नई दिल्ली . दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक 2023 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है. मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में विधेयक पर मुहर लगाई गई. केंद्र सरकार अब यह विधेयक जल्द संसद में पेश करेगी.

दिल्ली में शक्तियों को लेकर उपराज्यपाल और आम आदमी पार्टी सरकार के बीच जारी गतिरोध के बीच केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. आम आदमी पार्टी अध्यादेश का कड़ा विरोध कर रही है. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल इसे दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियां छीनने वाला अध्यादेश बता चुके हैं. वहीं अब आम आदमी पार्टी इस अध्यादेश की जगह लेने के लिए राज्यसभा में विधेयक पेश करने का कड़ा विरोध कर रही है. इस संबंध में आप नेता और राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ को पत्र भी लिखा है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि अध्यादेश चुनी हुई सरकार से उसका संवैधानिक अधिकार छीनता है. यह अनुचित और अस्वीकार्य है जबकि केंद्र सरकार इसे दिल्ली के हित में बता रही है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन अध्यादेश केंद्र सरकार द्वारा 19 मई को लागू किया गया था. इससे एक सप्ताह पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार को सेवा से जुड़े मामलों का नियंत्रण प्रदान कर दिया था हालांकि उसे पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से जुड़े विषय नहीं दिये गए. शीर्ष अदालत के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती उपराज्यपाल के कार्यकारी नियंत्रण में थे.

ये दल विरोध में

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अध्यादेश का राज्यसभा में विरोध करने के लिए बीते दिनों नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, शरद पवार, एमके स्टालिन समेत कई नेताओं से मुलाकात की थी. कांग्रेस, टीएमसी ने भी समर्थन की बात कही है.

राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण लेगा फैसले

केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश में कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्रधिकरण नाम का एक प्राधिकरण होगा, जो उसे दी गई शक्तियों का उपयोग करेगा और उसे सौंपी गई जिम्मेदारियों का निर्वहन करेगा. बता दें कि उच्चतम न्यायालय के किसी भी फैसले को पलटने के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश ला सकती है. सरकार की ओर से एक अध्यादेश तब लाया जाता है जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है, लेकिन इसे छह सप्ताह के भीतर संसद की ओर से पारित किया जाना चाहिए.