West Bengal Election 2026: बिहार फतह करने के बाद भाजपा का कॉन्फिडेंस सातवें आसमान पर है। अश्वमेघ के घोड़े पर सवार बीजेपी अब इसी जीत का मज़ा पश्चिम बंगाल के 2026 के विधानसभा चुनावों में भी चखना चाहती है। यही वजह है कि, राज्य में अब पार्टी चुनाव को लेकर अपनी रणनीति को नए सिरे से आकार दे रही है। बीजेपी इस बार बड़े कार्यक्रमों और हाई-प्रोफाइल राजनीति की जगह डाटा आधारित विश्लेषण, बूथ स्तर की तैयारी और वोट मार्जिन पर फोकस कर रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक यह रणनीति 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों व 2021 के विधानसभा चुनावों के नतीजों और वोट अंतर (मार्जिन) के गहन अध्ययन पर आधारित है। इसका उद्देश्य उन विधानसभा क्षेत्रों को प्राथमिकता देना है, जहां भाजपा पहले जीत चुकी है या कड़ी टक्कर देती रही है।
50 अल्पसंख्यक बहुल सीटों को भाजपा ने गणना से बाहर रखा
पार्टी का मानना है कि राज्य में करीब 50 अल्पसंख्यक बहुल सीटें ऐसी हैं, जो संगठनात्मक और सामाजिक कारणों से ‘संरचनात्मक रूप से कठिन’ हैं। इन सीटों को पार्टी ने अपनी मुख्य चुनावी गणना से अलग रखा है। ये ऐसी सीटें हैं, जहां बूथ एजेंट तैनात करना, संगठनात्मक उपस्थिति बनाए रखना और स्थानीय नेटवर्क का मुकाबला करना लगातार चुनौतियां पेश करता है। इस वास्तविकता से लड़ने के बजाय, पार्टी ने ऐसी सीटों को अपने मुख्य चुनावी गणित से बाहर रखने का फैसला किया है।
पहले से मजबूत और नई सीटों पर पार्टी का फोकस
भाजपा का तर्क है कि जब इन ‘मुश्किल’ सीटों को अलग कर दिया जाता है, तो सत्ता तक पहुंचने का रास्ता छोटा और स्पष्ट हो जाता है। राज्य भाजपा अध्यक्ष सामिक भट्टाचार्य के मुताबिक बंगाल के लोग बदलाव चाहते हैं, क्योंकि वे टीएमसी के कुशासन से तंग आ चुके हैं। हम नई सीटों पर और उन क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे, जहां हम पहले जीत चुके हैं या पिछले कुछ चुनावों में स्थिर वोट शेयर बनाए रखा है, या बढ़त हासिल की है।
अपनी आंतरिक आकलन के अनुसार, पार्टी ने 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों और 2021 के विधानसभा चुनावों में 60 विधानसभा क्षेत्रों में या तो जीत हासिल की या बढ़त बनाई।अन्य 40 सीटों पर उसने तीन में से दो चुनावों में ऐसा किया। इसके अलावा भाजपा ने इसी अवधि में 60 और क्षेत्रों में कम से कम एक जीत या बढ़त दर्ज की।
कुल 294 में से पार्टी की 162 सीटों पर नजर
पार्टी नेता के मुकाबिक कुल मिलाकर, ये 160 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र बनते हैं। दो और सीटें – अशोकनगर, जिसे 1999 के उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार बादल भट्टाचार्य ने जीता था, और बसीरहाट दक्षिण, जहां 2014 में समीक भट्टाचार्य ने उपचुनाव जीता था। पार्टी की ‘संभावित अधिग्रहण सूची’ में शामिल हैं, जिससे यह संख्या 162 हो जाती है, जो 294 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के निशान 148 से चौदह सीटें अधिक हैं।
पिछले 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 77 सीटें जीती थीं और 38 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। राज्य के वरिष्ठ बीजेपी नेताओं का तर्क है कि पार्टी की यह रणनीति पुरानी यादों पर नहीं, बल्कि वोट मार्जिन पर आधारित है। एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, “इन सीटों पर पिछले चुनाव चक्र में भाजपा और टीएमसी के बीच कुल वोट अंतर 10 लाख से कम था। प्रति सीट सिर्फ 3,000 से 3,500 वोटों की बढ़त से नतीजे बदल सकते हैं।” इसी गणित के तहत भाजपा स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (एसआईआर) यानी मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण पर जोर दे रही है। पार्टी का दावा है कि डुप्लीकेट और अयोग्य मतदाताओं के नाम हटने से टीएमसी को नुकसान होगा।
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