अजय नीमा, उज्जैन। भारतीय विवाह परंपराओं में आमतौर पर दूल्हे को घोड़ी पर बैठकर बारात ले जाते देखा जाता है। लेकिन बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जिसने पुरातन संस्कृति और आधुनिक समानता (Gender Equality) का अद्भुत संगम पेश किया। यहां एक निजी होटल में आयोजित विवाह समारोह में राजस्थानी श्रीमाली ब्राह्मण समाज की पारम्परिक रस्म ‘दुल्हन की बंदोली’ पूरे हर्षोल्लास के साथ निभाई गई।

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इस अनूठी रस्म में दुल्हन, दूल्हे की तरह ही शाही अंदाज में सज-धजकर घोड़ी पर सवार हुई। ढोल-नगाड़ों की थाप और परिजनों के उत्साह के बीच जब दुल्हन की सवारी दूल्हे के निवास की ओर बढ़ी, तो दृश्य किसी प्राचीन ‘स्वयंवर’ की तरह लग रहा था। राजस्थान और बड़ौदा से आए वर-वधू पक्ष के लोगों ने बताया कि यह रस्म बेटा और बेटी में समानता का प्रतीक है। समाज का संदेश साफ है कि खुशियों और उत्सव पर जितना अधिकार लड़कों का है, उतना ही लड़कियों का भी।

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जैसे ही ‘बंदोली’ दूल्हे के द्वार पहुंची, वहां दूल्हे की मां और परिवार की अन्य महिलाएं मंगल गीतों के साथ दुल्हन की आरती उतारकर आत्मीय स्वागत करती है। परंपरा के अनुसार, इस स्वागत के बाद दूल्हा पक्ष की ओर से दुल्हन को ‘शादी का जोड़ा’ भेंट किया जाता है, जिसे धारण कर वह विवाह वेदी पर बैठती है। गौरी पूजन के बाद निभाई जाने वाली यह रस्म न केवल सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखती है, बल्कि समाज को एक प्रगतिशील संदेश भी देती है। आपको बता दें कि इस विवाह में एक खास बात यह भी होती है कि जब फेरे का समय होता है, तब दूल्हा शुरू के होने वाले चार फेरों में दुल्हन को अपनी गोद में उठाकर फेरे लेता है।

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