Lalu Yadav 78th Birthday: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव आज 11 जून को अपना 78वां जन्मदिन मना रहे हैं. इस अवसर को RJD “सामाजिक न्याय एवं सद्भावना दिवस” के रूप में पूरे बिहार में धूमधाम से मना रही है. पार्टी ने लालू के जन्मदिन को सामाजिक उत्थान और गरीबों के कल्याण से जोड़ते हुए कई कार्यक्रमों की योजना बनाई है.

सक्रिय राजनीति से दूर होने के बाद भी 1977 से लेकर आज तक लालू यादव बिहार की राजनीति का केंद्र बने हुए हैं. लालू यादव का जीवन और उनका राजनीतिक सफर न केवल बिहार बल्कि भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो सामाजिक न्याय, पिछड़े वर्गों के उत्थान और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई का प्रतीक रहा है.

खेतिहर मजदूर के घर में हुआ था जन्म

लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून, 1948 को बिहार के गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में एक गरीब यादव परिवार में हुआ था. उनके पिता कुंदन राय खेतिहर मजदूर थे, और मां मरछिया देवी थीं. लालू छह भाइयों और एक बहन गंगोत्री देवी में पांचवें थे. बचपन में लालू भैंस चराते थे और उनकी सादगी भरी शुरुआत ने उन्हें जनता के बीच “लालू” नाम से लोकप्रिय बनाया. उनकी बहन गंगोत्री के अनुसार, बचपन में उनका नाम “प्रसाद” था, लेकिन उनकी गोल-मटोल और गोरी शक्ल के कारण उन्हें “लालू” बुलाया जाने लगा.

महज 29 साल की उम्र में बने सांसद

लालू ने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर और एलएलबी की डिग्री हासिल की. यहीं से उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और 1973 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ (PUSU) के अध्यक्ष बने. लालू का राजनीतिक सफर 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के बिहार आंदोलन से शुरू हुआ. 1977 में मात्र 29 साल की उम्र में वे जनता पार्टी के टिकट पर छपरा (अब सारण) से लोकसभा सांसद चुने गए, जो उस समय सबसे कम उम्र के सांसदों में से एक थे. 1980-1989 तक वे बिहार विधानसभा के सदस्य रहे और 1989 में विपक्ष के नेता बने.

1990 में बने मुख्यमंत्री

1990 में जनता दल की जीत के बाद लालू ने रामसुंदर दास को हराकर बिहार के मुख्यमंत्री का पद संभाला. इस दौरान उन्होंने सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के उत्थान को अपने शासन का केंद्र बनाया. लालू यादव का मुख्यमंत्री कार्यकाल (1990-1997) बिहार की राजनीति में एक युगांतकारी दौर था. उन्होंने पिछड़े वर्गों, दलितों और अल्पसंख्यकों को सशक्त करने के लिए कई कदम उठाए.

लालू यादव के कुछ प्रमुख फैसले

चरवाहा विद्यालय- शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए चरवाहा विद्यालय की स्थापना की, जिसका नारा था, “गैया-बकरी चरती जाए, मुनिया-बेटी पढ़ती जाए.”

पिछड़ों को आवाज- 1990 के दशक में जब बिहार में जातिगत भेदभाव चरम पर था, लालू ने पिछड़े वर्गों को आत्मसम्मान और राजनीतिक भागीदारी दी.

मंडल आयोग- मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में उनकी भूमिका ने पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण दिलाने में मदद की.

सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई- 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को समस्तीपुर में रोककर उन्होंने सांप्रदायिकता के खिलाफ मजबूत रतैया अपनाया, जिसके कारण बीजेपी ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया.

चारा घोटाला और इस्तीफा

हालांकि, उनके शासन को “जंगल राज” के रूप में भी आलोचना झेलनी पड़ी, क्योंकि कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनके प्रशासन को विवादों में घेरे रखा. 1996 में चारा घोटाले का खुलासा हुआ, जिसमें चाईबासा और दुमका कोषागार से करोड़ों रुपये की हेराफेरी का आरोप लगा.

25 जुलाई, 1997 को लालू ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपी. 2013 में सीबीआई कोर्ट ने उन्हें चारा घोटाले में पांच साल की सजा और 25 लाख रुपये का जुर्माना सुनाया. बाद में दुमका कोषागार मामले में 14 साल की सजा और 60 लाख रुपये का जुर्माना लगा. हालांकि, 2013 में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद वे जेल से बाहर आ गए.

रेल मंत्री के रूप में उपलब्धियां

2004 में यूपीए सरकार में लालू यादव को रेल मंत्री बनाया गया. उनके कार्यकाल में भारतीय रेलवे ने घाटे से मुनाफे की ओर रुख किया, जो वैश्विक बिजनेस स्कूलों में केस स्टडी बन गया. उनकी प्रबंधन शैली, जैसे कि गैर-एसी कोचों में सुधार, कुल्हड़ में चाय और किराए में कमी, ने उन्हें लोकप्रिय बनाया.

हाल के वर्ष और स्वास्थ्य

हाल के वर्षों में लालू की तबीयत खराब रही है. 2025 में उनके कंधे की सर्जरी हुई और वे दिल्ली के एम्स में भर्ती रहें. डायबिटीज के कारण उनके घाव ठीक होने में समय लग रहा है, लेकिन वे धीरे-धीरे स्वस्थ हो रहे हैं.

पारिवारिक और पार्टी विवाद

लालू के परिवार में हाल ही में विवाद सुर्खियों में रहा. अनुष्का यादव प्रकरण सामने आने के बाद उन्होंने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी और परिवार से निकाल दिया. जिसके बाद तेज प्रताप ने अपने अकाउंट हैक होने का दावा किया. यह घटना राजद की आंतरिक कलह को दर्शाती है. उनकी पत्नी राबड़ी देवी और बेटे तेजस्वी यादव वर्तमान में राजद की रीढ़ हैं, जबकि बेटी मीसा भारती राज्यसभा सांसद हैं.

लालू का प्रभाव और विरासत

लालू यादव को बिहार में सामाजिक न्याय का प्रतीक माना जाता है. उनके समर्थक उन्हें पिछड़े वर्गों और दलितों का मसीहा मानते हैं, जिन्होंने ऊंच-नीच के भेद को कम करने का प्रयास किया. उनके आलोचक भ्रष्टाचार और जंगल राज के आरोप लगाते हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव निर्विवाद है. 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले लालू की रणनीति और स्वास्थ्य पर सबकी नजरें हैं.

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