रायपुर। DPS रायपुर के Pro-Vice Chairman सरदार बलदेव सिंह का जीवन आम लोगों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है. भारत के विभाजन का दंश झेलकर छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में फिर से नया जीवन शुरू करने वाले भाटिया परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले बलदेव सिंह भाटिया में शिक्षा, खेल और सेवा का अद्भुत संगम दिखाई देता है.
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विभाजन की त्रासदी से नई शुरुआत तक
वर्ष 1947-48 का दौर जब देश विभाजन की आग में जल रहा था, लाखों परिवारों की तरह भाटिया परिवार को भी पाकिस्तान से भारत आना पड़ा. पहले अमृतसर और फिर डोंगरगढ़ में बसने की प्रक्रिया सिर्फ़ स्थान परिवर्तन नहीं, बल्कि संघर्ष, साहस और आत्मनिर्भरता की कहानी थी. उनके मामा पहले से डोंगरगढ़ में बसे थे. वहाँ के राजा विरेंद्र बहादुर सिंह ने सिख समुदाय को जंगल की जमीन दी, जहाँ मेहनत से जीवन बसाना था. यही ज़मीन आगे चलकर भाटिया परिवार की स्थायी जड़ें बनी. परिवार के मुखिया ने कठिन परिश्रम से वन कार्य करते हुए लिकर साल्वेंसी लाइसेंस हासिल किया. करीब पंद्रह वर्ष डोंगरगढ़ में रहने के बाद भाटिया परिवार राजनांदगांव आया और वहीं स्थायी रूप से बस गया.

सेवा, मेहनत और सहयोग की परंपरा
भाटिया परिवार ने सिख धर्म के तीन मूल सिद्धांत – नाम जपो, किरत करो, और वंड छको – को जीवन का आधार बनाया. मेहनत कर कमाना, दूसरों की सहायता करना और समाज के लिए समर्पण—यही परिवार की पहचान बनी. ज़रूरतमंदों की मदद, शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देना परिवार की परंपरा रही.
खेलों से जीवनभर का रिश्ता
बलदेव सिंह भाटिया का रुझान बचपन से ही खेलों की ओर था. वे स्कूल के गेम्स कैप्टन बने और बैडमिंटन व टेबल टेनिस में डिविज़न और राज्य स्तर तक खेले. उनके दादा स्कूल की खेल सामग्री उपलब्ध करवाते थे, जिससे बच्चों में खेलों के प्रति रुचि बढ़ती रही. आगे चलकर उन्होंने स्मार्ट क्रिकेट क्लब की स्थापना की और लंबे समय तक हॉकी क्लब के अध्यक्ष रहे. राजनांदगांव की हॉकी परंपरा प्रसिद्ध रही है—यहाँ तक कि हॉकी के जादूगर ध्यानचंद भी यहाँ खेल चुके हैं. आज भी हॉकी का प्रथम पुरस्कार उनके दादा की स्मृति में दिया जाता है.

राजनीति से दूर और मानवता के करीब
1984 में विवाह के बाद जब वे रायपुर आए, तो राजनीति में आने के कई प्रस्ताव मिले. लेकिन उन्होंने राजनीति को ठुकरा दिया क्योंकि उनका मानना था कि समाज की सेवा दलगत सीमाओं से ऊपर रहकर ही संभव है. यही कारण है कि वे आज हर वर्ग के लोगों के बीच समान सम्मान के पात्र हैं.
शिक्षा में नई क्रांति – DPS रायपुर
अपनी बेटियों की शिक्षा के लिए उन्हें शिमला भेजना पड़ा, जिससे उनके मन में खटक पैदा हुई कि रायपुर में भी उत्कृष्ट शिक्षा संस्थान क्यों न हो. इसी सोच ने उन्हें DPS रायपुर की स्थापना की दिशा में प्रेरित किया. उन्होंने Education Welfare Society बनाकर दिल्ली जाकर आवेदन किया और अनेक प्रयासों के बाद एफिलिएशन प्राप्त किया. शुरुआती दिनों में देशभर से अच्छे शिक्षकों को बुलाना चुनौती थी, क्योंकि उस समय छत्तीसगढ़ को नक्सली क्षेत्र समझा जाता था. उन्होंने शिक्षकों को यहाँ लाकर सुरक्षित माहौल दिखाया और विश्वास दिलाया. परिणामस्वरूप कई शिक्षक 21 साल बाद भी वहीं कार्यरत हैं.
आज DPS रायपुर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित संस्थान है. बलदेव सिंह भाटिया ने कभी स्कूल को मुनाफ़े का साधन नहीं बनने दिया. विद्यालय की आय को विकास और शिक्षकों के हित में लगाया गया. कर्मचारियों को 7वें वेतन आयोग के अनुसार वेतन देना उनकी संवेदनशीलता का उदाहरण है. उन्होंने पास के गाँव को गोद लेकर वहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए.
खेलों में छत्तीसगढ़ की पहचान
अपने साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि खेलों से उनका जुड़ाव कभी कम नहीं हुआ. उन्होंने छत्तीसगढ़ को BCCI से एफिलिएशन दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लंबे संघर्ष के बाद 2008 में छत्तीसगढ़ को एसोसिएट मेंबरशिप और बाद में फुल मेम्बरशिप प्राप्त हुई—जो किसी भी राज्य के लिए ऐतिहासिक क्षण था.
बलदेव सिंह भाटिया छत्तीसगढ़ स्टेट क्रिकेट संघ के अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ ओलंपिक एसोसिएशन के सचिव और वर्तमान में छत्तीसगढ़ कयाकिंग और कैनोइंग एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं. उनके प्रयासों से आज छत्तीसगढ़ के खिलाड़ी IPL और दिलीप ट्रॉफी तक पहुँच रहे हैं. वे कहते हैं, “वो दिन दूर नहीं जब छत्तीसगढ़ का कोई खिलाड़ी भारत की राष्ट्रीय टीम में खेलता नज़र आएगा.” उन्होंने 8 एकड़ में स्पोर्ट्स अकादमी की नींव रखी है, जहाँ खिलाड़ियों को शिक्षा और प्रशिक्षण दोनों मिलेंगे.
समाज सेवा और सिख समुदाय के प्रति समर्पण
भाटिया का सामाजिक योगदान अनुपम है. राजनांदगांव के गुरुद्वारे में स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना, छत्तीसगढ़ पंजाबी सोसायटी और सिख फ़ोरम के माध्यम से गुरु तेग बहादुर भवन में गर्ल्स हॉस्टल बनाना—उनकी दूरदर्शी सोच को दर्शाता है. इसका उद्देश्य है कि काम या पढ़ाई के लिए आई लड़कियों को सुरक्षित ठिकाना मिले. गरीब मेधावी छात्रों की शिक्षा, गरीब बेटियों की शादी और पंजाब में आई बाढ़ जैसी आपदाओं में आर्थिक सहायता देना उनकी मानवीय संवेदना का प्रमाण है. वे चंडीगढ़ की सिख संस्था से भी जुड़े हैं, जो “शिक्षा का लंगर” चलाती है.
जीवन दर्शन और प्रेरणा
बलदेव सिंह भाटिया का कहना है — “जैसे हिन्दुस्तान में छत्तीसगढ़ खास है, वैसे ही छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव.” यह कथन ही उनके व्यक्तित्व का परिचय है. विभाजन की पीड़ा से शुरू हुआ उनका परिवार आज शिक्षा, खेल और समाज सेवा के क्षेत्र में मिसाल बन चुका है.
बलदेव सिंह भाटिया केवल एक उद्योगपति या शिक्षाविद् नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की धड़कन हैं. उनकी सोच, संवेदनशीलता और समर्पण ने उन्हें उस ऊँचाई पर पहुँचा दिया है जहाँ वे केवल नाम नहीं, बल्कि प्रेरणा बन चुके हैं—एक ऐसे व्यक्तित्व जिनकी यात्रा यह साबित करती है कि सेवा, शिक्षा और खेल जब एक साथ चलते हैं, तो समाज का वास्तविक विकास संभव होता है.
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