Brihaspati and Shukracharya: सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के दो वंशज — अंगिरा के पुत्र बृहस्पति और भृगु के पुत्र शुक्राचार्य — दोनों ही ब्रह्मविद्या में पारंगत, अद्भुत तपस्वी और नीति-शास्त्र के ज्ञाता थे. फिर भी, एक देवताओं का गुरु बना और दूसरा दैत्यों का. यह केवल देव और असुरों के बीच का टकराव नहीं था, बल्कि दो विचारधाराओं की लड़ाई भी थी. जहाँ बृहस्पति धर्म की रक्षा करते हैं, वहीं शुक्राचार्य न्याय के पक्षधर थे, चाहे उन्हें असुरों के साथ ही क्यों न खड़ा होना पड़े.
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बृहस्पति – देवताओं के गुरु (Brihaspati and Shukracharya)
बृहस्पति, अंगिरा ऋषि के पुत्र थे, जो स्वयं एक महान ब्रह्मर्षि माने जाते हैं. बृहस्पति वेदों, शास्त्रों और धर्म के ज्ञाता थे. वे सत्य, मर्यादा और धर्म के प्रतीक माने जाते हैं. देवताओं के गुरु के रूप में उन्होंने उन्हें नीति, यज्ञ और धर्म के मार्ग पर चलना सिखाया. उनका मुख्य उद्देश्य सृष्टि में संतुलन बनाए रखना और धर्म की रक्षा करना था.
शुक्राचार्य – दैत्यों के गुरु (Brihaspati and Shukracharya)
शुक्राचार्य, महर्षि भृगु के पुत्र थे और अत्यंत विद्वान ब्राह्मण थे. उन्होंने भगवान शिव से संजीवनी विद्या प्राप्त की थी, जिससे वे मृतकों को भी जीवित कर सकते थे. इसी अद्भुत विद्या और ज्ञान के कारण दैत्यों ने उन्हें अपना गुरु बना लिया. शुक्राचार्य केवल ज्ञान ही नहीं देते थे, बल्कि दैत्यों को देवताओं के अन्याय के विरुद्ध लड़ने की शक्ति भी प्रदान करते थे. वे न्यायप्रिय थे और सृष्टि में संतुलन के पक्षधर थे. उन्होंने असुरों को इसलिए ज्ञान दिया क्योंकि वे मानते थे कि हर प्राणी को अपने अधिकारों की रक्षा का अवसर मिलना चाहिए, चाहे वह देव हो या दैत्य.
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