BOMBAY HIGH COURT: बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र में पुलिस की कार्यप्रणाली पर अहम सवाल खड़े करते हुए पूछा है कि क्या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) वास्तव में राज्य की पुलिस पर लागू है या नहीं. यह सवाल बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो अलग-अलग मामलों में सुनवाई के दौरान उठाया है। अदालत ने Mumbai Police और Home Department से जवाब मांगा है और कहा है कि कानून लागू होने के बावजूद उसका पालन नहीं किया जा रहा, जो गंभीर चिंता का विषय है. जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस आरआर भोंसले की पीठ ने दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की और संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है.

अदालत ने पहले मामले में मुंबई के संयुक्त पुलिस आयुक्त (कानून एवं व्यवस्था) को निर्देश दिया है कि वे हलफनामे के जरिए स्पष्ट करके बताए कि क्या BNSS मुंबई पुलिस पर लागू है? अगर लागू है, तो फिर पुलिस नागरिकों को ऐसे समन क्यों भेज रही है, जो न तो कानून में दर्ज हैं और न ही पुलिस मैनुअल में. आगे हाई कोर्ट ने कहा कि “किसी अज्ञात प्रक्रिया के तहत नागरिकों को समन भेजना स्वीकार्य नहीं है.” हाईकोर्ट ने BNSS की धारा 173(3)(i) का जिक्र करते हुए कहा कि प्रारंभिक जांच 14 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए, लेकिन पुलिस महीनों तक जांच को लटकाए रखती है. कोर्ट ने साफ कहा कि या तो पुलिस कानून से अनजान है या फिर जानबूझकर उसका पालन नहीं कर रही.

यह याचिका Businessman मेहुल जैन ने दायर की है. उनके वकीलों ने अदालत को बताया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा गिरफ्तार कुछ लोगों से उनके कारोबारी संबंध थे. जमानत पर छूटने के बाद वे लोग जैन से पैसों की मांग कर रहे थे और जान से मारने की धमकी भी दी गई. कोर्ट ने कहा है की पुलिस कानून की धाराओं की पूरी तरह अनदेखी कर रही है और शिकायतों की जांच में बहुत ही धीरे धीरे काम कर रही है.

दूसरा मामला मीरा रोड के काशिमीरा पुलिस स्टेशन से जुड़ा मामला सामने आया. बिल्डर कुंदन जयवंत पाटिल ने आरोप लगाया कि उनकी पैतृक संपत्ति हड़पने की कोशिश की जा रहिया है। उन्होंने शिकायत की, लेकिन पुलिस ने उनकी FIR दर्ज नहीं की। उल्टा, जाली दस्तावेजों के आधार पर उनके खिलाफ ही मामला दर्ज कर लिया गया है.

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