हेमंत शर्मा, रायपुर। माओवादियों के प्रतिबंधित संगठन पीपुल्स लिब्रेशन फ्रंट ऑफ इंडिया के नाम से बिजली विभाग के एक ठेकेदार को धमकी भरा पत्र मिला है। व्हाट्सअप के जरिये आए पत्र में 10 करोड़ रुपये की मांग की गई है। मामले में ठेकेदार ने सरस्वती नगर थाना में शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कर जांच शुरु कर दी है।
मारुति लाइफ स्टाइल कोटा निवासी नमिश भोजासिया बिजली विभाग में ठेकेदार हैं। 16 दिसंबर को करीब ढाई बजे उनके पास 1(204)6740602 मोबाइल नंबर से एक मैसेज आया। मैसेज में अंग्रेजी में H लिखा हुआ आया था। फिर उसी दिन कुछ मिनट बाद एक अन्य 1(204)6745161 मोबाइल नंबर से व्हाट्सएप के माध्यम से ठेकेदार को पीपुल्स लिब्रेशन फ्रंट ऑफ इंडिया के नाम से बने लेटर हेड में पार्टी को सहयोग राशि के रूप में 10 करोड़ रुपए जमा करने का धमकी भरा पत्र मिला था। पत्र में उन्हें पैसे देने के लिए 15 दिन की मोहलत दिये जाने की बात लिखी है। इसके साथ ही कहा गया है कि आपने बिजली विभाग में 350 करोड़ रुपये का घोटाला किया है। जिसका डाटा पार्टी के पास मौजूद है। रायपुर में आपके पीछे लोग जांच में लगे हैं। जल्दी समझौता कर लें। पत्र भेजने वाले ने अपना नाम दिनेश गोप लिखा है।
इसके बाद अगले दिन 17 दिसंबर को दोपहर 1:13 मिनट पर प्रार्थी के पास एक व्हाट्सएप वीडियो कॉल आया। इसमें पीड़ित ठेकेदार को जंगल और बंदूक दिखाई दे रहा था तो इसने कॉल काट दिया। इसके अलावा इसी दिन ही उनके पास धमकी भरा ऑडियो मैसेज भी आया है।
इस मामले में सरस्वती नगर पुलिस का कहना है कि ठेकेदार को काफी अलग-अलग नम्बरों से व्हाट्सएप के जरिये धमकी भरा पत्र आया है। जिस लेटर हेड से इसे पत्र मिला है उसकी जांच की जा रही है। हो सकता है वो फर्जी भी हो। इसके अलावा मोबाइल नंबर काफी अलग है इसके लोकेशन आदि के लिए साइबर सेल की मदद भी ली जा रही है।
माओवादियों के नाम से फर्जी वसूली ?
इस पूरे मामले में जानकारों का कहना है कि कुछ वेब एप के जरिये फर्जी अलग-अलग नंबरों से कॉल किया जा सकता है और इसी तरह वाट्सअप मैसेज भी किये जा सकते हैं। जिसमें अलग-अलग देशों का नंबर नजर आता है। वहीं वाट्सअप से जो पत्र मिला है उसमें पत्र एक पिस्टल से दबा नजर आ रहा है। गौर से देखने पर वह पिस्टल बाजार में बच्चों के खेलने के लिए मिलने वाली प्लास्टिक की पिस्टल जैसी नजर आ रही है जिसमें प्लास्टिक के छर्रे रहते हैं। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह माओवादियों के नाम से फर्जी वसूली का कोई खेल तो नहीं ?