नई दिल्ली . दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के पुराने स्पोर्ट्स इंजरी केंद्र में बोन मैरो प्रत्यारोपण इकाई सुविधा शुरू हुई है. इसके अलावा पुराने स्पोर्ट्स इंजरी केंद्र में कैंसर पीड़ितों के लिए आईसीयू में आठ बिस्तर की व्यवस्था भी की गई है. इसके अलावा कीमोथेरेपी के लिए 25 फीसदी अधिक बेड की सुविधा होगी.

सफदरजंग अस्पताल के कैंसर विभाग के अध्यक्ष डॉ. कौशल कालरा ने बताया कि बोन मैरो प्रत्यारोपण इकाई में छह बिस्तरों की सुविधा उपलब्ध है. अभी तक तीन मरीजों का सफल बोन मैरो प्रत्यारोपण किया जा चुका और चौथा मरीज अभी अस्पताल में भर्ती है. इसके लिए निजी अस्पतालों में 12 से 25 लाख रुपये तक का खर्च आता है. एम्स दिल्ली में भी पांच से 15 लाख रुपये तक का खर्च आता है, लेकिन सफदरजंग अस्पताल में यह सुविधा बहुत काम कीमतों पर उपलब्ध होगी.

नए ब्लॉक में बढ़ गई सुविधाएं

नए ब्लॉक में कैंसर और हेमेटोलॉजी दोनों विभागों में सुविधाएं बढ़ गई हैं. अस्पताल से मिली जानकारी के मुताबिक नए ब्लॉक में मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग में अब डे केयर के लिए 20 बेड की सुविधा होगी. पहले यह संख्या महज 15 बेड की थी. यहां पर अब प्रतिदिन पांच अतिरिक्त कीमोथेरेपी की सुविधा मिलेगी. वहीं, हेमेटोलॉजी डे केयर में अब 13 बेड की सुविधा होगी. पहले यह संख्या छह बेड की थी. यहां पर अब खून से जुड़े सात अतिरिक्त मरीजों को सुविधा मिलेगी. वहीं बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट की बात करें तो अब यह संख्या छह गुना हो गई है. इस यूनिट में अब कुल छह बेड होंगे. जबकि यूनिट को शुरू करने के दौरान यहां पर केवल एक बेड की सुविधा थी. इस यूनिट में दोनों विभाग के डॉक्टर मिलकर मरीज का इलाज करते हैं.

अस्पताल के सूत्रों के मुताबिक, प्रत्यारोपण का खर्च बिलकुल मुफ्त होता है लेकिन कुछ दवाएं और जांच मरीजों को बाहर से लेनी पड़ सकती हैं. कुछ हजार रुपये में यहां प्रत्यारोपण हो जाएगा. इस मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल और सफदरजंग की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वंदना तलवार मौजूद रहीं.

ये रक्तदान की तरह होता है

बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए सबसे पहले भाई-बहन को डोनर के रूप में वरीयता दी जाती है. अगर इनके साथ मिलान नहीं हो पाता है तो किसी को भी डोनर के रूप में लिया जा सकता है. बोन मैरो रक्तदान की तरह होता है.

बोन मैरो प्रत्यारोपण एक जटिल मेडिकल प्रक्रिया होती है. इसमें क्षतिग्रस्त या नष्ट हुई स्टेम सेल को स्वस्थ बोन मैरो सेल से बदला जाता है. बोन मैरो या अस्थि मज्जा हड्डियों के बीच पाया जाने वाला एक पदार्थ होता है, जिसमें स्टेम सेल होते हैं. ब्लड कैंसर, एप्लास्टिक एनीमिया और थैलेसीमिया जैसी बीमारियों से पीड़ित मरीजों के इलाज में इसका इस्तेमाल होता है.

ट्रांसप्लांट की जरूरत तब पड़ती है, जब बोन मैरो ठीक से काम करना बंद कर देता है या पर्याप्त मात्रा में स्वस्थ रक्त कोशिकाओं का उत्पादन नहीं कर पाता है. इस ट्रांसप्लांट में यह जरूरी है कि रोगी का बोन मैरो डोनर के बोन मैरो से मेल खाता हो. रक्त कैंसर जैसे लिंफोमा, ल्युकिमिया, एपलास्टिक एनीमिया आदि बीमारियों में मरीजों को बोन मैरो प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ सकती है.