वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर। बिलासपुर हाईकोर्ट ने मीसाबंदियों मीसाबंदियों की पेंशन सुविधा को बहाल करने का आदेश सुनाया है. इससे पहले सिंगल बेंच की मीसाबंदियों के पक्ष में दिए फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने डबल बेंच में अपील की थी. बीते दिनों मामले में बहस पूरी होने के बाद चीफ़ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया गया था.

बता दें कि भाजपा शासन काल मे मीसाबंदियों को पेंशन की सुविधा दी जा रही थी. 2019 में सरकार बदलने के बाद भौतिक सत्यापन और समीक्षा की बात कहते हुए राज्य सरकार ने इसे बंद कर दिया गया था, जिसके खिलाफ मीसाबंदियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. तीस से ज्यादा मीसाबंदियों ने पेंशन की मांग को लेकर याचिका लगाई थी.

इस मामले में राज्य सरकार ने 2020 में दो नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें मीसाबंदियों को सम्मान निधि दिए जाने के पिछली सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया था. मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज कोर्ट ने फैसला सुनाया है, जिसमें राज्य सरकार के नोटिफिकेशन को रद्द करते हुए मीसाबंदियों को बड़ी राहत दी है.

बता दें कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल घोषित किया था. भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत घोषित आपातकाल 21 मार्च 1977 तक जारी रहा. इस दौरान देश भर में बड़ी संख्या में विपक्षी दलों और विरोधी संगठनों के लोगों को डिफ़ेंस ऑफ इंडिया रूल्स (डीआईआर) और मेंटीनेंस ऑफ़ इंटर्नल सिक्योरिटी एक्ट (मीसा) के तहत गिरफ़्तार किया गया था.

प्रदेश में मीसा बंदियों को पेंशन की शुरुआत रमन सरकार के कार्यकाल में लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि नियम 2008 के तहत हुई थी. इसके तहत डीआईआर और मीसा क़ानून के तहत छह महीने से कम अवधि तक जेल में रहने वाले लोगों को हर महीने 15 हज़ार रुपए और 6 महीने से अधिक समय तक जेल में रहने वाले लोगों को हर महीने 25 हज़ार रुपये की सम्मान निधि दी जा रही थी.

प्रदेश में सरकार बदलने पर प्रदेश की वर्तमान सरकार भौतिक सत्यापन के नाम पर पहले 28 जनवरी 2019 से राशि देनी बंद की गई. इस आदेश को न्यायालय में चुनौती देकर इसे लागू किए जाने की याचना की थी. इस दौरान सरकार ने इस नियम को 23 जनवरी 2020 से अधिसूचना जारी कर निरसित कर दिया था, जिससे उक्त दिनांक से पेंशन की पात्रता खत्म हो गई थी.