संदीप अखिल, रायपुर। NEWS 24 MP-CG में 25 नवंबर को प्रसारित होने वाले विशेष साक्षात्कार में रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल के चेयरमैन और मिनिमल एक्सेस सर्जरी के अग्रदूत डॉ. संदीप दवे ने अपने जीवन, सेवा, संघर्ष और समाज के प्रति अपने दृष्टिकोण को बेहद सरल और भावुक शब्दों में साझा किया।
यह बातचीत सिर्फ चिकित्सा तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसमें मानवता, कर्तव्य और करुणा की अद्भुत झलक देखने को मिली। बातचीत की शुरुआत करते हुए डॉ. दवे ने कहा, “डॉक्टर बनना केवल एक प्रोफेशन नहीं, यह एक जिम्मेदारी है – जिसमें हर मरीज आपका अपना बन जाता है।”

बचपन और संस्कारों की नींव
डॉ. संदीप दवे का जन्म वर्ष 1961 में एक साधारण लेकिन संस्कारी परिवार में हुआ। उन्होंने कहा कि बचपन से ही उन्हें विज्ञान और मानव शरीर की संरचना में गहरी रुचि रही।
उन्होंने बताया,“मेरे माता-पिता ने मुझे यही सिखाया कि ज्ञान तभी सार्थक है, जब वह दूसरों के काम आए।”यही संस्कार आगे चलकर उनकी जीवन दिशा बने और उन्होंने चिकित्सा को केवल पेशा नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम बना लिया।
रामकृष्ण सर्जिकल नर्सिंग होम : एक संकल्प
19 जुलाई 1992 का दिन उनके जीवन का एक ऐतिहासिक पड़ाव था। इसी दिन उन्होंने रामकृष्ण सर्जिकल नर्सिंग होम की स्थापना की। इस बारे में उन्होंने कहा “मैंने अस्पताल की नींव सिर्फ ईंट और सीमेंट से नहीं, बल्कि सेवा भाव से रखी थी।” 1996 में उन्हें स्वयं मदर टेरेसा से प्रशस्ति पत्र मिला, जिसे वे आज भी अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानते हैं।

उन्होंने कहा,“मदर टेरेसा का आशीर्वाद मेरे लिए किसी पद्म पुरस्कार से कम नहीं है।” डॉ. दवे आज भी प्रतिदिन एक निःशुल्क सर्जरी करते हैं और मात्र 400 रुपये में डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। उनका लक्ष्य स्पष्ट है – गरीब भी अच्छे इलाज का अधिकारी है।
नक्सल क्षेत्रों में सेवा का साहस
छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों की सहायता में भी डॉ. दवे सदैव आगे रहे हैं।झीरम घाटी (2013) और बुरकापाल (2017) की घटनाओं को याद करते हुए उन्होंने कहा,“उस दिन हम डॉक्टर नहीं थे, हम सिर्फ इंसान थे, जो घायल लोगों की जान बचाना चाहते थे।”36 घंटे तक बिना भोजन और पानी के लगातार ऑपरेशन कर उन्होंने सैकड़ों जानें बचाईं।
उन्होंने बताया अब तक वे –90 बीएसएफ,40 छत्तीसगढ़ पुलिस, 320 सीआरपीएफ जवानों का सफल ऑपरेशन कर चुके हैं। उन्होंने कहा,“वर्दी देखकर नहीं, दर्द देखकर इलाज करता हूँ।”अद्भुत शल्यकौशल और तकनीकी उपलब्धि
डॉ. संदीप दवे अब तक –1,00,000 से अधिक लेप्रोस्कोपिक सर्जरी, 10,000 ओपन सर्जरी, 500 रोबोटिक सर्जरी सफलतापूर्वक कर चुके हैं। उनकी मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से भी कम है, जो उनके अनुभव और कुशलता को दर्शाता है।
वे युवाओं को प्रेरित करते हुए कहते हैं –“डॉक्टर बनने से ज्यादा जरूरी है, अच्छा इंसान बनना।” युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए उन्होंने 75 से अधिक CME, 200 स्वास्थ्य शिविर और 15 से अधिक कार्यशालाओं का आयोजन किया है।
राष्ट्र सेवा और सामाजिक योगदान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2018 की बीजापुर यात्रा के अवसर पर उन्होंने अपनी टीम के साथ 50 से अधिक निःशुल्क ऑपरेशन किए।स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत गरियाबंद के एक स्कूल में शौचालय का निर्माण भी उन्होंने अपने खर्च से कराया।
कोविड महामारी के दौरान उन्होंने 2016 मरीजों का इलाज किया और मृत्यु दर देश में सबसे कम रही। उन्होंने स्पष्ट कहा, “कोरोना से डरने की नहीं, लड़ने की जरूरत थी – और हमने वही किया।”
अंतर्राष्ट्रीय पहचान
डॉ. दवे को FIAGES, FMAS, FALS जैसी प्रतिष्ठित फेलोशिप प्राप्त हैं। वे हर्निया सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, ऑस्ट्रेलिया सहित 45 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लिया।
उनके छोटे से 25 बिस्तरों वाले अस्पताल ने आज सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का रूप ले लिया है, जहां कैंसर, लिवर, किडनी ट्रांसप्लांट और रोबोटिक सर्जरी की सुविधा उपलब्ध है।
सरकारी योजनाओं में सहभागिता
मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना, आयुष्मान भारत, संजीवनी कोष, बीएसकेवाई जैसी योजनाओं के तहत हजारों मरीजों का निःशुल्क इलाज किया जा चुका है।उन्होंने कहा –“सरकार की योजनाएं तभी सफल हैं, जब आम आदमी तक उनका लाभ पहुँचे।”
एक मिसाल, एक प्रेरणा
बातचीत के अंत में डॉ. दवे ने जो कहा –“स्वास्थ्य का मूल्य तब पता चलता है, जब वह खोने लगता है। इसलिए हर जीवन अनमोल है।”वे मानते हैं कि डॉक्टर सिर्फ बीमारी नहीं, बल्कि टूटे हुए हौसलों का इलाज भी करता है।
डॉ. संदीप दवे आज केवल एक चिकित्सक नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की धरती पर खड़ा मानवता का स्तंभ हैं। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश है कि सच्ची सफलता वही है, जो दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाए।

