चंडीगढ़। अगले साल पंजाब में सभी 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं. इससे पहले ही बीजेपी ने दो अहम फैसले लेकर अपना मास्टरस्ट्रोक खेल दिया है. पहले तो केंद्र सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर खोलने का फैसला लिया और आज गुरुपर्व के दिन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी. बता दें कि करीब सालभर से किसान दिल्ली बॉर्डर पर कृषि कानूनों के विरोध में डटे हुए थे और उन्होंने कानून के विरोध में इस महीने संसद मार्च का भी ऐलान किया था.
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खास बात ये भी है कि कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुपर्व का दिन चुना. सिख समाज गुरू नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर एक तरफ खुशियां मना रहा था, ऐसे में इस घोषणा से उनकी खुशी दोगुनी हो गई. केंद्र ने सिख समाज से भावनात्मक रूप से भी जुड़ने की कोशिश की.
2022 में पंजाब में विधानसभा चुनाव
पंजाब में विधानसभा की कुल 117 सीटें हैं. जिनमें से 77 सीटों पर सबसे अधिक संख्या किसान वोटर्स की है, ऐसे में कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर बीजेपी ने किसान वोटरों को साधने की कोशिश की है. गौरतलब है कि कृषि कानूनों की वजह से पंजाब में बीजेपी की राह आसान नहीं थी. किसान किसी भी राजनीतिक पार्टी को सभा तक नहीं करने दे रहे थे और न तो उनकी बात ही सुन रहे थे. लंबे समय से केंद्र सरकार ने भी कानूनों को लेकर किसानों को समझाने की कोशिश की, लेकिन किसान कृषि कानूनों को वापस लेने की अपनी मांग पर अड़े हुए थे. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा भी कि ये कानून किसानों के हित में थे, लेकिन बहुत प्रयासों के बाद भी कुछ किसानों को वे यह बात नहीं समझा पाए.
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सीटों का सियासी गणित
पंजाब मालवा, माझा और दोआबा एरिया में बंटा हुआ है. सबसे ज्यादा 69 सीटें मालवा में हैं. मालवा में ज्यादातर ग्रामीण सीटें हैं, जहां किसानों का दबदबा है. यही इलाका पंजाब की सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाता है. 23 सीट वाले दोआबा में ज्यादातर दलित असर वाली सीटें हैं. वहीं 25 सीटों वाले माझा में सिख बहुल सीटें हैं. पंजाब की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है. पंजाब में 75% लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर खेती से जुड़े हैं. प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े लोगों की बात करें, तो इसमें किसान, उनके खेतों में काम करने वाले मजदूर, उनसे फसल खरीदने वाले आढ़ती और खाद-कीटनाशक के व्यापारी शामिल हैं. इनके साथ ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री भी जुड़ जाती है. आढ़तियों से फसल खरीदकर आगे सप्लाई करने वाले ट्रेडर्स और एजेंसियां भी खेती से ही जुड़ी हुई हैं. अगले फेज में शहर से लेकर गांव के दुकानदार भी किसानों से ही जुड़े हैं. फसल अच्छी होती है, तो फिर किसान खर्च भी करता है. इसके जरिए कई छोटे कारोबार भी चलते हैं.
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