रायपुर. बोधघाट परियोजना फिर परवान चढ़ेगी. लेकिन इस बार इसका मकसद बदला होगा. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया है कि इस बार ये योजना छ्त्तीगसढ़ के हितों को केंद्र में रखकर बनाया गया है. जबकि पिछली बार ये योजना दूसरे राज्यों की बिजली की ज़रुरतों को ध्यान में रखकर बनाए गया था. अबकी बारी इस योजना का मकसद बेहद पिछड़े बस्तर में सिंचाईं का इंतज़ाम करना है. माना जा रहा है कि इस योजना के बनने से बस्तर की तस्वीर बदलेगी. नक्सलवाद से पीड़ित बस्तर के विकास की नई इबारत लिखने का माद्दा बोधघाट परियोजना में है. तो ये उम्मीद की जा सकती है कि बोधघाट के रास्ते बस्तर में समृद्धि के साथ शांति भी आए. जब वहां के नौजवानों को वहीं काम मिलेगा तो नक्सली उन्हें भटका नहीं पाएंगे.
बघेल ने अलग-अलग समय में बोधघाट की प्रस्तावित परियोजना के बारे में जानकारियां साझा की हैं. बघेल ने कहा है कि बोधघाट ऐसा प्रोजेक्ट है जिसका लाभ सिर्फ बस्तर के लोगों को मिलेगा. इस मसले पर बघेल सरकार ने बोधघाट सिंचाई परियोजना पर बस्तर के जनप्रतिनिधियों से की रायशुमारी की और रायशुमारी में एकराय बनने के बाद सरकार ने आगे बढ़ने का फैसला किया.
इस योजना को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक बैठक में इस प्रस्तावित परियोजना को लेकर की थी. जिसमें मुख्यमंत्री ने इस परियोजना के सबंध में एक-एक कर सभी जनप्रतिनिधियों से उनकी राय ली. सरकार की वहां के जनप्रतिनिधियों के साथ इस संबंध में रायशुमारी हो चुकी है जिसमें इस बात पर सहमति बनी है कि बांध बनने से पहले बस्तरवासियों की राय के मुताबिक उनका पुनर्वास एवं व्यवस्थापन होगा. सरकार ने कहा है कि इसमें व्यापक पारदर्शिता बरती जाएगी. सरकार ने बस्तर के जनप्रतिनिधियों को आश्वस्त किया था कि इस मसले पर बस्तरवासियों से चर्चा कर विस्थापन और पुनर्वास की नीति तैयार की जाएगी. सरकार ने आश्वस्त किया है कि प्रभावित लोगों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाएगा.
बघेल का मानना है कि अब तक बस्तर में जितने भी उद्योग और प्रोजेक्ट लगे हैं, उसका सीधा फायदा बस्तर के लोगों को नहीं मिला है.यह पहला ऐसा प्रोजेक्ट है, जो बस्तर के विकास और समृद्धि के लिए है और इसका सीधा फायदा बस्तरवासियों को मिलेगा.
मुख्यमंत्री कहते हैं कि 40 वर्षों से लंबित इस प्रोजेक्ट को बस्तर की खुशहाली को ध्यान में रखते हुए नए सिरे से तैयार किया किया गया है. बोधघाट परियोजना पहले मुख्य रूप से जल विद्युत उत्पादन के लिए थी, जो बस्तर और वहां के लोगों के जरूरतों के अनुकूल नहीं थी. इस परियोजना में आमूलचूल परिवर्तन कर इसे सिंचाई परियोजना के रूप में तैयार किया गया हैै. जिसका लाभ बस्तर संभाग के अधिकांश क्षेत्र के ग्रामीणों और किसानों को मिलेगा। उन्होंने कहा कि इसमें लिफ्ट इरीगेशन को भी शामिल कर बस्तर के शेष जिलों को भी सिंचाई एवं निस्तार के लिए जल उपलब्ध कराया जाएगा.
मुख्यमंत्री ने अपने बयानों बस्तर में किसी सिंचाई परियोजना के न होने पर चिंता ज़ाहिर कर चुके हैं. वे कहते हैं कि वनों की अधिकता के बाद भी मानसून यदि थोड़ा भी गड़बड़ाता है, तो सूखे से सबसे ज्यादा बस्तर अंचल ही प्रभावित होता है. मुख्यमंत्री ने कहा कि इंद्रावती नदी के जल का सदुपयोग कर बस्तर को खुशहाल और समृद्ध बनाने के लिए बोधघाट परियोजना जरूरी है. अब समय आ गया है, बस्तर के विकास और वहां के लोगों की बेहतरी के लिए काम होना चाहिए. मुख्यमंत्री कहते हैं कि किसानों को यदि सिंचाई की सुविधा मिल जाए, तो वह रोजगार खुद पैदा कर लेंगे.
मुख्यमंत्री मानते हैं कि लंबे समय में बस्तर की जो नई तस्वीर लॉक डॉऊन के दौरान सामने आई है, बोधघाट उस स्थिति से भी लड़ने में सफल होगा. वे बताते हैं कि अब तक यही सुनते आए हैं कि बस्तर के लोग अपना घर परिवार छोड़कर अन्यत्र रोजी-रोजगार के लिए नहीं जाते हैं परंतु कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन की अवधि में बस्तर वापस लौटने वालों के जो आंकड़े आए हैं उसे देखकर यह पता चलता है कि बस्तर के नौजवान रोजी-रोजगार की तलाश में देश के विभिन्न राज्यों में जाने लगे हैं. बस्तर की नौजवान पीढ़ी को बस्तर में ही रोजगार का अवसर उपलब्ध कराना जरूरी है.
मुख्यमंत्री ने ज़ोर देकर कहते हैं कि विश्वास, विकास और सुरक्षा हमारा मूल मंत्र है. सरकार इसको ध्यान में रखकर ही जन हितकारी कामों को अंजाम दे रही है. उन्होंने दावा है कि बोधघाट परियोजना के प्रभावितों के लिए पुनर्वास एवं व्यवस्थापन की बेहतर व्यवस्था की जाएगी. प्रभावितों का किसी भी तरह का नुकसान न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाएगा. विस्थापितों को उनकी जमीन के बदले बेहतर जमीन, मकान के बदले बेहतर मकान दिए जाएंगे. हमारी यह कोशिश होगी कि इस प्रोजेक्ट के नहरों के किनारे की सरकारी जमीन प्रभावितों को मिले, ताकि वह खेती-किसानी बेहतर तरीके से कर सके.
मुख्यमंत्री बताते हैं कि औने-पौने दाम में महुआ बेचने के लिए विवश बस्तर के लोगों से इस साल हमने 30 रूपए मूल्य पर खरीदी की है. वे कहते हैं कि बस्तर के लोगों की आमदनी बढ़े, इसके लिए इमारती पेड़ों के बदले फलदार एवं लघु वनोपज के पेड़ प्राथमिकता से लगाने का निर्णय लिया गया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि बस्तर का विकास वहां के लोगों की आवश्यकता के अनुसार होना चाहिए. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में खेती अब घाटे का सौदा नहीं रह गयी है. बस्तर के किसान खेती-किसानी से वंचित रहे, यह अब नहीं होगा. उन्होंने कहा कि प्रभावितों के पुनर्वास एवं व्यवस्थापन के बाद ही उनकी भूमि इस परियोजना के लिए ली जाएगी.
दरअसल, कांग्रेस की भूपेश सरकार ने लोहांडीगुड़ा में टाटा की ज़मीन वापिस करके और नंदराज पहाड़ पर आदिवासियों की मांग मानते हुए अडानी को वहां माइनिंग करने से रोक दिया. इससे बस्तर के लोगों में एक विश्वास कायम हुआ है. सरकार ने किसानों का कर्जा माफ करके और 2500 रुपये क्विंटल में धान खरीदकर बस्तर के लोगों का विश्वास जीता है. लिहाज़ा बस्तर के जनप्रतिनिधियों के माफिक आम बस्तरिहा का भी सरकार के मुखिया की बातों पर यकीन है.
सरकार ने इस योजना का जो शुरुआती खाका खींचा है. उसके मुताबिक इसके निर्माण से खेत-किसानी, उद्योग एवं अन्य आय मूलक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा. जिससे बस्तर की अर्थव्यवस्था में 6 हजार 223 करोड़ रूपए की बढ़ोत्तरी होगी. इन्द्रावती नदी के 300 टीएमसी जल का उपयोग छत्तीगसढ़ राज्य कर सकता है. वर्तमान में मात्र 11 टीएमसी जल का उपयोग हो रहा है. बोधघाट परियोजना के निर्माण से 168 टीएमसी जल का उपयोग बस्तर अंचल के विकास के लिए हो सकेगा. इससे 3 लाख 66 हजार हेक्टेयर में सिंचाई और लगभग 300 मेगावाट तक विद्युत का उत्पादन होगा.
बोधघाट परियोजना से बस्तर को सबसे ज़्यादा फायदा सिंचाई का होगा. अभी पूरे प्रदेश में 37.92 फीसदी के मुकाबले बस्तर में केवल 9.3 फीसदी ही सिंचिंत रकबा है. सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि बोधघाट के बाद दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर में सिंचाई का रकबा करीब छह गुणा बढ़ जाएगा. इन जिलों में सिंचित रकबा 63.28 फीसदी हो जाएगा. इससे दंतेवाड़ा के 51, बीजापुर जिले के 218 तथा सुकमा के 90 इस प्रकार कुल 359 गांव लाभांन्वित होंगे. तीनों जिलों में खरीफ में एक लाख 71 हजार 75 हेक्टेयर, रबी में एक लाख 31 हजार 75 हेक्टेयर तथा गर्मी में 64 हजार 430 हेक्टेयर इस प्रकार कुल 3 लाख 66 हजार 580 हेक्टेयर में सिंचाई होगी.
इस परियोजना के निर्माण में 28 गांव पूर्ण रूप से तथा 14 गांव आंशिक रूप से डूबान में आएंगे, जिसमें से 5704 हेक्टेयर वन भूमि, 5010 हेक्टेयर निजी भूमि तथा 3068 हेक्टेयर शासकीय भूमि शामिल हैं. 500 मिलियन घन मीटर जल का उपयोग उद्योगों के लिए, 30 मिलियन घन मीटर जल का उपयोग पेयजल के लिए होगा. इस परियोजना से मछली उत्पादन का बड़ा जलक्षेत्र उपलब्ध होगा, जिससे प्रतिवर्ष 4824 टन मछली उत्पादन होगा.
जब भी बड़े बांध का प्रस्ताव आता है तो सबसे ज़्यादा सवाल पर्यावरणीय स्वीकृति को लेकर उठते हैं. सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि जो पर्यावरणीय क्षति इससे होगी, उसकी भरपाई की जाएगी. पहले से प्रस्तावित
बोधघाट परियोजना के लिए 1979 में पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त हुई थी. वन संरक्षण अधिनियम 1980 लागू होने के बाद 85 मे पुन: यह स्वीकृति मिली. वन विभाग ने प्रभावित वनभूमि के बदले 8 हज़ार 419 हैक्टेयर भूमि में क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण कर भी दिया गया था. वन संरक्षण अधिनियम लागू होने के उपरांत फिर से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 5704 हैक्टेयर में क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के लिए सैद्धांतिक सहमति प्रदान की गई थी.
कृषि विकास एवं जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे मानते हैं कि बस्तर अंचल के समग्र विकास के लिए सिंचाई जरूरी है. इससे बस्तर की अर्थव्यवस्था में बदलाव आएगा. उन्होंने इस परियोजना के क्रियान्वयन से पहले आकर्षक पुनर्वास एवं व्यवस्थापन की नीति तैयार करने और उसका अक्षरशः पालन सुनिश्चित करने की बात कही. उन्होंने कहा कि बस्तर में सिंचाई सुविधा को बढ़ाना जरूरी है, क्योंकि इससे जीवन में बदलाव आता है.
वन एवं पर्यावरण मंत्री श्री मोहम्मद अकबर ने इस प्रोजेक्ट के निर्माण प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से पूरा कराए जाने का सुझाव दिया, जिस पर मुख्यमंत्री ने सहमति जताते हुए इसका परीक्षण कराए जाने की बात कही थी. सुकमा से आने वाले उद्योग मंत्री श्री कवासी लखमा ने कहा कि बोधघाट परियोजना से बस्तर के विकास का नया रास्ता खुलेगा. उन्होंने कहा कि इस परियोजना से प्रभावित लोगों को क्या लाभ मिलेगा, इसे स्पष्ट रूप से बताना होगा तथा उनसे चर्चा करनी होगी. मंत्री लखमा मानते हैं कि प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले व्यवस्थापन के लिए जमीन का चिन्हांकन किया जाना चाहिए. राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल भी पुनर्वास एवं व्यवस्थापन की बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित करने के हामी हैं.
जब 20वीं सदी में इस योजना को लाया जा रहा था तो इसका सबसे ज़्यादा विरोध अरविंद नेताम ने किया था. लेकिन वो इस बार इस योजना के पक्ष में हैं. इसकी वजह है कि इस बार ये योजना बस्तर के विकास के लिए लायी जा रही है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविन्द नेताम ने कहते हैं कि इस परियोजना के लाभ के बारे में लोगों को बताना होगा. पहले जनसामान्य का विश्वास अर्जित होगा. उन्होंने इस प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में वन अधिनियम, पेसा कानून एवं वनांचल के लोगों के हितों को ध्यान में रखने का सुझाव दिया था. नेताम ने इस प्रोजेक्ट से प्रभावित होने वाले गांवों एवं परिवारों की सही-सही जानकारी संधारित की जानी चाहिए. सभी ने कहा कि इस प्रोजेक्ट के लिए बस्तर के लोगों से रायशुमारी और लोगों की मंशा के अनुरूप ही इसका निर्माण होने की बात कही.