कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। चंबल अंचल एक दौर में अपने बीहड़ और बागी डाकुओं के लिए बदनाम हुआ करता था। लेकिन आज इसकी छवि बदल चुकी है। यही वजह है कि अंचल के वीरान बीहड़ किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां दुनिया भर में सुपरफूड के नाम से मशहूर ब्लू बेरी की खेती की संभावना जताई जा रही है। 

राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ने रिसर्च शुरू की

ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ने बड़ी रिसर्च शुरू कर दी है। ये रिसर्च सुपरफूड कहे जाने वाले ब्लू बेरी की खेती से जुड़ी है। ठंडे देशों में पैदा होने वाला यह फल जल्द ही ग्वालियर चंबल अंचल के बीरान बीहड़ो में पैदा होते हुए देखे जा सकते है।

विश्विद्यालय ने ऑस्ट्रेलिया से खरीदे ब्लू बेरी के पौधे

संभावनाओं को हकीकत में तब्दील करने के लिए विश्वविद्यालय ने कुलगुरु अरविंद शुक्ला की निगरानी में बड़ा कदम आगे बढ़ाया है। विश्विद्यालय ने ऑस्ट्रेलिया से उन्नत किस्म के ब्लू बेरी के पौधों की खरीदी की है। जिन्हें विश्विद्यालय परिसर में ही उगाया जाना शुरू कर दिया है। इस दौरान ठंड का मौसम और पीएच लेवल को लेकर सतत निगरानी करना शुरू कर दी गयी है। कुछ पौधों में तो ब्लूबेरी के फल के फूल भी दिखना शुरू हो गए है। जिन्होंने संभावनाओं को मजबूती दी है।

सुपरफूड  ब्लू बेरी की खेती क्यों खास है?

ब्लू बेरी में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा बहुत अधिक होती है

यह सेहत के लिए बेहद लाभकारी है

बाजार में इसकी डिमांड लगातार बढ़ रही है

अभी इसे विदेशों से आयात करना पड़ता है।

स्थानीय स्तर पर खेती होने पर आयात पर निर्भरता कम होगी, किसानों को भी अच्छा मुनाफा मिलेगा

ब्लू बेरी की खेती को लेकर कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ अरविंद शुक्ला का कहना है कि ग्वालियर चंबल अंचल में ब्लू बेरी के लिए सर्दी का मौसम पूरी तरह से अनुकूल है, क्योंकि यहां कड़ाके की सर्दी पड़ती है। लेकिन गर्मी के मौसम में पारा 45 डिग्री के ऊपर निकल जाता है जो ब्लू बेरी की खेती को पूरी तरह से तबाह कर सकता है। इसके साथ ही अंचल की मिट्टी में पीएच लेवल को मेंटेन करना भी एक बड़ी कठिन चुनौती है। जिसको लेकर उनकी रिसर्च टीम लगातार मेहनत कर रही है। अभी काफी हद तक सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।

ब्लू बेरी की खेती के दौरान कुलगुरु की बताई गई 2 मुख्य चुनौतियों को खत्म करने के लिए भी समाधान खोजा गया है। 

मौसम – यह फसल ठंडे देशों में अच्छी होती है, जबकि ग्वालियर में गर्मी अधिक पड़ती है। ऐसे में नेट हाउस सहित अन्य टेक्निकल मशीनों के जरिये थाना माहौल तैयार किया जाएगा

पीएच – ब्लू बेरी खेती के लिए मिट्टी का पीएच 4-5 चाहिए। जबकि अंचल की मिट्टी का पीएच 7.5 से 8 है। इसे रखते हुए वैज्ञानिकों ने मिट्टी सुधार की तकनीक पर काम किया है। ताकि पौधों को उनकी आवश्यकता के आधार पर अनुकूल पीएच लेवल मिल सके। 

आपको बता दें कि ब्लू बेरी का एक पौधा 10 से 15 साल तक फल देता है। इसकी खेती से प्रति हेक्टेयर लाखों रुपये तक की आय किसानों की हो सकती है। विश्वविद्यालय किसानों और छात्रों को भविष्य में इसकी ट्रेनिंग देने पर भी काम शुरू करेगा। ऐसे में वीरान पड़े बीहड़, नदी किनारे होने के कारण वहां की खास मिट्टी और मौसम की अनुकूलता को मेंटेन करने के सभी प्रयोग सफल होने पर यहां की ब्लू बेरी की खेती देश दुनिया मे एक नया अध्याय स्थापित करेगी।

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