वक्फ़ संशोधन कानून 2025 चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। कोर्ट याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी पेश हो रहे हैं। तो वहीं सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हो रहे हैं।
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कोर्ट के अंदर याचिकाकर्ताओं की ओर से आज कपिल सिब्बल दलील दे रहे हैं-
बता दें कि, वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट ने अनेको याचिकाएं दायर हुई हैं। इन याचिकाकर्ताओ की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल पैरवी कर रहे है। उनकी दलीलों पर जज सवाल भी कर रहे हैं। कोर्ट में चल रही सुनवाई के कुछ अंश इस प्रकार है –
सिब्बल की दलील : यह क़ानून वक़्फ़ संपत्ति को कैप्चर करने के लिए लाया गया है…
मामले की सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि, कहने को वक्फ़ संशोधन कानून 2025 वक्फ की सुरक्षा के उद्देश्य से लाया गया है लेकिन सच्चाई ये है कि यह वास्तव में यह गैर न्यायिक, कार्यकारी प्रक्रिया के माध्यम से वक्फ पर कब्जा करने के लिए बनाया गया है। निजी संपत्तियां केवल विवाद के कारण छीनी जा रही हैं, हम विवाद की प्रकृति नहीं जानते। विवाद को देखने के लिए कलेक्टर से ऊपर एक अधिकारी नियुक्त किया जाता है, और इस बीच संपत्ति छीन ली जाती है।
इसपर सीजेआई ने पूछा – क्या बिना किसी प्रक्रिया का पालन किए ऐसा हो रहा है ?
इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि, सरकार अपनी प्रक्रिया खुद तय करती है, कोई भी विवाद पैदा कर सकता है। यह एक पहलू है। दूसरा पहलू, वक्फ क्या है? यह अल्लाह (ईश्वर) को दिया गया दान है और उसके अनुसार, संपत्ति हस्तांतरित नहीं की जा सकती- एक बार वक्फ हमेशा वक्फ रहता है… इसके पीछे ऐतिहासिक कारण यह है कि हमारे संविधान के तहत राज्य धार्मिक संस्थाओं को वित्तपोषित नहीं कर सकता। अगर मस्जिद है, तो राज्य वित्तपोषित नहीं कर सकता। अगर कब्रिस्तान है, तो उसे निजी संपत्ति से बनाना पड़ता है… इसमें कोई कमाई नहीं होती, लोग अपने प्रियजनों को दफनाने के लिए आते हैं।
कोर्ट ने पूछा – क्या ववफ बाय यूजर प्रोपटी के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान पहले से था?
सिब्बल ने कहा कि, वक़्फ़ बाय यूजर प्रोपटी के रजिस्ट्रेशन की ज़रूरत क़ानून में पहले से थी। पर पहले ऐसा नहीं था कि रजिस्ट्रेशन न होने पर उसका वक़्फ़ प्रोपटी का स्टेटस खत्म हो जाएगा। कोर्ट ने सिब्बल की इस दलील को रिकॉर्ड पर लिया।
कपिल सिब्बल की दलील: नए क़ानून में व्यवस्था दी गई है कि वक़्फ़ करने के लिए कम से कम 5 साल से इस्लाम धर्म का पालन करना होगा। हमें किसी को क्यों बताना चाहिए कि मैं कब से इस्लाम मानता हूं। इसके जांचने का तरीका क्यों होगा !
कपिल सिब्बल की दलील : अगर वक़्फ़ की किसी प्रोपटी पर ये दावा किया जाता है कि वो सरकारी सम्पति है और कमिश्नर इसकी जांच करना शुरू कर देता है तो उसकी जांच के शुरु होने के वक्त से उसका वक़्फ़ प्रोपटी का स्टेटस नहीं माना जाएगा। जांच के नतीजे पर पहुंचने का इतंज़ार नहीं करना होगा। ये प्रावधान अपने आप में मनमाना है।
19 मई तक नोटिस जमा करने का दिया था आदेश
बता दें कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट 1955 पर रोक नहीं लगाने का आदेश दिया था। हालांकि, कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और केंद्र सरकार को 19 मई तक लिखित नोट जमा करने के लिए कहा था।
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