Ashish Tiwari Lalluram.com
आशीष तिवारी
प्रदेश के संगठन प्रमुख के नाते चुनावी रणनीति की अगुवाई कर रहे बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पिछले दिनों दंतेवाड़ा पहुंचे, तो उन्होंने स्थानीय आदिवासी कार्यकर्ता शिवनाथ नाग के घर जमीन पर बैठकर खाना खाया। साल पत्ते से बने पत्तल में खाना खाते कौशिक शायद ये संदेश देना चाहते थे कि बीजेपी कार्यकर्ताओं की पार्टी है। वे शायद ये भी बताना चाहते थे कि संगठन के शीर्ष पदों पर काबिज चेहरे भी असल में कार्यकर्ता ही है।
धरमलाल कौशिक के एक अदने कार्यकर्ता के घर खाना खाने से यकीनन बस्तर में कार्यकर्ताओं के बीच नई ताजगी आई होगी। कार्यकर्ताओं को लगा होगा कि दूर से सत्ता प्रभाव में दिखने वाली पार्टी आज भी उनकी अपनी वहीं पार्टी है, जिसके पुरोधा कभी धोती-कुर्ता पहने राष्ट्रवाद सर्वोपरी और अंत्योदय का नारा देते थे। संगठन का काम करके लगभग थक चुके और उसी थके मन से नए कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में जुटे कार्यकर्ताओं को यकीनन इस तस्वीर ने साहस से भी भरा होगा। उन्हें लगा होगा कि,  जिस पार्टी के लिए वो दिन-रात जूझ रहा है, उसी पार्टी में एक बार फिर उनकी पूछपरख बढ़ गई है। जमीनी कार्यकर्ताओं को इससे ज्यादा और क्या चाहिए कि उनका प्रदेश अध्यक्ष उनके साथ जमीन पर बैठकर वहीं खाना खा रहा हो, जिसके खाने से कार्यकर्ता के शरीर में बनने वाले खून से पार्टी सिंची जाती है, खड़ी की जाती है और चलाई भी जाती है। वही खाना प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने खाया, तो चर्चाएं तो होनी ही चाहिए। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का आदिवासी कार्यकर्ता के घर खाना खाना छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में एक नई संस्कृति को जन्म देने जैसा है, क्योंकि आमतौर पर प्रदेश की राजनीति में ऐसी तस्वीरें देखने को या तो बेहद कम मिली हैं, या शायद मिली ही नहीं है।
लेकिन इस बीच चर्चा इस बात की भी होनी चाहिए कि आखिर जमीनी कार्यकर्ता के घर खाना खाने कोई बड़ा नेता पहले क्यों नहीं गया? चर्चा इस बात की भी होनी चाहिए कि कार्यकर्ता की असल भूमिका संगठन के भीतर आखिर है क्या? चर्चाओं के बीच ये सवाल भी जेहन में कौंधता हैं कि, जब पार्टी की रीढ़ की हड्डी यही कार्यकर्ता हैं, जिसे पार्टी अपने संगठनात्मक संरचना का सबसे मजबूत स्तंभ मानती है, तो फिर सूबे के मंत्रियों के बंगलों से अक्सर मायूस शक्ल लिए निकलने वाले कार्य़कर्ता कौन हैं? यकीनन ये उस जमात का हिस्सा तो कतई नहीं होंगे, जो पार्टी के स्तंभ हैं, जो समर्पण भाव से पार्टी का झंडा बुलंद करते हैं। यकीनन ये स्वार्थपरक लोगों की भीड़ का हिस्सा होंगे, जो संगठन का काम महज इस उद्देश्य के साथ करते होंगे कि उनके छोटे-मोटे काम कर दिए जाएं। इतनी अपनी फितरत होगी, जो सोचते होंगे, एक हाथ दो और एक हाथ लो। यानी काम का प्रतिसाद मिले। ये जरूर महत्वाकांक्षी कार्यकर्ता ही होंगे।
लेकिन सवाल ये हैं कि महत्वाकांक्षा क्या इस पार्टी से आने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नहीं है, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की नहीं है, मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह की नहीं है, प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक की नहीं है या सरकार में काबिज मंत्रियों की नहीं है। क्या सत्ता और संगठन की अगुवाई करने वाले ये तमाम चेहरे एक अदने से कार्यकर्ता से ज्यादा निष्ठावान हो गए हैं? ये और बात है कि ये तमाम चेहरे कभी अदने कार्यकर्ता ही रहे होंगे। संगठन को आगे बढ़ाने, खड़े करने और सत्ता तक पहुंचाने में इन चेहरों की बड़ी भूमिका रही होगी, लेकिन हालात अब बदल गए हैं। संगठन के काम के तरीके बदल गए हैं। संगठन ने कार्यकर्ताओं को काम के बोझ तले इतना लाद दिया है कि नेताओं की नजर इस ओर शायद ही जाती होगी कि कार्यकर्ता विशाल वटवृक्ष का वो तना नहीं है, जिसे सींचने के लिए वृक्ष की मजबूत जड़े ही काफी हैं।
रिपोर्टिंग के सिलसिले में एक बार छत्तीसगढ़ सरकार के एक कद्दावर मंत्री के बंगले जाना हुआ था। बंगले के बाहर चिरपरिचित दो मायूस चेहरे निकलते नजर आए। एक ने बताया कि संगठन में काम करते एक दशक बीत गया है, बावजूद इसके छोटे से ठेके के लिए मंत्री कमीशन मांग रहा है। दूसरे ने बताया कि उसकी पत्नि सरकारी नौकरी में हैं, ट्रांसफर के लिए मंत्री के बंगले के चक्कर लगाते उसे छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन उसके हिस्से सिवाए आश्वासन के कुछ और नहीं आया।
दरअसल कार्यकर्ताओं की महत्वाकांक्षा और सत्ता-संगठन का नेतृत्व करने वालों की महत्वाकांक्षा में यही एक बड़ा अंतर हैं। इसे देखकर एक बारगी ऐसा लगता है कि कार्यकर्ता वाकयी निष्ठावान हैं और सत्ता-संगठन के नेतृत्वकर्ता मौकापरस्त। जब जरूरत हुई पूछ लिया, नहीं हुई तो संगठन के काम में इतना डूबा दिया कि इतना वक्त ही ना रह जाए कि कार्यकर्ता अपने हित को साध ले। कार्यकर्ता अपने नेताओं के साथ ली जाने वाली एक सेल्फी में ही खुश हैं। शायद इसे नेता भी बखूबी समझते हैं, यही वजह है कि दौरे की थकान वाले चेहरे भी सेल्फी कैमरे की ओर देखकर बेरूखी से हंसी छोड जाते हैं।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक के खाने से शुरू हुई ये बात कार्यकर्ताओं की स्थिति तक चली गई, लेकिन इस बीच ये बताना लाजिमी है कि कौशिक छत्तीसगढ़ में बीजेपी का नेतृत्व करने वाले लगभग सभी प्रदेश अध्यक्षों से कोसों आगे निकल गए हैं। संगठन प्रमुख का दायित्व मिलने के बाद से अब तक प्रदेश भर का दौरा कर चुके हैं। कौशिक का ही कार्यकाल रहा है, जब पार्टी ने चंपारण में चिंतन बैठक की, बूथ कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के आला नेताओं का प्रशिक्षण वर्ग किया, अंबिकापुर से लेकर रायगढ़ तक सफल प्रदेश कार्यसमिति की बैठक भी की। इस पूरी कवायद के पीछे कार्यकर्ताओं को साधना बड़ा लक्ष्य भी रहा, लेकिन इन सबके बावजूद पार्टी ये ना सोचे की कार्यकर्ता साध लिए गए हैं। पार्टी ये भी ना सोचे की पार्टी की सोच कार्यकर्ताओं की सोच बना दी गई है। पार्टी केवल इतना सोचे की मिशन 2018 का लक्ष्य लेकर जो कवायद शुरू की गई है, उसे लेकर कार्यकर्ताओं की अपनी सोच क्या है ?
( ये लेखक के अपने विचार है)