कांकेर। सागौन सहित कीमती लकड़ियों की तस्करी की मीडिया रिपोर्ट के बाद वन विभाग की टीम ने बीएसएफ कैम्प में दबिश दी. वन परिक्षेत्राधिकारी दिलीप सिन्हा के नेतृत्व में वन विभाग की टीम बीएसएफ कैम्प पहुंची. शनिवार को तकरीबन 7 घंटे तक वन विभाग की टीम बीएसएफ केम्प के अंदर रही और अधिकारियों समेत जवानों से भी सवाल जवाब किये. वहीं वन विभाग की कार्रवाई रविवार को भी बीएसएफ केम्प में जारी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीएसएफ केम्प में बड़ी मात्रा में सागौन सहित कीमती इमारती लकड़ियों के गोले बरामद हुए हैं जिनकी बाजार कीमत अत्याधिक है.

वन परिक्षेत्राधिकारी दिलीप सिन्हा ने लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि सूचना मिली थी जिसके बाद वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची. वहां आपत्तिजनक कुछ भी नहीं मिला है. मीडिया में फर्नीचर बनाते और लकड़ी काटते जो फोटो आई थी उसके संबंध में बीएसएफ अधिकारियों का कहना है कि वो लकड़ी खरीदी गई है. हमने उनसे बिल मांगा है. बिल अधिकारियों के पास थे और वे कल नहीं थे, आज वो बिल देंगे. वहीं छापे के दौरान बड़ी मात्रा में सागौन और कीमती लकड़ियों के बरामद होने की सूचना पर उन्होंने कहा कि सागौन के पेड़ आंधी तूफान से सितंबर में गिरे थे जो कि जानकारी में है.

आपको बता दें कि कोयलीबेड़ा में ग्रामीणों की मदद से बीएसएफ की 35 वीं बटालियन के जवानों द्वारा सागौन सहित कीमती लकड़ियों की अवैध कटाई करवाई जाती थी. इन प्रतिबंधित लकड़ियों को कटवाकर बीएसएफ के कैम्प लाया जाता था. जहां कैम्प के भीतर लकड़ियों को चीर कर फर्नीचर इत्यादि बनाए जाते थे और बाद में उन्हें बीएसएफ की गाड़ियों में छिपाकर बाहर भेज दिया जाता था.  इस मामले में पहले बीएसएफ के अधिकारियों ने कैम्प के अंदर फर्नीचर बनवाने से इंकार कर दिया था. लेकिन अंदर की फोटो सामने आने के बाद बवाल मच गया और आनन-फानन में वन विभाग की टीम ने बीएसएफ कैम्प में दबिश दी.

ऐसे में वन विभाग की कार्रवाई पर भी सवाल उठने लगे हैं. सवाल यह उठता है कि अंदर जो लकड़ियों के गोले बरामद हुए हैं वो अगर वन विभाग की जानकारी में थे तो उन्हें पहले अपने कब्जे में लिया क्यों नहीं लिया और डिपो में जमा क्यों नहीं करवाया, जबकि सागौन कीमती लकड़ी है जिसकी बड़े पैमाने पर छत्तीसगढ़ में तस्करी होती है. अब आरोप यह भी लग रहा है कि मीडिया में खबर आने के बाद वन विभाग मामले में लीपापोती में लग गया है.