हाथी मेरा साथी यह फिल्मी गीत तो आपने सुना होगा, लेकिन चुनावी माहौल में यह लाइन थोड़ी बदली बदली नजर आ रही है. चर्चा यही है कि हाथी का कौन बने साथी? पढ़िए लल्लूराम डॉट कॉम की खास रिपोर्ट…

कर्ण मिश्रा, ग्वालियर. मध्य प्रदेश के साथ ही ग्वालियर चंबल अंचल में एक वक्त ऐसा था जब बहुजन समाज पार्टी यानी कि हाथी की चाल अच्छे-अच्छे राजनीतिक दलों के खेल को बिगाड़ देती थी, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में बीएसपी यानी हाथी का कौन बने साथी जैसे हालात नज़र आ रहे हैं. ग्वालियर चंबल अंचल की चारों लोकसभा सीट पर बीएसपी अपना उम्मीदवार घोषित नहीं कर पा रही है. बीएसपी को सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस के बागियों से उम्मीद है. लेकिन वह बागी भी 2019 के परिणाम के चलते राजनीतिक दांव खेलने से डर रहे हैं. आइए सबसे पहले आपको बीते लोकसभा चुनाव 2019 के बीएसपी उम्मीदवारों और उनके नतीजे से रूबरू कराते हैं.

  • ग्वालियर- ममता बलवीर सिंह कुशवाह 3.74% वोट दर के साथ 44677 वोट हासिल किए औऱ तीसरे नबंर पर रहीं.
  • भिंड- बाबू राम जमोर 6.93% वोट दर के साथ 66613 वोट हासिल किए. तीसरे नम्बर पर रहे.
  • मुरैना- करतार सिंह 11.38% वोट दर के साथ 129380 वोट हासिल किए और तीसरे नंबर पर रहे.
  • गुना- धाकड़ लोकेंद्र सिंह राजपूत 3.18% वोट दर के साथ 37530 वोट हासिल किए और तीसरे नंबर पर रहे.

राजनीति से अपना अस्तित्व खो चुकी BSP: कांग्रेस

कांग्रेस और भाजपा दोनों का ही कहना है कि बहुजन समाज पार्टी से उसका कोर वोटर अब दूर हो रहा है. बहुजन समाज पार्टी अब राजनीति से अपना अस्तित्व खो चुकी है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता डॉ राम पांडे का कहना है कि एक वक्त था जब बहुजन समाज पार्टी संविधान बचाने के लिए लड़ती थी, लेकिन अब वह ईडी-सीबीआई के डर से चुनाव से दूरी बना रही है.

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बागी भी BSP से लड़ने से घबरा रहे: BJP

वहीं भाजपा के प्रदेश कार्य समिति सदस्य कमल माखीजानी का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी जाति के आधार पर राजनीति करती थी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के कार्य और शैली को देखकर अब हर समाज बीजेपी के साथ जुड़ रहा है. ऐसे में बीएसपी सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी के बाकियों से उम्मीद लगाए बैठी है. इस बार वह बागी भी बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ने से घबरा रहे हैं.

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BSP का बिगड़ा समीकरण

अंचल के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप मांढरे का भी मानना है कि बहुजन समाज पार्टी ग्वालियर चंबल अंचल के साथ ही मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर इस बार संघर्ष के दौर से गुजर रही है. उसे ढूंढे ढूंढे भी प्रत्याशी नहीं मिल रहे हैं. सीधे तौर पर कहा जाए तो एक वक्त था जब बीएसपी राजनीतिक दलों के समीकरण बिगाड़ देती थी. लेकिन अब बहुजन समाज पार्टी का खुद का समीकरण बिगड़ा हुआ है. जिसके चलते अंचल की चारों सीटों के साथ ही मध्य प्रदेश की सभी सीटों पर उसका प्रभाव इस बार खत्म ही नजर आ रहा है.

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हाथी का कौन बने अब साथी

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में पिछले तीन दशक से ग्वालियर चंबल अंचल से विधायक चुनकर भोपाल भेजती रही. बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ तेजी से नीचे की ओर जा रहा है. इस अंचल से 2023 विधानसभा चुनाव में बसपा एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई. वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में मजबूत प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारने की स्थिति में भी नजर नहीं आ रही है. बसपा भाजपा और कांग्रेस के बागियों पर निर्भर हो चुकी है. ऐसी स्थिति में 90 के दशक में बड़ी पार्टी के रूप में उभरी बसपा का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ता जा रहा है. यही वजह है कि हर जगह चर्चा है कि हाथी का कौन बने अब साथी?

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