठ, अलीगढ़ कॉलेज में अध्यापक रहे. इस दौरान वे लगातार कवि सम्मेलनों में शिरकत करने लगे थे. काव्यपाठ से मिलने वाली लोक्रपियता के साथ मुंबई जा पहुँचे और वहाँ बतौर गीतकार खुद को स्थापित करने में लग गए. इसमें उन्हें सफलता भी मिली. ‘नई उमर की नई फसल’ फिल्म के साथ उन्होंने फिल्मी गीतकार के रूप में एक नई शुरुआत की. पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे ‘कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे’ और ‘देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा’ बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे मुंबई रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे. फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा. हालांकि उन्होंने मुंबई को अपना ठिकाना नहीं बनाया और कुछ वर्षों के बाद लौटकर अलीगढ़ आ गए. उत्तरप्रदेश सरकार ने उन्हें सम्मानित करते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया था.
लंबी बीमारी से जुझते हुए 93 वर्ष की आयु में दिल्ली एम्स में उनका इलाज के दौरान उनका निधन हो गया था.
नीरज के काव्य संग्रह
हिन्दी साहित्यकार सन्दर्भ कोश के अनुसार नीरज की कालक्रमानुसार प्रकाशित कृतियाँ इस प्रकार हैं: संघर्ष (1944), अन्तर्ध्वनि (1946), विभावरी (1948), प्राणगीत (1951), दर्द दिया है (1956), बादर बरस गयो (1957), मुक्तकी (1958), दो गीत (1958), नीरज की पाती (1958), गीत भी अगीत भी (1959), आसावरी (1963), नदी किनारे (1963), लहर पुकारे (1963), कारवाँ गुजर गया (1964), फिर दीप जलेगा (1970), तुम्हारे लिये (1972), नीरज की गीतिकाएँ (1987)
सम्मान
विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार
पद्म श्री सम्मान (1991), भारत सरकार
यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार (1994), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
पद्म भूषण सम्मान (2007), भारत सरकार
फिल्मफेयर
नीरज जी को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्नीस सौ सत्तर के दशक में लगातार तीन बार यह पुरस्कार दिया गया। उनके द्वारा लिखे गये पुरस्कृत गीत हैं-
1970: काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चन्दा और बिजली)
1971: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान)
1972: ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर)
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नीरज को याद करते हुए उनकी कविता पोस्ट की है. उन्होंने लिखा है-
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों,
मोती व्यर्थ बहाने वालों,कुछ सपनों के मर जाने से,
जीवन नहीं मरा करता है।- नीरज जीजीवन के विविध रंगों को अपने गीतों और कविताओं में ढालकर मनुष्य को अप्रतिम सुख-दु:ख का अनुभव कराने वाले महाकवि, गीतकार गोपालदास 'नीरज' जी की जयंती पर कोटिश: नमन! pic.twitter.com/MwywBvpiHR
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) January 4, 2021