हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर नगर निगम की हाल ही में की गई एक कार्रवाई अब खुद विवादों में घिर गई है। योजना क्रमांक 54, पीयू-4 क्षेत्र में एक चार मंजिला इमारत को पहले मशीनों से तोड़ा गया और फिर विस्फोटक लगाकर पूरी तरह से जमींदोज कर दिया गया। अब इस मामले में गंभीर आरोप सामने आए हैं। भवन मालिक ने दावा किया है कि निगम के क्षेत्रीय इंजीनियर ने पहले 5 लाख रुपए लिए थे और बाद में 15 लाख और मांगे। जब यह राशि नहीं दी गई, तो पूरी इमारत को अवैध बताकर ढहा दिया गया।

खास बात यह है कि जिस नक्शे के आधार पर बिल्डिंग बनी थी, वह खुद नगर निगम से पास हुआ था। इस कार्रवाई के बाद अब निगम अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के बीच खींचतान शुरू हो गई है। महापौर परिषद के सदस्य राजेश उदावत ने प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि इस नक्शे को पास करने वाले इंजीनियर असित खरे को ही अब उसी जोनल कार्यालय में तैनात कर दिया गया है। उन्होंने इसे भ्रष्ट अफसर को बचाने की कोशिश बताया।

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निर्माण अवैध था तो नक्शा पास कैसे हुआ ?

नेता प्रतिपक्ष चिंदू चौकसे ने आरोप लगाए है उनका कहना है कि सिर्फ तबादले से कुछ नहीं होगा। दोषी भवन अधिकारी और निरीक्षक को निलंबित कर उनके खिलाफ विभागीय जांच होनी चाहिए। नगर निगम ने इस बिल्डिंग को नाले के 9 मीटर दायरे में अवैध निर्माण बताकर गिराया है, लेकिन अब सवाल यह उठ रहे हैं कि अगर निर्माण अवैध था, तो नक्शा पास कैसे हुआ? और अगर नक्शा सही था, तो फिर बिल्डिंग क्यों तोड़ी गई? इस पूरे मामले से निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। क्या वाकई यह कार्रवाई नियमों के तहत हुई या फिर किसी घूसखोरी के खेल का नतीजा थी, यह अब जांच का विषय है।

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