रायपुर। बोधघाट परियोजना बस्तर के लिए महत्वाकांक्षी और महत्वपूर्ण योजना है. वर्षों पूर्व इस योजना की शुरुआत की गई थी, लेकिन जिन परिस्थितियों में उनका निर्माण रुका था, वो तब की बातें थी. अब बस्तर में हम विकास चाहते हैं. यह बात कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने बोधघाट परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा जनप्रतिनिधियों की बुलाई गई बैठक के बाद कही.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा आहूत बैठक में बस्तर के सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि की बैठक की जानकारी देते हुए कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि मुख्यमंत्री चाहते हैं कि बस्तर के विकास के लिए हम कदम उठाए. इस पर रायशुमारी के लिए बस्तर के सभी प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया था.
उन्होंने बताया कि परियोजना को जब जल विद्युत परियोजना के रूप में प्रारंभ किया गया था, तब अरविंद नेताम ने घोर आपत्ति की थी, तब यह बंद हो गया था. आज इस परियोजना के बनने के बाद दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा के लगभग लगभग सवा तीन लाख से हेक्टेयर से अधिक जमीन को हम सिंचाई देंगे.
रविंद्र चौबे ने कहा कि बस्तर में आकर्षक पुर्नवास योजना बनाया जाना चाहिए. इस कार्य को प्रारंभ करने से पहले सारे जनप्रतिनिधियों की बात सुनने के बाद ये निर्णय लिया गया. वहीं बस्तर को क्या लाभ मिलेगा इसे लेकर मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया ये योजना इंद्रावती के जल उपयोग करने की योजना है.
उन्होंने कहा कि हम अपनी पानी का सदुपयोग नहीं करेंगे तो आने वाले समय में महानदी जैसा विवाद हमारे पानी के उपयोग के लिए हो सकता है. इस पर स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री की सोच है कि बस्तर की परियोजना का पूरा लाभ बस्तर को ही मिलना चाहिए. इसलिए जल विद्युत परियोजना के बजाय सिंचाई परियोजना के रूप में इसकी शुरुआत करने का निर्णय लिया गया है.
डॉ रमन सिंह के सिंचाई परियोजना के बयान पर उन्होंने कहा कि वे 15 साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. छत्तीसगढ़ सरकार की एक लाख करोड़ के बजट में कभी पूरे प्रदेश में दो हजार करोड़ का एक सिंचाई परियोजना भी नहीं लाए. उन्होंने प्राथमिकता छत्तीसगढ़ के किसानों की जमीन बेचने, यहां की खदान बेचने, यहां के पानी बेचने, उद्योगपतियों के हाथ में सर्व संपदा को गिरवी रखने का था, इसलिए उनकी समझ में नहीं आया कि यह परियोजना प्रारंभ की गई.
वहीं बैठक के बाद आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने मीडिया से चर्चा में कहा कि इस परियोजना से बस्तर वालों को फायदा होगा. फिलहाल, राज्य सिंचाई के नाम पर शून्य है. बस्तर में इंद्रावती नदी है. वहां के किसान इमली और महुआ के भरोसे जिंदा हैं. जंगल धीरे-धीरे खत्म होते जा रहा है. इस परियोजना के लिए नया पैकेज कैसे बनेगा, जमीन के बदले जमीन मिलेगा, रोजगार देंगे. अभी 10 बैठक और होनी है, हम सभी वर्ग के पास जाएंगे.