रायपुर- बजट पर सामान्य चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कानून व्यवस्था को लेकर सरकार पर कई आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि जब से कांग्रेस की सरकार आई है, तब से पुलिस का राजनीतिकरण किया जा रहा है. रात के डेढ़ बजे एफआईआर दर्ज कराई जा रही है. 30 जनवरी ट्रांसपोर्टर सूरज सिंह की हत्या हो गई. 1 फरवरी को ज्वेलरी व्यवसायी को खुलेआम गोली मारी गई. गृहमंत्री ने खुद कहा कि पुलिस का इंटेलीजेंस कमजोर हो गया है. दिनदहाड़े रघुनाथपुर में छात्रा का अपहरण हो रहा है. कहां है कानून व्यवस्था? पुलिस को अपराधियों को गिरफ्तार करना चाहिए लेकिन पुलिस दूसरी ओर लगी हुई है.

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री दूसरों पर ठीकरा फोड़ना चाहते हैं, लेकिन जब उन्होंने घोषणा की थी तब क्या जनता से पूछा था. ये मंशा नहीं होनी चाहिए कि शराब के पैसों से सरकार चलाई जाएगी. किसानों को लेकर पेंशन देने का भी जिक्र हुआ था, लेकिन इसकी चिंता की जरूरत थी. इसका अभाव दिख रहा है.

सोशल सेक्टर में होने वाले खर्चों में कमी लाई गई है. स्वास्थ्य,  शिक्षा, श्रम जैसे सेक्टर में वित्तीय प्रबंधन हो तो हालात बेहतर होते.  सिम्स में आग लगने से 5 बच्चों की मौत हो गई.  डॉक्टरों के पद रिक्त पड़े हुए हैं. प्रदेश में कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खाली पड़ी हुई है. क्या ये उदाहरण देकर चलेंगे कि पूर्व में नही हुआ, तो हम भी नहीं करेंगे.

धरमलाल कौशिक ने नरवा, घुरवा, गरवा, बारी योजना पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि ये योजना केवल जुमलेबाजी साबित होगी. वित्तीय प्रबंधन बेहतर होना चाहिए, लेकिन सरकार की मौजूदा कार्यप्रणाली ऐसी है कि ब्याज की देनदारी बढ़ेगी. इससे छत्तीसगढ़ का विकास प्रभावित होगा. आर्थिक विश्लेषण करने वालों ने चिंता जताई है कि हालात ऐसे ही बने रहे तो आने वाले दिनों में स्थिति बिगड़ जाएगी. प्राप्तियों के एवज में होने वाले व्यय पर बजट आधारित होता है. पूंजीगत व्यय में भारी कमी आई है.

पुलिसकर्मी,  शिक्षाकर्मी आंदोलन की राह में जा रहे हैं लेकिन इनके लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं किया गया.  शासकीय कर्मचारियों के लिए सातवें वेतनमान का प्रावधान नहीं किया गया.  किसानों के बजट में दस हजार करोड़ रुपये केवल उन घोषणाओं के लिए है जिन्हें लेकर कांग्रेस ने वादा किया है. सीमांत किसानों की संख्या बहुत ज्यादा है. बैंक के कर्जों की वजह से नहीं बल्कि है किसान साहूकार के चंगुल में फंसे हैं. इसे देखना चाहिए कि किसान कैसे साहूकारों के चंगुलों से कैसे मुक्त हो?

कर्जमाफी का जिक्र हुआ तो सरकार की गाड़ी अल्पकालीन ऋण पर आकर रुक गई. जब दीर्घकालीन ऋण और मध्यकालीन ऋण से किसानों को मुक्त किया जा सके,  इसकी कोई व्यवस्था बजट में नहीं है. सरकार की पतली हालत दिखाई दे रही है.  बिजली बिल हाफ का भी हाफ है. पहले ही सरकार ने 400 यूनिट तक की बंदिश लगा दिया है.