ठंड में बुजुर्गों को सबसे अधिक पैरालिसिस (लकवा) का अटैक आता है. हर साल ठंड में पैरालिसिस के मरीजों की संख्या गर्मियों की अपेक्षा बढ़ जाती है. इस बीमारी में दिमाग की नसों में ब्लाक होने से खून का जमाव हो जाता है. ब्लड का प्रवाह नहीं होने से रक्त नालिका से जुड़े शरीर के अन्य भाग काम करना बंद कर देते हैं. डॉक्टरों के अनुसार ब्रेन स्ट्रोक यानि पैरालिसिस का ठंड से सीधा संबंध है. सर्दियों में ब्लड गाढ़ा हो जाता है. मौसम के मुताबिक लोगों के ब्लड सर्कुलेशन सिस्टम में जरूरी बदलाव होने से लकवा का खतरा बढ़ जाता है.
बुटाटी धाम में है संत की समाधि
सही समय का डॉक्टरी इलाज से पैरालिसिस रोगों को स्वस्थ किया जा सकता है. इसके साथ लोगों लकवाग्रस्ति मरीज का आयुर्वेदिक व धार्मिक तरीकों से भी उपचार कराते हैं, जिससे मरीज को सीध्र लाभ मिल सकें. मान्यता है कि राजस्थान में नागौर से 50 किलोमीटर दूर अजमेर-नागौर मार्ग पर कुचेरा कस्बे के पास स्थित है संत चतुरदास जी की समाधि. ‘चतुरदास जी महाराज के मंदिर’ की सात दिन सात परिक्रमा करने से स्ट्रैचर या व्हील चेयर पर आने वाले मरीज भी अपने पैरों पर चलकर घर जाते हैं. Read More – हमारे दांतों को कमजोर करके नुकसान पहुंचाती हैं ये चीजें, नियमित खाने से करें परहेज …
कहा जाता है कि 500 वर्ष पहले यहां चारण कुल में पैदा हुए चतुरदास नाम के एक सिद्ध योगी रहा करते थे. एक बार उनके आश्रम के पास घास चरते हुए एक गाय लडखड़़ाकर गिर पड़ी और लकवा रोग की शिकार हो गई. स्थानीय लोगों ने इसकी सूचना संत तक पहुंचाई. योगी चतुरदास ने लोगों से उस गाय को आश्रम में लाने को कहा. गाय को किसी तरह लोग आश्रम में ले आए. योगीराज ने उस गाय को अपने योग बल से ठीक कर दिया.
उसी दिन से लकवे के मरीज बाबा के आश्रम में जाते और भलेचंगे होकर अपने घर लौटते. आज वहां एक मंदिर है जो मंदिर के भीतर सिद्ध योगी चतुरदास जी महाराज की समाधि है. लकवाग्रस्त मरीज वहां आते हैं और सात दिनों तक वहीं रुक कर रोजाना सात परिक्रमा करते हैं और ठीक होकर अपने घर को प्रस्थान करते हैं. Read More – 55 साल की उम्र में 20 का दिखता है ये Model, Physique देख हैरान हैं लोग, ऐसे रखते हैं खुद Fit …
स्थानीय लोग व श्रद्धालु बताते हैं सारा चमत्कार उस भूमि का है. व्हीलचेयर पर बैठकर गए मरीज परिक्रमा के बाद बिना किसी सहारे के चल-फिर सकते हैं. यहां आने से पहले मरीजों को अपना रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है, उसके बाद उनके रहने के लिए जगह उपलब्ध कराई जाती है. मरीज तथा उनके परिजनों की संख्या के हिसाब से आटा दिया जाता है, जिससे वे रोटी बना सकें. यह रोटी उन्हें चूल्हे पर ही बनानी होती है. लकड़ी की व्यवस्था मंदिर प्रबंधन द्वारा की जाती है. परहेज में बस इतना ही है कि प्रत्येक व्यक्ति को आरती के समय जमीन पर बैठना पड़ता है.
आरती के बाद मरीज मंदिर की परिक्रमा शुरू करता है. सात परिक्रमा सात दिनों तक वहीं पर रहकर की जाती है. यहां आने वाले मरीज संत की समाधि की धूनी की भस्म या तेल लगाते हैं. मंदिर प्रबंधन की ओर से मरीजों को यहां नि:शुल्क सेवा प्रदान की जाती है.
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