दिल्ली हाईकोर्ट ने बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) के एक जवान की बर्खास्तगी को सही ठहराया है, जिस पर एक मृतक जवान की विधवा पत्नी से शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने का आरोप साबित हुआ था. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि फोर्स के किसी सदस्य की विधवा को धोखे से शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करना वर्दीधारी सेवाओं में अपेक्षित अनुशासन और सम्मान का घोर उल्लंघन है.

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जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की दो सदस्यीय बेंच ने पिछले महीने इस मामले की सुनवाई की थी. दोषी जवान को बलात्कार और जालसाजी का दोषी पाए जाने के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.

यह मामला वर्ष 2019 का है, जब बीएसएफ की एक महिला कॉन्स्टेबल (जो एक मृतक कर्मचारी की विधवा हैं) ने आरोपी जवान के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने नकली डेथ सर्टिफिकेट बनवाकर खुद को विधुर बताया और शादी का झूठा वादा करके उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए.

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पीड़िता, जो खुद BSF में कॉन्स्टेबल के पद पर कार्यरत है, ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि आरोपी ने अपनी जीवित पत्नी का नकली डेथ सर्टिफिकेट बनवाया और खुद को विधुर बताकर उससे शादी का वादा किया. इसके बाद उसने शारीरिक संबंध बनाए और बाद में उसे परेशान करते हुए तस्वीरों से छेड़छाड़ करने और ब्लैकमेल करने की धमकी दी.

इस मामले में जनरल सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट (GSFC) ने आरोपी को दुष्कर्म और जालसाजी का दोषी पाया था. शुरू में उसे दो साल की कैद और नौकरी से बर्खास्तगी की सजा सुनाई गई, लेकिन बाद में उसकी सजा बढ़ाकर 10 साल कर दी गई.

इसके बाद दोषी जवान ने GSFC के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी. अपनी याचिका में उसने कहा कि दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बने थे और महिला के पास आरोप लगाने का कोई ठोस कारण नहीं था. जवान ने यह भी दलील दी कि उसके खिलाफ प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ और बिना पर्याप्त आधार के उसकी सजा में बढ़ोतरी कर दी गई.

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GSFT कोर्ट ने दोषी को सुनवाई का पूरा अवसर दिया था

केंद्र सरकार ने उसकी याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि GSFC ने आरोपी को सुनवाई का पूरा अवसर दिया था. साथ ही, महिला की ‘कथित सहमति’ वास्तव में छल से प्राप्त की गई थी, क्योंकि आरोपी ने अपनी वैवाहिक स्थिति को गलत तरीके से प्रस्तुत किया था.

हाईकोर्ट की जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए कहा, “किसी महिला, विशेषकर एक मृत बल सदस्य की विधवा को धोखे से बहकाने का कृत्य अत्यंत निंदनीय है. याचिकाकर्ता का यह कृत्य वर्दीधारी सेवाओं से अपेक्षित अनुशासन, निष्ठा और सम्मान के मानकों के खिलाफ है, इसलिए दी गई सजा उचित है.”

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जजों ने स्पष्ट किया कि यह सहमति दूषित थी और बलात्कार पर GSFC के निष्कर्ष ठोस सबूतों पर आधारित हैं. इनकी पुष्टि दस्तावेजी रिकॉर्ड, आरोपी की स्वीकारोक्ति और गवाहों की मौखिक गवाही से हुई है. अदालत ने कहा कि आरोपी की यह दलील पूरी तरह निराधार है कि संबंध सहमति से बने थे.

अदालत ने बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए कहा, “किसी महिला, विशेषकर एक मृत बल सदस्य की विधवा को धोखे से बहकाने का कृत्य अत्यंत निंदनीय है. याचिकाकर्ता का यह कृत्य वर्दीधारी सेवाओं से अपेक्षित अनुशासन, निष्ठा और सम्मान के मानकों के खिलाफ है, इसलिए दी गई सजा उचित है.”