रायपुर- हाल ही में छत्तीसगढ़ के आईएएस अधिकारी शिवअनंत तायल ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांतों पर सवाल उठाया था, तब सत्ता और संगठन के दिग्गज चेहरों ने इसकी कड़ी आलोचना की थी। सरकार की सख्ती भी देखने को मिली थी। लेकिन आज हालात बदले नजर आए, जिस प्रशासनिक व्यवस्था से जुड़े शख्स ने दीनदयाल के सिद्धांतों पर प्रश्नचिन्ह लगाया था, आज वहीं व्यवस्था पं. दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से सुशासन लाने के गुर सिखती- समझती नजर आई।
दरअसल छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर उनकी जीवन यात्रा और विचारों की प्रासंगिकता विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया था, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में दीनदयाल पर शोध कर साहित्य रचना करने वाले डा. महेश चंद्र शर्मा मौजूद थे। इस दौरान मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह, विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल समेत वो हर बड़ा चेहरा मौजूद था, जिस पर प्रदेश में सुशासन लाने की जिम्मेदारी है।
व्याख्यान के दौरान डा. महेश चंद्र शर्मा ने कहा कि 2 रुपये किलो में अनाज देना सुशासन लाने का हल नहीं है। अनाज की कीमत यदि 22 रुपये किलो है, तो उसे खरीदने की ताकत देना इलाज है। यही पंडित दीनदयाल उपाध्याय की एकात्म मानववाद का सिद्धांत भी है। उन्होंने कहा कि समाज की असली ताकत यही है कि वो सत्ता को अपने निर्देशों से चलाए। समाज यदि ऐसा नहीं करेगा, तो स्वावलंबी नहीं बनेगा। शर्मा ने कहा कि दीनदयाल की अवधारणा कहती है कि राजनीति में केवल वोट मांगने नहीं जाइये, बल्कि समाज को शिक्षित करने जाइए। उन्होंने कहा कि सिद्धांतहीन मतदान, सिद्धांतहीन सरकार की जनक है। डा. महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि दीनदयाल मानते थे कि सत्तापक्ष कमजोर हो और विपक्ष ना हो तो लोकतंत्र के लिए खतरा होता है। उनके सामने विपक्ष को बुनने की चुनौती थी। लेकिन मजबूत इरादे के साथ उन्होंने शून्य सीटों को चार चुनाव में भर दिया। देश के स्तंभ को मजबूत करने के लिए जिस विपक्ष की जरूरत थी उसे दीनदयाल उपाध्याय ने खड़ा किया।
महेशचंद्र शर्मा ने कहा – इंडियन नेशनल कांग्रेस आजादी के आंदोलन की देन है। लेकिन उसके बाद देश में कोई भी अखिल भारतीय दल खड़ा हो पाया, तो वो दल था भारतीय जनता पार्टी। देश विकल्पहीन हो जाता, यदि दीनदयाल उपाध्याय भाजपा दल का गठन नहीं करते। उन्होंने कहा था कि हमें सत्ता में आना है, लेकिन इसके लिए राजधर्म की साधना करनी होगी। वो मानते थे कि राजनीति चुनौतीविहीन नहीं हो सकती। राजनीति में आना है, तो चाणक्य को पढ़ना होगा, महाभारत की रचना पढ़नी होगी। रपटीली राहों से गुजरना होगा और उसके बाद जब सत्ता मिले, तो राजधर्म के मायने और उसकी अहमियत समझनी होगी।
शर्मा ने कहा कि एक बहस आज भी जारी है कि भारत एक राष्ट्र है या नहीं। जेनएयू में नारा लगता है भारत तेरे टुकड़े होंगे। आज भी वही स्थिति है, जो दीनदयाल उपाध्याय के वक्त थी। दुनिया में राष्ट्रवाद की परिभाषा ये हो गई है कि किसी राष्ट्र को मान्यता दे दे। पश्चिम के नेशनलिज्म ने दुनिया को उपनिवेशवाद, साम्रज्यवाद दिया है। फासिज्म दिया है। विश्व युद्ध दिया है। कोल्ड वार दिया है। पोलिटिकल नेशनलिज्म ने दुनिया को कैसे राष्ट्रवाद की परिभाषा दी है। यूरोपीय देशों की सीमाएं सेना से मुक्त है। फिर एशिया में ऐसा क्यों नहीं है।
लेकिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय मानते थे कि जब सांस्कृतिक सीमाएं बनती हैं तो रेखाएं नहीं बनती। उनका मानना था कि राष्ट्रवाद के लिए जियो कल्चर नेशनलिज्म पर अनुसंधान होना चाहिए। जब दुनिया ने कहा भारत सोने की चिड़िया है तब सरकार नहीं थी। जब दुनिया मे भारत विश्व गुरु था तब भारत में सरकार नहीं थी क्योंकि जियो कल्चर नेशनलिज्म था। दीनदयाल उपाध्याय जी ने भू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की कल्पना की थी। उन मानना था कि समाज बनाये नहीं जाते समाज उत्पन्न होते है। हमें राजनीति, शिक्षा का भारतीयकरण करना है। दीनदयाल ने आर्थिक लोकतंत्र की अवधारणा दी है। जैसे हर व्यस्क को मताधिकार का अधिकार है। उन्होंने अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए दो ही तरीके बताएं हैं विकेंद्रीकरण और स्वदेशी। डा. महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि – आज की राजनीति ने गरीबी को मंत्र बना दिया है। गरीब, गरीब बना रहेगा तो वोट बैंक बना रहेगा। रोजगार भत्ता देना गरीबी खत्म करने का इलाज नहीं है।
व्याख्यान के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा- पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति ईश्वर की देन होते हैं। ऐसे लोग किसी खास प्रयोजन के लिए पैदा होते हैं। डॉ. महेश शर्मा ने एकात्म मानववाद को सरल भाषा मे डिकोट करने का सराहनीय काम किया है। सारी अवधारणाएं व्यक्ति से व्यक्ति को लड़ने वाली थी। उस बीच एक ऐसी विचारधारा जो ना केवल एकरूपता का मार्ग प्रशस्त करता है बल्कि प्रकृति से भी जुड़ा हुआ है, वह है पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद का सिद्धांत. मुख्यमंत्री ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अंत्योदय की परिकल्पना भी यही है कि अंतिम व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हो। छत्तीसगढ़ सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बताए सिद्धांत पर ही चलने का काम किया है।