रायपुर। नवरात्रि महापर्व पर माता रानी की पूजा अर्चना करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है. हिंदू धर्म में बताए गए मां के 9 स्वरूपों का अपना एक विशेष महत्व होता है. पहले दिन दुर्गा मां के शैलपुत्री अवतार की पूजा अर्चना की जाती है तो वहीं दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी के नाम का होता है. साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं. ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली. इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है. मां का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनंतफल देने वाला है.

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को आपने कलश में आमंत्रित किया है. उन्हें दूध, दही, घृत और शहद से स्नान कराएं. इसके बाद इन पर फूल, अक्षत, रोली, चंदन का भोग लगाएं. इसके बाद पान, सुपारी और कुछ दक्षिणा रखकर पंडित को दान करें. इसके बाद अपने हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करते हुए बार-बार मंत्र का उच्चारण करें.

इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी को सिर्फ लाल रंग का ही फूल चढ़ाए साथ ही कमल से बना हुआ ही माला पहनाएं। मां को चीनी का भोग लगाएं. ऐसा करने से मां जल्द ही प्रसन्न होती है. इसके बाद भगवान शिव जी की पूजा करें और फिर ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत आदि हाथ में लेकर “ऊं ब्रह्मणे नम:” कहते हुए इसे भूमि पर रखें.

मां ब्रह्मचारिणी के इस मंत्र का करें जाप…

दधानां करपद्याभ्यामक्षमालाकमण्डल।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्माचारिण्यनुत्तमा।

इस विधि से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कई कष्ट दूर हो जाते हैं और मनुष्य की उम्र लंबी होती है. अगर आपकी कुंडली में बुरे ग्रह स्थित हैं तो उनकी स्थिति सुधर जाती है. सारे दोष मिट जाते हैं और अंत में मनुष्य सारे सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त होता है.

“मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ”

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

“मां ब्रह्मचारिणी का कवच”

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।

अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥

षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।