पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजें बीजेपी के लिए कोरोना संक्रमित हो जाने जैसा है. वोट की शक्ल में सैम्पल जांच के लिए भेजा गया था, जिसकी रिपोर्ट अब पाॅजिटिव आ गई है? कोरोना की भीषण महामारी के बीच बीजेपी ने बंगाल में अपनी रैलियां जारी रखी थी. चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या गृहमंत्री अमित शाह रैलियों का रेला चलता रहा. इस उम्मीद के साथ की बंगाल की सत्ता की चाबी बीजेपी के हाथ लगेगी. उम्मीद धाराशायी हो गई ठीक वैसे ही जैसी अस्पतालों के बाहर आक्सीजन के इंजतार में कोरोना मरीज हर रोज टूट रहे हैं. बंगाल का एक-एक वोट बीजेपी के लिए आक्सीजन की तरह ही रहा, लेकिन इसके लो प्रेशर ने जीत के सपने को डाउन कर दिया.

तृणमूल कांग्रेस यानी टीएमसी की बंगाल में हो रही जबरदस्त वापसी के बीच अहम सवाल यही खड़ा हो रहा है कि ममता के किले को भेदने में आखिर बीजेपी नाकामयाब कैसे हो गई? टीएमसी नेताओं को तोड़कर बीजेपी की टिकट से चुनाव लड़ाने की रणनीति आखिर कैसे ध्वस्त हुई? नतीजों को लेकर चुनावी विश्लेषक मानते हैं कि बीजेपी अति आत्मविश्वास में रही. बीजेपी को राष्ट्रवाद के अपने एजेंडे पर भरोसा था, लेकिन इस पर बंगाली अस्मिता तुरूप का इक्का साबित हुआ. बीजेपी ने ममता बैनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी पर मुस्लिम तुष्टिकरण, बांग्लादेशी घुसपैठ को बढ़ावा देने जैसे आरोप लगाकर वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती थी, लेकिन यह वोट में तब्दील नहीं हो सके. बंगाल की महिलाओं ने ममता पर भरोसा जताया. ममता बैनर्जी बंगाल के लोगों के बीच यह रणनीतिक संदेश पहुंचा पाने में सफल हुई कि यदि टीएमसी चुनाव हारी, तो बाहर से आए लोग राज्य को चलाएंगे और बांग्ला अस्मिता खत्म हो जाएगी.

स्ट्रीट फाइटर की छवि वाली ममता बैनर्जी बंगाल ही नहीं देश की सियासत का बड़ा चेहरा बनी

उत्तरप्रदेश को अपवाद मान लिया जाए, तो देश के तमाम चुनावों में यह तस्वीर साफ दिख रही है कि बीजेपी उन-उन राज्यों में कमजोर दिखाई पड़ती है, जहां क्षेत्रीय पार्टियों का बोलबाला है. पश्चिम बंगाल के नतीजों ने इस पर मुहर लगा दिया है. नतीजे यह भी बता रहे हैं कि बीजेपी का सीधा मुकाबला अब कांग्रेस से नहीं, बल्कि राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों से है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बंगाल चुनाव इस नजरिए से भी बेहद महत्वपूर्ण रहा है कि पानी की तरह पैसा बहाने, प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह जैसे बड़े नेताओं तो झोंक देने के बावजूद स्ट्रीट फाइटर की छवि वाली ममता बैनर्जी की लीडरशीप ने टीएमसी को जीत दिलाई है. टीएमसी सिर्फ और सिर्फ ममता बैनर्जी की लोकप्रियता के सहारे खड़ी थी. ऐसे में ममता बैनर्जी बंगाल की सियासत में ज्योति बसु की तरह एक बड़ा चेहरा बन गई हैं.

2024 की तैयारी में जुटी बीजेपी को क्या यह झटका है?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बंगाल की जीत बीजेपी के लिए कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण थी, दरअसल बीजेपी इसके जरिए 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने की तैयारी में थी. बंगाल उसके केंद्र में था. पार्टी यह मानकर चल रही थी कि जिन राज्यों से उन्हें सीटें मिलती आई हैं, साल 2024 के लोकसभा चुनाव में एंटी इनकंबेंसी की वजह से नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसे में पश्चिम बंगाल को एक बड़ा बेस बनाया जा सकता है. बीजेपी की यह रणनीति फेल हो गई.

तो क्या ममता बैनर्जी करेंगी क्षेत्रीय पार्टियों की अगुवाई?

पश्चिम बंगाल के चुनावी नतीजों ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि बीजेपी को रोकने के लिए ममता बैनर्जी क्या देश में क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाकर उसकी अगुवाई कर सकती हैं? दरअसल इससे पहले भी ममता बैनर्जी सभी क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाने की कवायद कर चुकी हैं. जाहिर है चुनावी नतीजों ने क्षेत्रीय दलों को एकजुट होकर अपनी ताकत बढ़ाने का एक और मौका दिया है.