Former PM Atal Bihari Vajpayee Media Advisor Ashok Tandon Book: भारत के 11वें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam) नहीं बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा बनाना चाहती थी। वहीं लाल कृष्ण आडवाणी (LK Advani) को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी। हालांकि वाजपेयी ने पार्टी के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और कहा कि ये गलत मिसाल कायम करेगा। ये दावा पूर्व पीएम वाजपेयी के मीडिया सलाहकार अशोक टंडन ने अपनी किताब ‘अटल संस्मरण’ में किया है।

टंडन ने 17 दिसंबर, 2025 को वाजपेयी की बर्थ एनिवर्सरी पर ‘अटल स्मरण’ किताब लॉन्च की है। टंडन 1998 से 2004 तक वाजपेयी के मीडिया सलाहकार थे। वहीं, वाजपेयी 1999 से 2004 तक, 5 साल का पूरा कार्यकाल पूरा करने वाले देश के पहले गैर-कांग्रेसी PM थे।

इस किताब के मुताबिक 2002 में बीजेपी ने राष्ट्रपति पद के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सुझाया था और प्रधानमंत्री का पद लालकृष्ण आडवाणी को सौंपने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि बहुमत के आधार पर उनका राष्ट्रपति बनना एक गलत मिसाल कायम करेगा।

टंडन के अनुसार, वाजपेयी इसके लिए तैयार नहीं थे। उनका मानना ​​था कि इससे एक बहुत गलत परंपरा शुरू होगी और वह ऐसे कदम का समर्थन करने वाले आखिरी व्यक्ति होंगेय़ टंडन लिखते हैं कि वाजपेयी ने मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेताओं को बुलाया ताकि राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति बन सके। अशोक टंडन ने लिखा है कि- मुझे याद है कि सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह उनसे मिलने आए थे। वाजपेयी ने पहली बार ऑफिशियली बताया कि NDA ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है… मीटिंग में कुछ देर सन्नाटा छा गया। फिर सोनिया गांधी ने चुप्पी तोड़ी और कहा कि वे उनके इस चुनाव से हैरान हैं और उनके पास उन्हें सपोर्ट करने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है, लेकिन वे उनके प्रपोज़ल पर चर्चा करेंगे और फिर फैसला लेंगे।

सोनिया गांधी ने अटल को लगाया था फोन

किताब में अशोक टंडन ने लिखा है कि जब 13 दिसंबर 2001 को संसद पर आतंकवादी हमला हुआ तो वाजपेयी और सोनिया गांधी के बीच फ़ोन पर बात हुई। सोनिया गांधी उस समय लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं। हमले के समय वाजपेयी अपने घर पर थे और अपने साथियों के साथ टेलीविज़न पर सुरक्षाबलों का ऑपरेशन देख रहे थे। टंडन लिखते हैं, अचानक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का फ़ोन आया। उन्होंने कहा कि मुझे आपकी चिंता हो रही है, क्या आप सुरक्षित हैं? इस पर अटलजी ने जवाब दिया, सोनिया जी, मैं सुरक्षित हूं, मुझे चिंता थी कि आप शायद संसद भवन में हों… अपना ख्याल रखिएगा।

किताब में दावा- सोनिया-मनमोहन के साथ मीटिंग में कलाम के नाम की घोषणा हुई

टंडन की किताब में बताया गया है कि वाजपेयी चाहते थे कि देश का 11वां राष्ट्रपति पक्ष-विपक्ष की सर्वसम्मति से बने। इसके लिए उन्होंने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सीनियर नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। इस बैठक में सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह शामिल हुए। इसी बैठक में वाजपेयी ने पहली बार औपचारिक रूप से बताया कि NDA ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया। टंडन के अनुसार, इस घोषणा के बाद बैठक में कुछ देर के लिए सब मौन हो गए।

2002 में NDA ने कलाम को राष्ट्रपति बनाया था

बता दें कि कलाम 2002 में तत्कालीन सत्ताधारी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) और विपक्ष दोनों के समर्थन से 11वें राष्ट्रपति चुने गए थे। वह 2007 तक इस पद पर रहे थे। अशोक टंडन 1998 से 2004 तक वाजपेयी के मीडिया सलाहकार थे। उन्होंने किताब में लिखा कि वाजपेयी ने दूसरी तरफ अपनी पार्टी के इस सुझाव को साफतौर पर खारिज कर दिया कि उन्हें राष्ट्रपति भवन चले जाना चाहिए और प्रधानमंत्री का पद अपने दूसरे नंबर के नेता लालकृष्ण आडवाणी को सौंप देना चाहिए।

कैसे थे अटल-आडवाणी के रिश्ते?

टंडन ने प्रधानमंत्री के तौर पर वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान हुई कई दूसरी घटनाओं और कई नेताओं के साथ वाजपेयी के रिश्तों के बारे में बताया है। अशोक टंडन के अनुसार, आडवाणी हमेशा अटलजी को प्रेरणा के स्रोत कहते थे और वाजपेयी बदले में उन्हें अपना पक्का साथी कहते थे। टंडन ने लिखा- कुछ नीतिगत मतभेदों के बावजूद दोनों नेताओं के रिश्ते कभी सार्वजनिक रूप से खराब नहीं हुए। दोनों ने न केवल भाजपा का निर्माण किया, बल्कि पार्टी और सरकार, दोनों को नई दिशा दी।

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