दिल्ली. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे 93 वर्षीय नारायण दत्त तिवारी का गुरुवार को दोपहर 2.30 बजे नईदिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हो गई.

नारायण दत्त तिवारी पहले अखंड उत्तर प्रदेश और उसके बाद विभाजित होकर बने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री के अलावा नारायण दत्त तिवारी ने राज्यपाल के पद का भी दायित्व भी निभाया है. अपनी रंगीन मिजाजी को लेकर चर्चा में रहे एनडी तिवारी ने 89 साल की उम्र में उज्ज्वला शर्मा से शादी कर कोर्ट में गए रोहित शर्मा को अपने बेटे के रूप में अपनाया था.

नारायण दत्त तिवारी का व्यक्तिगत जीवन

नारायण दत्त तिवारी का जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था. तब उत्तर प्रदेश का गठन भी नहीं हुआ था. भारत का ये हिस्सा 1937 के बाद से यूनाइटेड प्रोविंस के तौर पर जाना गया और आजादी के बाद संविधान लागू होने पर इसे उत्तर प्रदेश का नाम मिला.तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे. महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर पूर्णानंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. नारायण दत्त तिवारी शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई. अपने पिता के तबादले की वजह से उन्हें एक से दूसरे शहर में रहते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की.अपने पिता की तरह ही वे भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए. 1942 में वह ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पकड़े गए. उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल में डाल दिया गया. इस जेल में उनके पिता पूर्णानंद तिवारी पहले से ही बंद थे. 15 महीने की जेल काटने के बाद वह 1944 में आजाद हुआ। बाद में तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने राजनीतिशास्त्र में एमए किया। उन्होंने एमए की परीक्षा में विश्वविद्याल में टाप किया था. बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की. 1947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी.

आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया.कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए. यह बेहद दिलचस्प है कि बाद के दिनों में कांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई. 431 सदस्यीय विधानसभा में तब सोशलिस्ट पार्टी के 20 लोग चुनकर आए थे. कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ. 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली. कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली. 1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था. 1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे.  एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. यह कार्यकाल बेहद संक्षिप्त था। 1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा. तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.  उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांखंड के भी मुख्यमंत्री बने. केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें याद किया जाता है। 1990 में एक वक्त ऐसा भी था जब राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी की चर्चा भी हुई पर आखिरकार कांग्रेस के भीतर पीवी नरसिंह राव के नाम पर मुहर लग गई। बाद में तिवारी आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनाए गए।