उमेश यादव, सागर। बुंदेलखंड के एक गांव में होलिका का दहन नहीं किया जाता है। होलिका दहन का जिक्र आते ही लोग डर जाते है। यहां पर होलिका दहन की रात भी आम रातों की तरह होती है, आखिर क्या वजह है जो यहां के लोग होली नहीं जलाते हैं। आइए जानते है…

देश के लगभग हर हिस्से में होली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है, लेकिन बुंदेलखंड के सागर जिले का हथखोह एक ऐसा गांव है, जहां होली का जिक्र आते ही लोग डर जाते हैं। यहां के लोग होलिका का दहन ही नहीं करते हैं। इस गांव में होलिका दहन को लेकर न तो कोई उत्साह दिखता है और न ही किसी तरह की उमंग नजर आती है। देवरी विकासखंड के हथखोह गांव में होली की रात आम रातों की तरह ही रहती है।

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ये है वजह

इस गांव में होली नहीं जलाने के पीछे एक किंवदंती यानी अफवाह है। बताया जाता है कि दशकों पहले गांव में होलिका दहन के दौरान कई झोपड़ियों में आग लग गई थी। तब गांव के लोगों ने झारखंडन देवी की आराधना की और आग बुझ गई। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह आग झारखंडन देवी की कृपा से बुझी थी। लिहाजा होलिका का दहन नहीं किया जाना चाहिए। यही कारण है कि कई पीढ़ियों से हथखोह गांव में होलिका दहन नहीं होता है।

झारखंडन देवी कहीं नाराज न हो जाएं

गांव के बुजुर्गों की मानें तो उनकी पूरी उम्र गुजर गई, लेकिन उन्होंने गांव में कभी होलिका दहन होते नहीं देखा है। उनका कहना है कि यहां के लेागों को इस बात का डर है कि होली जलाने से झारखंडन देवी कहीं नाराज न हो जाएं। ग्रामीण बताते हैं कि इस गांव में होलिका दहन भले नहीं ही होता है, लेकिन हम लोग रंग गुलाल लगाकर होली का त्यौहार मनाते हैं। झारखंडन माता मंदिर के पुजारी के अनुसार हथखोह गांव के लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि देवी ने साक्षात दर्शन दिए थे और लोगों से होली न जलाने को कहा था तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

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कुलदेवी मानी जाती है झारखंडन माता

दशकों पहले यहां होली जलाई गई थी तो कई मकान जल गए थे और लोगों ने जब झारखंडन देवी की आराधना की तब आग बुझी थी। झारखंडन धाम में चैत्र की नवरात्रि में मेले का आयोजन भी किया जाता है। जिसमें दूर-दूर से लोग आते है और उनकी हर मनोकामनाएं पूरी होती है। झारखंडन माता यहां के ग्रामीणों की कुलदेवी भी मानी जाती है।

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