रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने प्रवासी मज़दूरों की दिक्कतों और बदहाल क्वारेंटाइन सेंटर्स में इन प्रवासी मज़दूरों को ज़बरिया समय-सीमा से अधिक रोके जाने को लेकर प्रदेश सरकार पर हमला बोला है। साय ने कहा है कि कोरोना मोर्चे पर प्रदेश सरकार बुरी तरह विफल रही है। प्रदेश के उच्च न्यायालय ने मज़दूरों के लिए बनाई गई योजनाओं का तीन हफ्तों में ब्योरा भी मांगा है। साय ने राजधानी के टाटीबंध में मज़दूरों के गुरुवार को हुए प्रदर्शन का ज़िक्र कर प्रदेश सरकार पर प्रवासी श्रमिकों के प्रति बेरुखी दिखाने का आरोप भी लगाया है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री साय ने कहा कि क्वारेंटाइन सेंटर्स में अन्य प्रदेशों से आए छत्तीसगढ़ के मज़दूरों को निर्धारित 14 दिनों की समय-सीमा से अधिक ज़बरिया रोका जा रहा है। कतिपय सेंटर्स में इन मज़दूरों को 22 दिनों तक महज़ इसलिए रोका गया है क्योंकि उनके स्वाब सैंपल की जाँच रिपोर्ट अब तक नहीं आई है। साय ने इसे अमानवीय बताया और कहा कि क्वारेंटाइन सेंटर में रोकने के बजाय रिपोर्ट आने तक इन श्रमिकों को होम आइसोलेशन में रखा जाना बेहतर विकल्प हो सकता है। इस तरह क्वारेंटाइन सेंटर्स में निर्धारित समय-सीमा से अधिक उन्हें ज़बरिया रोकना अपने ही गाँव में एक तरह से क़ैद में रखे जाने जैसा है। साय ने कहा कि प्रदेश के अमूमन सभी क्वारेंटाइन सेंटर्स बदइंतज़ामी और बदहाली के चलते नारकीय यंत्रणा के केंद्र बने हुए हैं। स्वाब सैंपल की जाँच रिपोर्ट निर्धारित क्वारेंटाइन पीरियड में आ जाए, यह सुनिश्चित करना राज्य सरकार का दायित्व है और यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो यह प्रदेश सरकार की नाकामी का प्रमाण है। प्रदेश के मंत्री डॉ. शिव डहरिया के इस कथन को कि, जाँच रिपोर्ट आने तक क्वारेंटाइन सेंटर में ही रहना होगा, साय ने सत्तावादी अहंकार का परिचायक बताया और कहा कि प्रदेश सरकार अपनी ज़िमेमदारी ठीक तरह से नहीं निभा पा रही है और इसके कारण अन्य प्रदेशों से आए छत्तीसगढ़ के श्रमिक बिलावज़ह परेशान हो रहे हैं।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष साय ने कहा कि प्रवासी मज़दूरों के मामले में प्रदेश सरकार का रवैया शुरू से दोहरे मापदंडों का रहा है। इन मज़दूरों की वापसी के समय भी प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रेल मंत्रालय से तालमेल बिठाने के बजाय सियासी ड्रामेबाजी की और जो श्रमिक किसी तरह अपने प्रयासों से छत्तीसगढ़ की सीमा तक पहुँचे तो एक तो उन्हें प्रदेश की सीमा में प्रवेश करने से रोके जाने की शिकायतें सामने आईं, दूसरे प्रदेश की सीमा पर उनके लिए भोजनादि तक की कोई समुचित व्यवस्था नहीं की गई। कई श्रमिकों को लौटा दिया गया जिनमें एक बीमार बुजुर्ग की मौत तक हो गई। साय ने कहा कि अब भी प्रदेश सरकार लगातार आ रहे प्रवासी मज़दूरों के लिए कोई संवेदना नहीं दिखा रही है। जो लोग राजधानी तक पहुंच रहे हैं, उन्हें उनके गृहनगर या ग्राम तक पहुँचाने की भी कोई व्यवस्था प्रदेश सरकार के स्तर पर नहीं की जा रही है। गुरुवार को राजधानी के टाटीबंध में इन परेशान मज़दूरों का प्रदर्शन व रास्ता जाम करना प्रदेश सरकार की नाकामी का एक और नमूना है जो स्पष्ट करता है कि प्रवासी मज़दूरों के नाम पर प्रदेश सरकार केवल ज़ुबानी जमाखर्च कर अपने दोहरे राजनीतिक चरित्र का परिचय दे रही है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष साय ने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री बघेल विभिन्न प्रदेशों से पहुँचे प्रवासी श्रमिकों के कल्याण और रोज़गार की बड़ी-बड़ी बातें करके भी अपने झूठ का रायता ही फैलाने में लगे हैं। केंद्रीय श्रम मंत्री ने पिछले अप्रैल माह में प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर सेस फंड का उपयोग निर्माणी मज़दूरों को आर्थिक लाभ प्रदान करने और कल्याणकारी योजनाएँ बनाने को कहा था। इसी आशय का पत्र केंद्रीय श्रम सचिव ने राज्यों के मुख्य सचिव को लिखा था। साय ने कहा कि इसके बाद देश के 17 राज्यों ने इस दिशा में कारग़र पहल कर इन मज़दूरों को लाभ पहुँचाना शुरू कर दिया लेकिन छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने लगभग दो माह बीतने के बाद भी एक तो ऐसी कोई योजना बनाई ही नहीं, दूसरे इस राशि का इस्तेमाल अन्य मदों में कर दिया! प्रदेश सरकार की बदनीयती, कुनीतियों और आर्थिक कुप्रबंधन की यह जीती-जागती मिसाल है। अब भी प्रदेश सरकार के पास न तो प्रवासी श्रमिकों के रोज़गार और कल्याण की कोई सुस्पष्ट और सुविचारित कार्य योजना है और न ही कोई दृष्टिकोण ही है। इसीलिए इस संबंध में दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए प्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार को तीन हफ़्तों में मज़दूरों के लिए बनाई गई योजनाओं का ब्योरा पेश करने कहा है।