दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव में किसी केन्द्रीय व प्रदेश के मंत्री, पार्टी पदाधिकारी, पूर्व सांसद या बड़े अफसर के नजदीकी परिजनों को प्रत्याशी न बनाने की नीति बनाई है। यह फैसला टिकट वितरण में परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए किया गया है।

पार्टी सूत्रों के अनुसार केन्द्रीय नेतृत्व ने नजदीकी परिजनों में मंत्री, अफसर व पदाधिकारियों के बेटे-बेटी, भाई-बहन या फिर पति व पत्नी को टिकट न देने का मानक तय किया है। ‘

सूत्र बताते हैं कि भाजपा नेतृत्व मौजूदा सांसदों में से ज्यादा के टिकट काटने के मूड में नहीं है। डेढ़ दर्जन से ज्यादा मौजूदा सांसदों के टिकट कटने की उम्मीद नहीं है। कुछ सांसदों की सीट में फेरबदल किया जा सकता है। ऐसे में नए टिकट के दावेदारों के लिए ज्यादा अवसर नहीं हैं।

अकेले यूपी से ही कई नेता और अफसरों के बेटे टिकट के दावेदार बन रहे हैं। यहां तक कि कुछ प्रदेश के मंत्री अपने बेटे, बेटी व पत्नी के लिए टिकट मांग रहे हैं। केन्द्र सरकार में कई बड़े अफसर भी अपने परिजनों को चुनाव लड़ाने के इच्छुक हैं। कुछ के परिजनों ने तो बाकायदा खुलकर प्रदेश की लोकसभा सीटों पर दावेदारी ठोंक दी है। अपने परिजनों के लिए टिकट चाहने वाले नेता, अफसर व पदाधिकारी दिल्ली दौड़ लगा रहे हैं। इन्हीं वजहों के चलते केंद्रीय नेतृत्व ने किसी भी दावेदार का बायोडाटा नहीं लिया। नेतृत्व अपने राज्यों के संगठन को भी किसी भी दावेदार का बायोडाटा लेने से मना कर दिया था।