गोविंद पटेल, कुशीनगर. बौद्ध भिक्षु संघ के अध्यक्ष भदंत ज्ञानेश्वर महास्थवीर का शुक्रवार सुबह लखनऊ के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. 31 अक्टूबर की सुबह 4.50 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके पार्थिव शरीर को दर्शनार्थ कुशीनगर स्थित वर्मा बुद्ध विहार परिसर में 10 नवम्बर तक डीप फ्रीजर में रखा गया है. 11 नवम्बर को नगर भ्रमण के बाद मंदिर परिसर के पीछे निर्धारित स्थान पर बौद्ध रीति-रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. यहीं उनकी समाधि और स्तूप का निर्माण होगा. भंते अशोक ने बताया कि गुरुजी की स्पष्ट इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार मंदिर परिसर में ही हो, ताकि देश-विदेश के अनुयायी जब भी आएं तो उसी स्थान पर गुरु के स्तूप के दर्शन कर सकें.

भंते अशोक ने बताया कि गुरुजी कहा करते थे “हमारा जीवन कांच की बोतल की तरह है, जैसे उसमें रंग डाल दो, वैसे ही मन भी समाज की कुरीतियों से रंग जाता है. मन को बोतल की तरह ही साफ-सुथरा रखो. गुरुजी का स्वास्थ्य 11 अक्टूबर को बिगड़ गया था. पहले उन्हें गोरखपुर के एक निजी अस्पताल ले जाया गया. उसके बाद उन्हें वेंटीलेटर की सलाह दिए जाने पर सीधे मेदांता लखनऊ शिफ्ट किया गया. यहां 20 दिन इलाज चला. इस दौरान गुरुजी कुछ कहना चाहते थे, पर ऑक्सीजन मास्क और तबीयत खराब होने से बोल नहीं पाए. कागज और पेन भी दिया गया, लेकिन लिख भी न सके. भंते महेंद्र ने बताया कि 10 नवम्बर को ही गुरुजी का जन्मदिन है. इस वर्ष भव्य आयोजन की योजना थी, लेकिन उसके पहले ही देहावसान की खबर से सभी अनुयायी स्तब्ध हैं.

सीएम योगी का पत्र

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अनुयायियों के अनुसार गुरुजी की अंतिम इच्छा थी कि निधन के बाद पार्थिव शरीर का नगर भ्रमण कराया जाए, ताकि दुनिया भर में फैले अनुयायियों को अंतिम दर्शन मिल सकें. भदंत ज्ञानेश्वर का जन्म 1936 में बर्मा में हुआ था. 1963 में वे भारत पहुंचे और कुशीनगर में वर्मा बुद्ध मंदिर की स्थापना की. बौद्ध साहित्य, आध्यात्मिक हस्तक्षेप और धार्मिक नेतृत्व में उनका बड़ा योगदान रहा. वर्ष 2021 में म्यांमार सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च धार्मिक सम्मान ‘अभिधज्जा महारथ गुरु’ से सम्मानित किया था. यह सम्मान पाने वाले वे पहले भारतीय थे. शुक्रवार देर रात म्यांमार के राजदूत जाउ ओलिन कुशीनगर पहुंचे और गुरुजी के पार्थिव शरीर पर दो मालाएं अर्पित कीं. म्यांमार की अभिनेत्री और सुप्रसिद्ध गायिका चो प्योने भी अंतिम श्रद्धांजलि देने पहुंचीं. गुरुजी के निधन से पूर्वांचल के बौद्ध समाज में गहरा शोक है. अनुयायियों ने कहा धम्म का दीप बुझ गया, पर प्रकाश रह जाएगा.