रायपुर- सूबे के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह को मूर्ख बताने वाले एक बयान पर बीजेपी बौखला गई है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने सरकार को अहंकारी बताते हुए माफी मांगें जाने की मांग की है. साय ने कहा कि मुख्यमंत्री को किस बात की खीझ सता रही है, जो वे इस तरह की गरिमाहीन टिप्पणी कर रहे हैं.
विष्णुदेव साय ने कहा कि सरकार की हर मोर्चे पर विफलता का यह एक परिचय है. ऐसी भाषा हर तरह से मात खाने वाले अहंकारी मुख्यमंत्री को रेखांकित कर रही है. उन्होंने कहा कि, कहा कि पिछले दो साल के अपने शासनकाल में मुख्यमंत्री किसानों के साथ केवल धोखाधड़ी, छलावा और लफ़्फ़ाजी ही करते रहे हैं और धान ख़रीदी के बारे में उनकी विफलताओं पर जब सवाल उठता है तो वे खंभा नोचते केंद्र सरकार और प्रदेश के भाजपा नेताओं के ख़िलाफ़ रूदाली-रोदन करने लगते है. राजनीतिक चरित्र का खोखलापन इतना विचलित कर रहा है कि न सरकार, न प्रशासन और न ही अपनी शिष्ट राजनीतिक समझ पर भरोसा रह गया है.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि प्रदेश में बारदाना संकट प्रदेश सरकार के नाकारापन का प्रमाण है जिसका ठीकरा हर बार केंद्र सरकार पर फोड़ा जा रहा है. जब देश के पंजाब जैसे राज्य में छत्तीसगढ़ से लगभग चार गुना ज़्यादा धान वहां की सरकार ख़रीदने के लिए बारदानों की व्यवस्था कर लेती है तो फिर छत्तीसगढ़ के लिए बारदानों का इंतज़ाम करने से मुख्यमंत्री बघेल को रोका किसने था? धान ख़रीदी के लिए बारदाने का इंतज़ाम करना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी होती है और मुख्यमंत्री बताएं कि पिछले 10 वर्षों में केंद्र सरकार ने धान ख़रीदी के लिए राज्य सरकार कब और कितने बारदाने मुहैया कराए? उन्होंने कहा कि किसानों का धान ख़रीदने से बचने के षड्यंत्रों के अपने ही बनाए मकड़जाल में उलझकर यह सरकार अब छटपटा रही है. प्रदेश की धान ख़रीदी की पूरी व्यवस्था चौपट करके बीजेपी से केंद्र सरकार को पत्र लिखने को कहना मुख्यमंत्री की राजनीतिक समझ पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करने को पर्याप्त है. ये चिठ्ठीबाजी की कपटभरी सियासत कांग्रेस सरकार को ही मुबारक़ हो, बीजेपी तो ज़मीनी स्तर पर ठोस और सकारात्मक काम करके हर प्रदेशवासी के कल्याण और सुख के लिए प्रतिबद्ध होकर काम करती है और 15 वर्षों का बीजेपी शासन इस बात का प्रमाण है.
साय ने कहा कि धान का उठाव कराने और कस्टम मिलिंग कराकर संग्रहण केंद्रों को नई ख़रीदी के लिए सुव्यवस्थित करने में मुख्यमंत्री लॉकडाउन का तर्क दे रहे हैं तो क्या शराब की कोचियागिरी और दलाली करती प्रदेश सरकार को तब लॉकडाउन और कोरोना की याद नहीं थी? मुख्यमंत्री के अपने ज़िले से लेकर प्रदेश के अमूमन सभी ज़िलों में तब शराब का गोरखधंधा और तस्करी का कारोबार प्रशासन और सरकार के राजनीतिक संरक्षण में फलता-फूलता रहा, तब लॉकडाउन और कोरोना का भय सरकार को नहीं था, लेकिन किसानों के धान को सड़ाकर राष्ट्रीय संपदा की क्षति का अपराध बोध सरकार को नहीं हो रहा है. साय ने कहा कि सरकार लॉकडाउन हटने के बाद पिछले आठ महीनों में इस धान का उठाव कराके उसे सड़ने बचा सकती थी.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि चावल जमा करने के कोटे में कटौती को लेकर मिथ्या प्रलाप कर रही कांग्रेस सरकार को तो यह पहले से ही मालूम था कि केंद्र सरकारों द्वारा शुरू से चावल जमा करने की नीति तय है. इसके लिए पहले जाकर प्रधानमंत्री और खाद्य मंत्री से मिलकर चर्चा के माध्यम से कोई समाधान निकालने का प्रयास करना प्रदेश सरकार का दायित्व था. साय ने तंज कसा कि सिर्फ़ चिठ्ठी लिखने से और यहां बैठे-बैठे पेपरबाजी करने से केंद्र सरकार के नीतिगत फैसलों में बदलाव नहीं कराया जा सकता. प्रदेश सरकार पीडीएस के लिए ही यदि 22 लाख मीट्रिक टन चावल का भंडारण कर ले तो समस्या हल हो सकती है. इसमें लगभग 35 लाख मीट्रिक टन चावल खप सकता है. 24 लाख मीट्रिक टन चावल जमा करने अनुमति मिली है. धान संग्रहण केंद्रों में धान सड़ने के लिए भी प्रदेश सरकार की कुनीतियाँ ही ज़िम्मेदार हैं क्योंकि प्रदेश सरकार ने कस्टम मिलिंग की अनुमति नहीं दी और पैसों की बंदरबाँट में उलझी रही. कस्टम मिलिंग की अनुमति देकर प्रदेश सरकार को पिछले वर्ष का धान सड़ने से बचाना था. साय ने कहा कि पिछले वर्ष का 24 लाख मीट्रिक टन चावल प्रदेश सरकार एफसीआई में जमा नहीं कर पाई है. यह प्रदेश सरकार की विफलता है कि अब प्रदेश सरकार यह कह रही है कि मिलिंग नहीं करा पाए, पिछले साल का चावल एफसीआई में जमा नहीं करा पाई. प्रदेश सरकार को इस बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए.