रायपुर। आपातकाल के 45 बरस पूरा होने पर पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने प्रेस कान्फ्रेंस लेकर कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। बृजमोहन ने कहा कि 25 जून जो देश ने 45 वीं जयंती ने मनाया है। आपातकाल में सबसे ज्यादा भुक्तभोगी यदि किसी पार्टी के रहे हैं तो वह जनसंघ और आरएसएस के लोगों ने भोगी है। 25 जून 1975 को कांग्रेस की सर्व शक्तिमान नेता इन्दिरा गांधी ने देश में विरोध का स्वर देखा, जे पी आंदोलन देखा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय देखा। कांग्रेस उस जमाने में भी एक परिवार के इशारे पर चलती थी आज भी चलती है। अधिनायकवादी प्रवृत्ति की वजह से आजादी को गिरवी रख दी थी। 1947 में आजादी मिली थी, देश में लोकतंत्र स्थापित किया गया था, लेकिन इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की हत्या कर दी थी।

नेताओं को जेलों में ठूस दिया गया था. छत्तीसगढ़ में भी बहुत से नेता रहे हैं, जिन्हें जेलों में डाल दिया गया। आपातकाल के 19 माह में कई परिवार उजड़ गए थे। लोकतंत्र के सेनानियों के लिए बीजेपी ने मीसाबंदी सम्मान निधि शुरू की थी, इसे कांग्रेस की सरकार ने बंद कर दिया. हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी सरकार ने मीसाबंदी सम्मान निधि शुरू नहीं किया। आपातकाल के दौरान मीडिया पर अंकुश लगाया गया था। 3801 अखबारों को जपत कर दिया गया था। 327 पत्रकारों को जेल में बंद कर दिया गया था। 51 विदेशी पत्रकारों की मान्यता छीन ली गई थी। मीडिया के साथ जैसा व्यवहार किया गया था, आज छत्तीसगढ़ में भी पत्रकारो के साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है। एक सर्कुलर जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि गलत खबर होने पर पत्रकार के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जाएगा। अर्नब गोस्वामी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। एक दर्जन से ज्यादा ऐसे लोग जो सोशल मीडिया पर कमेंट करते हैं, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।

इंदिरा गांधी ने स्वयं प्रधानमंत्री बने रहने के लिए आपातकाल लगा दिया गया था, ऐसे ही कांग्रेस में कभी सोनिया अध्यक्ष बन जाती है, राहुल हटाये जाते है और फिर राहुल को दोबारा अध्यक्ष बनाने के लिए जोर आजमाईश किया जा रहा है। जहां-जहां कांग्रेस की सरकार है, वहां-वहां तानाशाही रवैया अपनाया जा रहा है। किसी तरह की कोई सुनवाई नहीं हो रही। आज हम 45 साल पुराने इस काले इतिहास को इसलिए याद दिलाया जा रहा है कि यदि कोई दोबारा ऐसा कृत्य करेगी तो जनता सबक सिखाती है।

छत्तीसगढ़ में 65 सीट मिलने के बाद सरकार को लग रहा है कि जनता उनके साथ है.लेकिन हकीकत है कि ये जनता विरोधी फैसले हैं। बीजेपी सरकार में पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे दर्ज नहीं हुए थे, नक्सल क्षेत्र में जरूर हुआ है लेकिन उन प्रकरणों को सरकार ने रिव्यू किया था।